धर्म
धर्म एक ऐसा
विषय है जिस पर पूरे विश्व में सबसे ज्यादा चर्चा होती है। सब धर्म की
सौगंध खाते हैं। धार्मिक होने का दावा करते हैं। धार्मिक क्रियाकांड करते हैं, लेकिन विडंबना है कि धर्म के नाम पर ही सबसे ज्यादा खून खराबा - हिंसा -
युद्ध आदि किए जाते हैं।
धर्म का संक्षिप्त एवं सुंदर अर्थ है "धारण करना" धर्म का एक अर्थ "सद्गुण
एवं कर्तव्य" भी है, धर्म उस प्रत्येक
क्रिया- कार्य को कहेंगे जो स्व - पर से ऊपर उठकर किया जाए। धर्म प्रत्येक परिस्थिति एवं काल में सापेक्ष रहता है, इसी कारण से धर्म को आपत्ति काल में मानव का सहारा कहा गया है।
हम जीवन की
प्रत्येक क्रिया-कलाप से धर्म को जोड़ सकते है,
राजधर्म:- निष्पक्ष रूप से समान शासन करना,
गृहस्थ धर्म:- ईमानदारी - संयम के साथ गृहस्थी
चलाना एवं भावी पीढ़ी में संस्कार सिंचन करना,
न्याय धर्म:- सत्य - असत्य का विश्लेषण कर
न्याय देना,
खेल धर्म:- खेल भावना से खेलना,
हम प्रत्येक
कार्य को धर्म सम्मत कर सकते हैं जैसे लेखन धर्म, संन्यास धर्म, चिकित्सक धर्म इत्यादि।
प्रत्येक
प्राणी अपनी अपनी सुरक्षा एवं अस्तित्व की रक्षा करता है, मानव भी करता है, चूंकि उसके पास ज्ञान है - विवेक है अत: वह अपने अभ्युदय एवं विकास के लिए
कर्म भी करता है, शरीर-सत्ता-अर्थ सभी नश्वर है, लेकिन आत्म तत्व प्रत्येक जीव में शाश्वत है, धर्म भी शाश्वत है, अत: प्रत्येक ऐसा कार्य जो आत्मा के उत्थान के लिए हो धर्म है।
आचार्य
उमास्वती ने "सम्यकदर्शन - ज्ञान - चरित्र के पालन" को धर्म कहा
है इसलिए "आत्म शुद्धि का साधन ही धर्म है", गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते है "परहित सरसी धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधिमाई", भागवत गीता में "निष्काम
कर्म - भक्ति एवं ज्ञान योग" को धर्म कहा गया है, ईसा मसीह ने कहा "जो अपनी आत्मा के अनुकूल न हो वैसा आचरण तुम दूसरों
के साथ मत करो"।
हमें धर्म एवं
संप्रदाय का भेद समझना होगा, सत्य-अहिंसा-प्रेम-भाईचारा-मैत्री इत्यादि
सभी धर्मो के मूल सिद्धांत में समाहित है, संप्रदाय तो फल के छिलके के समान, धर्म की रक्षा के लिए
है, संप्रदायों ने अपने-अपने धार्मिक दृ्टिकोण इतने संकुचित एवं असहनशील कर दिए की
धर्म का मूल हेतु ही गायब हो गए, पीछे छूट गए।
आखिर में, यदि सभी प्राणी अपने अपने धर्म का सम्यक पालन करें तो विश्व शांति एवं अहिंसा
स्वत: ही आ जाएंगे।
रचनाकार-
श्री जिनेन्द्र कोठारी
(आप समण संस्कृति संकाय, लाड़नुं के पूर्व निदेशक व रोटरी क्लब, अंकलेश्वर के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं)
धर्म के विषय मे बहुत ही सटीक विचार । संक्षेप मे बहुत अच्छी व्याख्या।
ReplyDeleteThank you ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
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