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Showing posts from July, 2020

संबंधों की व्याख्या: आधुनिक संदर्भ में

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जब से मनुष्य ने समूह में रहना आरंभ किया है , मनुष्य संबंधों की डोर से बंधा हैं। पति-पत्नी , माता-पिता , भाई-बहन , मित्र इत्यादि अनेकानेक संबंधों से हम जीवन पर्यन्त जुड़े रहते है। मानव सभ्यता के प्रारंभिक वर्षों से 18वीं शताब्दी तक इन संबंधों का निर्वहन लगभग निर्बाध रूप से एक समान होता रहा , परिवार समाज की मर्यादा ही व्यक्ति के लिए नैतिक कानून रहे एवं इसके अनुपालन में ही जीवन यापन होता था। इस काल खंड में सबसे बड़ा परिवर्तन स्त्रियों की दशा में आया था , प्राचीन काल में आर्थिक ,   सामाजिक और राजनीतिक रूप से जितनी स्त्रियां स्वतंत्र थी , ईसा के 1000 वर्ष बाद ,   स्त्रियां धीरे-धीरे दोयम दर्जे की बन गई एवं समाज में पितृसत्ता की स्थापना हुई । 18वीं शताब्दी के समय यूरोपियन प्रजा धीरे-धीरे एशिया , अफ्रीका एवं विश्व के अन्य भागों में व्यापारिक कार्यों के लिए जाने लगी , यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई तथा यहीं से यूरोप का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पूरी मानव सभ्यता पर पड़ा। स्त्रियों में चेतना जागृत होने लगी , निरंतर चलने वाले युद्धों में पुरुषों के रत रहने के कारण घरेलू एवं सामाजिक कार्

भ्रष्टाचार - सबसे बड़ा संक्रमण

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अभी कुछ दिनो से अखबार में कुछ समाचारों में यह पढ़ा कि करोना महामारी के समय आम लोगों को जो सामग्री दी जा रही है , उसमें   कमीशन या रिश्वत ली जा रही हैं। समझ में नहीं आया किसी जमाने में यह कहा जाता था या कहावत में मैंने पढ़ी थी कि बनिये को कहीं भी भेज दो तो बनिया समुंदर की किनारे लहरें गिन कर भी पैसे कमा लेगा या चांद पर जाएगा तो उसकी रोशनी या मिट्टी बेचकर भी पैसे कमा लेगा , ये बात थी समझदारी की। लेकिन अब यह इस कहावत कलयुग में मैं समझ पाया हूं चाहे कोई वक्त हो - कोई काल हो - कोई समय हो - अफसर और राजनीतिज्ञ हर काल में अपनी-अपनी   रिश्वत व कमीशन कैसे भी बना लेते हैं। चाहे मुर्दों के कफन से या ताबूत से या सेनेटराईज की सप्लाई में या दवाओं की सप्लाई में या सैनिक साजो समान में   या हथियारों में   या हवाई जहाज या किसी भी अन्य खरीद में या बिजली   पानी की सप्लाई में कहीं ना कहीं से वे अपना मुर्गा तलाश ही लेते हैं। यह सब क्या है ? क्या यह हमारी संकीर्ण   मानसिकता को नहीं दर्शाता है ? हम क्या जन्मजात भ्रष्टाचारी हैं ? या भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले ? मुझे तो यह भी समझ में न