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श्रीमद्भगवद् गीता- सार संक्षेप

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श्रीमद्भगवद् गीता भारतीय दर्शन एवं धर्म की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। इसे आदि शास्त्र भी कहा जाता है। इसमें मानवीय जीवन के आध्यात्मिक उत्कर्ष के सहज-सरल सूत्र दिए गए हैं , जिनका पालन कर प्रत्येक जीवात्मा ऊर्ध्व गति में गमन करती है। श्रीमद्भगवद् गीता की इतनी समीक्षाएं , अर्थ एवं टिप्पणियां की गई हैं , जितनी शायद ही विश्व के किसी धर्म ग्रंथ की की गई हो। वस्तुतः भगवान श्री कृष्ण ने तो कोई एक श्लोक- एक बात कही , लेकिन सब टीकाकारो- ऋषियों ने   अपने-अपने प्रकार से आशय ग्रहण कर , इसे समझा एवं समीक्षाएं की। कुछ प्रमुख बिंदुओं के माध्यम से हम इस ग्रंथ को समझने का प्रयत्न करेंगे। १. श्रीमद्भगवद् गीता में 18 अध्याय हैं और इसमें करीब 700 श्लोक हैं। इसमें चार पात्र है , भ गवान श्री कृष्ण , अर्जुन , संजय एवम् धृतराष्ट्र । इसमें पांच विषय वस्तु पर चर्चा है ईश्वर , जीव , प्रकृति , काल और कर्म। २. श्रीमद्भगवद्गीता प्रमुख रूप से कर्म योग की शिक्षा प्रदान करता है एवं भगवान श्री कृष्ण को योगेश्वर , योगीराज , कर्मयोगी कहा गया है। इसके अध्याय 2, 3, 4, 5 में कर्मयोग का सार पूर्ण विवरण...

स्वावलंबन

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  स्वल्प शब्दों में समग्र दर्शन के   अंतर्गत   कहावतों पर पापा   सोहन राज जी कोठारी द्वारा लिखे गए लेख द्वारा बताया गया कि स्वावलंबन व श्रम कितना जरूरी है। हम वर्तमान परिपेक्ष में देखें तो इस कोरोना काल ने स्वावलंबन पर सचेत कर दिया।   वही सुखी है जो स्वाबलंबी है , अन्यथा कष्ट उठाने पड़ेंगे । इस लोकोक्ति पर उनका लिखा गया यह लेख वर्तमान में भी हमें प्रेरणा दे रहा है । -- मर्यादा कुमार कोठारी बैठक तपे जद सूत कते इस लोकोक्ति को साधारण शब्दों में भी जीवन की सफलता व श्रम का एक महत्वपूर्ण संकेत छिपा है। यह बात सही है कि पुराने जमाने में जब देश भर में गांव स्वावलंबी थे तब कपड़े की बुनाई का सारा कार्य छोटी-छोटी इकाईयों के माध्यम से गांव में ही होता था। गांव-गांव में अनेक घरों पर कार्मिक चरखा कात कर रूई से सूत के डोर बनाते , जिससे अन्य कार्मिक अपने घरों में ताना-बाना के पट लगाकर बुनाई करते , कपड़ा तैयार करते। उससे गांव की आवश्यकता पूरी हो जाती। विशिष्ट कलाविद कार्मिक इसी प्रकार रेशम व ऊन कातकर रेशमी व ऊनी कपड़ों की बुनाई करते , उस पर अपनी कलात्मकता का प्रयोग करते। जिससे ...