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विश्वास -किस पर करें???

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  वर्तमान जीवन का सबसे बड़ी जो समस्या है वह है विश्वास की। हम किस पर विश्वास करें। विश्वास की हालत यह है कि पिछले दिनों जब मैं देखता हूं आत्महत्याए बढ़ रही हैं। इसका कारण है कि उन्हें अपने स्वयं पर विश्वास नहीं है , जब आदमी का स्वयं से विश्वास उठ जाता है तो वह फिर आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। आज विश्वास की स्थिति यह है कि व्यक्ति किस पर विश्वास करें । रिश्तेदारों पर , धर्म गुरुओं पर , राजनेताओं पर , सरकारी अधिकारियों पर , पत्रकारिता पर या फिर न्यायपालिका किस पर करे। प्रतिदिन हम अखबारों में समाचार पढ़ते हैं कि बेटा-बेटी अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ क्या हालत करता है या बहु अपने सास-ससुर की क्या हालत करती हैं ? फिर उन्हें वृद्धाश्रम की ओर देखना पड़ता है। तो क्या यह हमारे संस्कार हैं ? हमारी संस्कृति ने हमें यह सिखाया है ? जहां पिछले दिनों पारिवारिक दुष्कर्म की बातें भी कई बार आई। यह भी हमारे समाज पर धब्बा है , दाग है। जहां हमारे विश्वास के रिश्ते हैं उन पर बहुत बड़ी चोट है। अभी पिछले दिनों न्यायाधिपति जसराज जी चोपड़ा बता रहे थे एक बेटे ने मां को विदेश अपने साथ ले जाने की बात कही। व...

किरदार माता-पिता और संतान

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  स्वल्प शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी ने राजस्थानी कहावत ऊपर लेख लिखें। उसी में से एक यह लेख वर्तमान संदर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि यह जब लिखा गया था तब भी था। आज के परिपेक्ष में हम देख रहे हैं कि जहां वृद्ध माता-पिता वृद्धाश्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं , जिन्होंने अपना पेट काटकर , कितने ही मंदिरों में मन्नत मांग कर , माथा टेक कर , अपने लिए संतान को चाहा और वह संतान अपने दायित्वों से विमुख हो जाती है पता ही नहीं चलता। यह लेख हम सबके लिए पठनीय , चिंतनीय व माननीय है। - मर्यादा कुमार कोठारी छोरू कोछोरू हवे , माईत कुमाईत नीं वे यह लोकोक्ति एक ऐसे सत्य को उद्घाटित करती है जो युगो-युगों तक स्थायित्व लिए रहा , पर लगता है कि भौतिकवादी युग की भोगलिप्सा ने इसका अर्थ बदल दिया है। राजस्थानी भाषा में ‘‘ छोरू ’’ पुत्र या लड़के को कहते है और ‘‘ माईत ’’ माता-पिता को कहते है , अतः लोकोक्ति का शब्दार्थ होता है कि पूत कपूत हो सकता है , पर माता-पिता कभी कु-माता-पिता नहीं हो सकते , अर्थात् माता-पिता , कभी अपनी संतान का अहित नहीं कर सकते। माता-पिता के शारीर...