कर्मवाद - जैन दर्शन परिप्रेक्ष्य

कर्म हमारे अतीत का लेखा-जोखा है। विश्व के प्रत्येक धर्म में अच्छे बुरे कर्म की अवधारणा है। आध्यात्मिक साधना एवम उसके ज्ञान की व्याख्या कर्म शास्त्र को जाने बिना नहीं की जा सकती। कर्मवाद हमारे कृत कार्यों-आचरण की मीमांसा करता है। बाहरी एवम् भीतरी कारकों से हमारे सभी कार्य प्रभावित होते है। बाहरी कारण स्पष्ट दृष्टि गोचर है एवम् भीतरी दिखाई तो नहीं देते लेकिन व्यक्ति के आचरण पर गहरा प्रभाव डालते हैं। कर्मशास्त्र मन की इन गहनतम अवस्थाओं की खोज का अध्ययन है। वैदिक मान्यता है जीवात्मा कर्म करने को स्वतंत्र है। सृष्टि के नियंता /भगवान की न्याय- वयवस्था में अच्छे-बुरे कर्मो का फल भोगना पड़ता है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य अपने कुकर्मों के लिये स्वयं उत्तरदाई इसलिए है क्योंकि उन्हें करने या न करने का निर्णय अल्लाह मनुष्य को स्वयं ही लेने देता है। उसके कुकर्मों का भी पूर्व ज्ञान खुदा को होता है। ईसाई , बौद्ध आदि सभी धर्मो में कर्म एवम् कर्म सिद्धांत की मान्यता है। १) जैन दर्शन मतानुसार सबसे प्रथम हम यह देखेंगे कर्म है क्या ? भगवान महावीर ने स्पष्टत "कर्म को पुदगल" ( matter/ पर...