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Showing posts from March, 2021

सजगता का सार

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  स्वलप शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी द्वारा लिखा गया कहावत पर यह लेख जो कि हमें सजग रहने की प्रेरणा देता है। यह इसमे कहा गया प्रमाद ना करें । प्रमादी   व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।   हर कार्य को सजगता के साथ करने का प्रयास करें जब ही हम सफल हो पाएंगे। -----मर्यादा कुमार कोठारी   सूतो रे पाडा लावे यह शब्द समूह ठेठ ग्रामीण अंचल की सभ्यता से जुड़े होने के उपरांत भी इसमें जागरण का जो युग बोध निहित है , वह स्वयं में अत्यंत सारभूत व सार्थक है। कहा जाता है कि एक गाँव में दो व्यक्ति पास-पास रहते थे , दोनों के एक-एक भैंस थी व संयोग से दोनों का गर्भाधान साथ ही हुआ। एक व्यक्ति भैंस की पूरी सार-संभाल करता व उसके गर्भ का पूरा ध्यान रखता जबकि दूसरा व्यक्ति अपने आलस्य और प्रमाद के कारण भैंस का पूरा ध्यान नहीं रख पाता। गर्भाधान की तरह दोनों भैंसों का प्रसव रात्रि में एक ही समय हुआ। भैस की सार-संभाल करने वाला उस समय जाग रहा था व उसका पड़ोसी सोया हुआ था। जागने वाले की भैंस ने पाड़े (बछड़े) को जन्म दिया व पड़ोसी की भैंस ने पाड़ी (बछड़ी) को जन्म दिया। पाड़ी बड़ी होने पर भैंस ब

विश्वास -किस पर करें???

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  वर्तमान जीवन का सबसे बड़ी जो समस्या है वह है विश्वास की। हम किस पर विश्वास करें। विश्वास की हालत यह है कि पिछले दिनों जब मैं देखता हूं आत्महत्याए बढ़ रही हैं। इसका कारण है कि उन्हें अपने स्वयं पर विश्वास नहीं है , जब आदमी का स्वयं से विश्वास उठ जाता है तो वह फिर आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। आज विश्वास की स्थिति यह है कि व्यक्ति किस पर विश्वास करें । रिश्तेदारों पर , धर्म गुरुओं पर , राजनेताओं पर , सरकारी अधिकारियों पर , पत्रकारिता पर या फिर न्यायपालिका किस पर करे। प्रतिदिन हम अखबारों में समाचार पढ़ते हैं कि बेटा-बेटी अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ क्या हालत करता है या बहु अपने सास-ससुर की क्या हालत करती हैं ? फिर उन्हें वृद्धाश्रम की ओर देखना पड़ता है। तो क्या यह हमारे संस्कार हैं ? हमारी संस्कृति ने हमें यह सिखाया है ? जहां पिछले दिनों पारिवारिक दुष्कर्म की बातें भी कई बार आई। यह भी हमारे समाज पर धब्बा है , दाग है। जहां हमारे विश्वास के रिश्ते हैं उन पर बहुत बड़ी चोट है। अभी पिछले दिनों न्यायाधिपति जसराज जी चोपड़ा बता रहे थे एक बेटे ने मां को विदेश अपने साथ ले जाने की बात कही। वह स्

सगपण, सौदो, चाकरी, राजीपे रा खेल

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  स्वलप शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी का लिखा हुआ कहावतों पर यह लेख वर्तमान संदर्भ में समसामयिक है क्योंकि तलाक और संबंध विच्छेद बहुत बढ़ रहे हैं। उसका कारण है हमने बिना या पुरी जानकारी   किए बिना संबंध कर लिया और उसका आगे परिणाम अच्छा नहीं आया। यह लोकोक्ति हमें बताती है   संबंध करते समय ही   सारी बातें देख परख कर एक दूसरे को समझ कर करना चाहिए। जिससे कि आगे मुसीबत ना खड़ी हो। विषय वर्तमान परिपेक्ष में हम सबके लिए प्रेरणादायक है। -   मर्यादा कुमार कोठारी पाणी पीजे छाण ने , सगपण कीजे जाण ने इस लोकोक्ति में स्वस्थ व सुखी जीवन जीने का अपूर्व गुर निहित है। पानी में कई प्रकार के कीटाणु और जीवाणु रहते है। अतः तालाब , कुंआ या नल का पानी वैसी ही स्थिति में पीने से कीटाणु और जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते है। व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनायास बिगाड़ देते है। जिससे इस लोकोक्ति में व्यक्ति को छानकर पानी पीने का आह्वान किया गया है। यह सर्वविदित है कि गांवों में तालाबों का अनछाना पानी पीने से  नारू का रोग बहुत प्रचलित है। नलों में टंकियों से पानी आता है। वहाँ भी टंकियों