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स्वावलंबन

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  स्वल्प शब्दों में समग्र दर्शन के   अंतर्गत   कहावतों पर पापा   सोहन राज जी कोठारी द्वारा लिखे गए लेख द्वारा बताया गया कि स्वावलंबन व श्रम कितना जरूरी है। हम वर्तमान परिपेक्ष में देखें तो इस कोरोना काल ने स्वावलंबन पर सचेत कर दिया।   वही सुखी है जो स्वाबलंबी है , अन्यथा कष्ट उठाने पड़ेंगे । इस लोकोक्ति पर उनका लिखा गया यह लेख वर्तमान में भी हमें प्रेरणा दे रहा है । -- मर्यादा कुमार कोठारी बैठक तपे जद सूत कते इस लोकोक्ति को साधारण शब्दों में भी जीवन की सफलता व श्रम का एक महत्वपूर्ण संकेत छिपा है। यह बात सही है कि पुराने जमाने में जब देश भर में गांव स्वावलंबी थे तब कपड़े की बुनाई का सारा कार्य छोटी-छोटी इकाईयों के माध्यम से गांव में ही होता था। गांव-गांव में अनेक घरों पर कार्मिक चरखा कात कर रूई से सूत के डोर बनाते , जिससे अन्य कार्मिक अपने घरों में ताना-बाना के पट लगाकर बुनाई करते , कपड़ा तैयार करते। उससे गांव की आवश्यकता पूरी हो जाती। विशिष्ट कलाविद कार्मिक इसी प्रकार रेशम व ऊन कातकर रेशमी व ऊनी कपड़ों की बुनाई करते , उस पर अपनी कलात्मकता का प्रयोग करते। जिससे ...

अधिकार : दायित्व और कर्तव्यों

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  आज के दौर में अधिकारों की आपाधापी चल रही है। पता नहीं हर व्यक्ति यह चाहता है कि यह करना मेरा ही अधिकार है। लेकिन दायित्व और कर्तव्यों के प्रति कोई उसका लेना-देना नहीं लगता। मानसिकता यह हो गई हमारे अधिकार क्या है यह जानने से पहले हमें बताया जाए कि दायित्व और कर्तव्य क्या है पिछले दिनों यूट्यूब पर कई वीडियो देखने में आए। इनमें देखा गया दुर्घटना घटी तब लोग वीडियो बनाने में मशगूल है न कि जान बचाने में। यह सब क्या हो रहा है कहां गई हमारी मानवीय संवेदना यह हमारा कर्तव्य क्या केवल मात्र घटना को किस तरीके से प्रदर्शित करें यही रह गया क्या हमारी संवेदना तो लगता है खत्म हो गई। संवेदना के साथ-साथ लगता है करुणा दया भाव में भी बेहद कमी आ रही है। प्रश्न यह है ऐसा क्यों हो रहा है सोशल मीडिया का जमाना होने कारण के लगता है , हर व्यक्ति घटना को अपने नजरिए से देखकर सबसे पहले परोसना या बताना या प्रचारित करना चाहता है। जबकि उसका दायित्व है वह मानवाधिकार के तहत कार्य करें , नागरिक होने कर्त्तव्य निभाए। पुलिस को अधिकार है कानून व्यवस्था बनाए रखने का। पर वे भी डंडे बरसा कर क्या बताना चाहते है य...

सजगता का सार

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  स्वलप शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी द्वारा लिखा गया कहावत पर यह लेख जो कि हमें सजग रहने की प्रेरणा देता है। यह इसमे कहा गया प्रमाद ना करें । प्रमादी   व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।   हर कार्य को सजगता के साथ करने का प्रयास करें जब ही हम सफल हो पाएंगे। -----मर्यादा कुमार कोठारी   सूतो रे पाडा लावे यह शब्द समूह ठेठ ग्रामीण अंचल की सभ्यता से जुड़े होने के उपरांत भी इसमें जागरण का जो युग बोध निहित है , वह स्वयं में अत्यंत सारभूत व सार्थक है। कहा जाता है कि एक गाँव में दो व्यक्ति पास-पास रहते थे , दोनों के एक-एक भैंस थी व संयोग से दोनों का गर्भाधान साथ ही हुआ। एक व्यक्ति भैंस की पूरी सार-संभाल करता व उसके गर्भ का पूरा ध्यान रखता जबकि दूसरा व्यक्ति अपने आलस्य और प्रमाद के कारण भैंस का पूरा ध्यान नहीं रख पाता। गर्भाधान की तरह दोनों भैंसों का प्रसव रात्रि में एक ही समय हुआ। भैस की सार-संभाल करने वाला उस समय जाग रहा था व उसका पड़ोसी सोया हुआ था। जागने वाले की भैंस ने पाड़े (बछड़े) को जन्म दिया व पड़ोसी की भैंस ने पाड़ी (बछड़ी) को जन्म दिया। पाड़ी...

सगपण, सौदो, चाकरी, राजीपे रा खेल

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  स्वलप शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी का लिखा हुआ कहावतों पर यह लेख वर्तमान संदर्भ में समसामयिक है क्योंकि तलाक और संबंध विच्छेद बहुत बढ़ रहे हैं। उसका कारण है हमने बिना या पुरी जानकारी   किए बिना संबंध कर लिया और उसका आगे परिणाम अच्छा नहीं आया। यह लोकोक्ति हमें बताती है   संबंध करते समय ही   सारी बातें देख परख कर एक दूसरे को समझ कर करना चाहिए। जिससे कि आगे मुसीबत ना खड़ी हो। विषय वर्तमान परिपेक्ष में हम सबके लिए प्रेरणादायक है। -   मर्यादा कुमार कोठारी पाणी पीजे छाण ने , सगपण कीजे जाण ने इस लोकोक्ति में स्वस्थ व सुखी जीवन जीने का अपूर्व गुर निहित है। पानी में कई प्रकार के कीटाणु और जीवाणु रहते है। अतः तालाब , कुंआ या नल का पानी वैसी ही स्थिति में पीने से कीटाणु और जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते है। व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनायास बिगाड़ देते है। जिससे इस लोकोक्ति में व्यक्ति को छानकर पानी पीने का आह्वान किया गया है। यह सर्वविदित है कि गांवों में तालाबों का अनछाना पानी पीने से  नारू का रोग बहुत प्रचलित है। नलों में टंकियों से...