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सगपण, सौदो, चाकरी, राजीपे रा खेल

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  स्वलप शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी का लिखा हुआ कहावतों पर यह लेख वर्तमान संदर्भ में समसामयिक है क्योंकि तलाक और संबंध विच्छेद बहुत बढ़ रहे हैं। उसका कारण है हमने बिना या पुरी जानकारी   किए बिना संबंध कर लिया और उसका आगे परिणाम अच्छा नहीं आया। यह लोकोक्ति हमें बताती है   संबंध करते समय ही   सारी बातें देख परख कर एक दूसरे को समझ कर करना चाहिए। जिससे कि आगे मुसीबत ना खड़ी हो। विषय वर्तमान परिपेक्ष में हम सबके लिए प्रेरणादायक है। -   मर्यादा कुमार कोठारी पाणी पीजे छाण ने , सगपण कीजे जाण ने इस लोकोक्ति में स्वस्थ व सुखी जीवन जीने का अपूर्व गुर निहित है। पानी में कई प्रकार के कीटाणु और जीवाणु रहते है। अतः तालाब , कुंआ या नल का पानी वैसी ही स्थिति में पीने से कीटाणु और जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते है। व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनायास बिगाड़ देते है। जिससे इस लोकोक्ति में व्यक्ति को छानकर पानी पीने का आह्वान किया गया है। यह सर्वविदित है कि गांवों में तालाबों का अनछाना पानी पीने से  नारू का रोग बहुत प्रचलित है। नलों में टंकियों से...

स्त्री - समानता - सुरक्षा - सम्मान

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हमारी यह सृष्टि द्विसंयोगिक है। एक पक्ष का प्रतिपक्ष भी होता है। दिन है तो रात भी है , जीव है तो अजीव का भी अस्तित्व है , मिलन हुआ है तो वियोग होगा ही। इसी सृष्टि में निर्माण एवं संचालन हेतु नर व मादा की संरचना हुई (मनुष्य-पशु-पक्षी सभी जीव योनियों में)। मनुष्यों को छोड़ कर शेष जीव सृष्टि में नर एवं मादा का सामाजिक जीवन प्राकृतिक रूप से , बंधे हुए नियमों से चलता है। मानवीय सभ्यता का जैसे-जैसे विकास हुआ , स्त्री-पुरुष की भूमिकाएं बदलती रही , स्थितियों में परिवर्तन हुए एवं धीरे-धीरे असमानता वाले समाज का निर्माण हो गया। हजारों वर्ष पूर्व , मानवीय सभ्यता के आरंभिक अवस्था में , मनुष्य भोजन एवं अन्य आवश्यकता हेतु शिकार व वनो पर निर्भर था , हर रोज शिकार करना , हिंसक पशुओं से अपने आप को बचाना आदि दुष्कर कार्य पुरुषों के अधिक उपयुक्त थे , स्त्री की जैविक जवाबदारियां थी , छोटे शिशु या बच्चो के साथ जंगल जाना अत्यधिक जोखमी था। अतः स्त्री को सुरक्षित रखा जाता था। उस परिस्थिति में काम का आदर्श बंटवारा था। सिंधु - सरस्वती सभ्यता , उसके बाद के वैदिक काल , सोलह जनपद काल , मौर्य साम्राज्य- गुप्त...

संबंधों की व्याख्या: आधुनिक संदर्भ में

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जब से मनुष्य ने समूह में रहना आरंभ किया है , मनुष्य संबंधों की डोर से बंधा हैं। पति-पत्नी , माता-पिता , भाई-बहन , मित्र इत्यादि अनेकानेक संबंधों से हम जीवन पर्यन्त जुड़े रहते है। मानव सभ्यता के प्रारंभिक वर्षों से 18वीं शताब्दी तक इन संबंधों का निर्वहन लगभग निर्बाध रूप से एक समान होता रहा , परिवार समाज की मर्यादा ही व्यक्ति के लिए नैतिक कानून रहे एवं इसके अनुपालन में ही जीवन यापन होता था। इस काल खंड में सबसे बड़ा परिवर्तन स्त्रियों की दशा में आया था , प्राचीन काल में आर्थिक ,   सामाजिक और राजनीतिक रूप से जितनी स्त्रियां स्वतंत्र थी , ईसा के 1000 वर्ष बाद ,   स्त्रियां धीरे-धीरे दोयम दर्जे की बन गई एवं समाज में पितृसत्ता की स्थापना हुई । 18वीं शताब्दी के समय यूरोपियन प्रजा धीरे-धीरे एशिया , अफ्रीका एवं विश्व के अन्य भागों में व्यापारिक कार्यों के लिए जाने लगी , यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई तथा यहीं से यूरोप का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पूरी मानव सभ्यता पर पड़ा। स्त्रियों में चेतना जागृत होने लगी , निरंतर चलने वाले युद्धों में पुरुषों के रत रहने के कारण घरेलू एवं साम...