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जैन धर्म के सिद्धांत

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    जैन   धर्म   के   सिद्धांत   - भारत   में   प्राचीन   काल   से   धर्म   की   दो   परम्पराएं   प्रमुख   रही   है।    प्रथम   सनातन   धर्म   की    जिसे   आज   हिन्दू   धर्म   कहते   है  , दूसरी   श्रमण   धर्म   परंपरा   जिसमें   जैन   एवं   बौद्ध   धर्म   समाविष्ट   होते   है।    इस   परम्परा   में   जैन   धर्म   का   प्रवर्तन   प्राचीन   है   एवं   २४   तीर्थंकरों   की   सुव्यवस्थित   प्रणाली   में   जैन   दर्शन   और   सिद्धांत   गुम्फित   है।    जैन   धर्म   के   सिद्धांत   अहिंसा  , संयम  , अपरिग्रह  , श्रम   और   स्वालम्बन   पर   आधारित   होने   के   कारण   इसकी   कुछ    विलक्षण    विशेषताए   है   जो   इसे   वैचारिक   स्तर   पर   अन्य   धर्मो   से   भिन्न   करती   है।    जैन   धर्म   के   कुछ   सिद्धांतो   की   संक्षेप   में   हम   यहाँ   चर्चा   करेंगे।   १ . जैन   धर्म   यह   मानता   है   कि   यह   विश्व   अनादि  , अनंत   और   शाशवत   है।    इसका   कोई   कर्ता   या   सृष्ट्रा   नहीं   है।    जड़   और   चेतन   की   सत्ता   अनादि   काल   से   अस्तित्व   में   है   और   इनकी   अवस्