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जैन धर्म के सिद्धांत

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भारत में प्राचीन समय से धर्म की दो धाराएं रही हैं , श्रमण परंपरा एवं वैदिक परंपरा , जैन धर्म श्रमण परंपरा मानने वाला   है। जैन धर्म के विषय में आमजन को बहुत अधिक जानकारी नहीं है , कुछ समय पूर्व तक पश्चिम में पश्चिमी दार्शनिक बौद्ध तथा जैन धर्म को एक ही मानते थे या जैन धर्म को बौद्ध धर्म की एक शाखा समझा जाता था । जैन धर्म को सरल शब्दों में हम समझने का प्रयास करेंगे जैन धर्म के मानने वालों के अनुसार यह विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक है , भगवान आदिनाथ से आरंभ होकर इसमें २४ तीर्थंकरों की परंपरा है । इतिहास के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक जैन धर्म का प्रवर्तन भगवान महावीर ने आज से लगभग २६०० वर्ष पूर्व किया था , जैन धर्म की मुख्य बातें निम्न है। १. जैन दर्शन अवतारवाद में विश्वास नहीं करता है यानी कि कोई ईश्वर का अवतार आएगा जो सृष्टि का निर्माण या संहार करेगा , इसमें जैन धर्म की मान्यता नहीं है , जैन धर्म अत्मकृ त त्व वादी है , प्रत्येक जीव या चेतन की आत्मा परमा त्मा होने की क्षमता रखती है। व्यक्ति या जीव राग द्वेष से रहित होकर आत्मा की सर्वोच्च स्थिति यानी कि सिद्ध बन जा