दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो"
दिल की गिरह खोल दो , चुप न बैठो " जिंदगी की परीक्षा जहां गिरना भी स्वयं को है और संभालना भी स्वयं को है । परीक्षा मात्र विद्यालयों या विश्व विद्यालयों में ही नहीं होती वरन जीवन के पग पग पर , प्रति पल , प्रतिक्षण परीक्षा से गुजरते है । अध्ययन काल में पाढ़्य पुस्तकों की परीक्षा , व्यवसाय में व्यवसायिक कुशलता की परीक्षा , सामाजिक जीवन में रिश्तों की परीक्षा और अध्यात्म के क्षेत्र में श्रद्धा की परीक्षा से गुजरना पड़ता है। इन सब पड़ावों को सफलता पूर्वक पार करने का मूल मंत्र है " दिल की गिरह खोल दो , चुप न बैठो " । इस बात को हम राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के बचपन के प्रसंग से समझते हैं , बालक मोहनदास करमचंद गांधी किशोरावस्था में बुरी लतों का शिकार हो गए थे , अपनी कुछ गलत आदतों की संतुष्टि के लिए , अपने भाई के सोने क