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अधिकार : दायित्व और कर्तव्यों

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  आज के दौर में अधिकारों की आपाधापी चल रही है। पता नहीं हर व्यक्ति यह चाहता है कि यह करना मेरा ही अधिकार है। लेकिन दायित्व और कर्तव्यों के प्रति कोई उसका लेना-देना नहीं लगता। मानसिकता यह हो गई हमारे अधिकार क्या है यह जानने से पहले हमें बताया जाए कि दायित्व और कर्तव्य क्या है पिछले दिनों यूट्यूब पर कई वीडियो देखने में आए। इनमें देखा गया दुर्घटना घटी तब लोग वीडियो बनाने में मशगूल है न कि जान बचाने में। यह सब क्या हो रहा है कहां गई हमारी मानवीय संवेदना यह हमारा कर्तव्य क्या केवल मात्र घटना को किस तरीके से प्रदर्शित करें यही रह गया क्या हमारी संवेदना तो लगता है खत्म हो गई। संवेदना के साथ-साथ लगता है करुणा दया भाव में भी बेहद कमी आ रही है। प्रश्न यह है ऐसा क्यों हो रहा है सोशल मीडिया का जमाना होने कारण के लगता है , हर व्यक्ति घटना को अपने नजरिए से देखकर सबसे पहले परोसना या बताना या प्रचारित करना चाहता है। जबकि उसका दायित्व है वह मानवाधिकार के तहत कार्य करें , नागरिक होने कर्त्तव्य निभाए। पुलिस को अधिकार है कानून व्यवस्था बनाए रखने का। पर वे भी डंडे बरसा कर क्या बताना चाहते है य...

गांधीजी की सही समझ

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गांधी व गीता भारत की विश्व को ऐसी दो देन है, जिन पर हर विचारक, हर चिंतक ने अपने - अपने दृष्टिकोण से विश्लेषण किया है. गांधीजी के कट्टर समर्थक, गांधी जी को मानव नहीं वरन् भगवान तुल्य मानते हैं तथा गांधीजी के आलोचक हमारी प्रत्येक समस्या की जड़ गांधीजी में खोज रहे हैं, कहावतें तक बन गई "मजबूरी का दूसरा नाम महात्मा गांधी है"  इन दो अति के मध्य आज के परिप्रेक्ष्य में निरपेक्ष दृष्टिकोण से गांधी जी पर विचार करने की आवश्यकता है। गांधीजी एक महामानव थे लेकिन मानवीय गुण - अवगुण, वेदना - संवेदना, स्वाभिमान - अभिमान ये सब  भी गांधीजी मे थे। हम गांधी जी का तटस्थ विश्लेषण करने का प्रयास करेंगे। गांधी जी की जीवन का जो सबसे अटूट पहलू - शाश्वत पहलू है. वह सत्य एवं अहिंसा के प्रति गांधीजी की आस्था थी। गांधीजी कहते थे सत्य ही ईश्वर है स्वयं की आत्मकथा का नाम भी सत्य के प्रयोग रखा क्योंकि बचपन से लेकर मृत्यु तक गांधीजी वह करते रहे लेकिन गांधीजी का सत्य जड़ नहीं था, उन्होंने लिखा है कि "लिखते समय मैं यह कभी नहीं सोचता कि पहले मैंने क्या कहा था। किसी प्रस्तुत प्रश्न के ऊपर अपने पिछले ...