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समय - कल और आज

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समय का जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है एक समय था जब हमारे परदादाजी - पर दा दीजी 2 या 4 जोड़ी कपड़े में सारी जिंदगी निकाल लेते थे। घूमना-फिरना उनका इतना हि होता था की जसोल से जोधपुर (करीब 120 किमी) भी उनको एक अलग ग्रह लगता था और इतनी सादगी के साथ रहते थे , मोटा पहनते थे , मोटा खाते थे। सारी चीजें उनके पास शुद्धता के रूप में रहती थी क्योंकि दसियों गाय-भैंसों घर में बंधी हुई थी । आने जाने के लिए घर में ऊंट बंधे हुए थे , बैलगाड़ियाँ थी । घर में खाने के लिए धान के रूप में बाजरी की कोई कमी नहीं थी । कोठार के को ठार भरे रहते थे। परिवार भी सारे एक साथ रहते थे और सभी सुख दुख में साथ निभाते थे और एक ही पॉल के अंदर सात पीढ़ी के परिवार साथ में ही रहते थे। सभी चाचा - ताऊ , भाई - बहन , दादा - दादी आपस में बैठकर सुख दुख की बातें करते थे और जीवन का वह एक अलग ही आनंद उठाते थे। उस समय संतोषी जीवन था। सभी मेहनतकश लोग थे। सारे कार्य हाथ से करते थे तथा संतोष उनका सबसे बड़ा धन था। परिवार में एकजुटता उनकी पूंजी थी। जरूर तें सीमित थी। इच्छाओं का संयम था। जिस भी हाल में थे , उसमें खुश व आनं

काल का चक्र

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अभी कल व्हाट्सएप मैसेज पढ़ रहा था तो मैसेज पढ़ा , शून्य का आविष्कार आर्यभट्ट ने किया। आर्यभट्ट तो कुछ सैकड़ों वर्ष पहले ही पैदा हुए। रावण के 10 सिर तो उस युग में भी थे , तो फिर 10 की गिनती कैसे होती थी ? ऐसी कई बातें हैं , आजकल चर्चा में हम बराबर सुनते हैं। यही पिछले दिनों जब रामायण देखी गई तो लोगों ने पुष्पक विमान को देखा , कहा गया कि राइट भाइयों ने हवाई जहाज का अविष्कार किया , उस जमाने में यह क्या था ? ऐसे ही हमने जब रामायण और महाभारत के युद्ध देखें और उसमें अस्त्र-शस्त्र देखे , चाहे ब्रह्मास्त्र हो , चाहे पाशुपतास्त्र हो , नारायण अस्त्र हो और भी कोई अस्त्र हो , वज्र भी हो सकता है , यह सारे जो अस्त्र-शस्त्र थे , इनमें इतनी क्षमता बताई जाती है कि पूरा विश्व या ब्रह्मांड को झकझोर दे। क्या उस जमाने में इतनी विज्ञान की प्रगति थी ? क्या उस जमाने में इतना सब कुछ था ? अगर हाँ , तो फिर वह कहां गया ? यह प्रश्न हमें अपने आप से भी पूछना पड़ेगा। मैंने कुछ पुरानी पुस्तकें पढ़ी तो पाया वैदिक धर्म में चार युग बताए गए जो हमेशा साइकिल की तरह चलते रहते हैं - सतयुग