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Showing posts from June, 2020

व्यथा नहीं व्यवस्था करें

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अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली और इन दिनों पिछले कुछ समय से कई लोगों ने यह कदम उठाया जैसे कि केफे कॉफी डे के मालिक सिद्धार्थ , थानेदार भागीरथ विश्नोई एवं अन्य कई सैना में सेवारत अधिकारियों व पुलिस विभाग के अधिकारीयों , प्रासाशनिक व राजस्व सेवा के अधिकारियों , विद्यार्थीयों ,  किसानों आदि ने कई लोगों ने यह कदम उठाया। क्यों उठाया ? यह विचारणीय प्रश्न है। आत्महत्या आदमी तब करता है , जब उसे अपने सारे दरवाजे बंद नजर आते हैं। उसे लगता है अब कोई उम्मीद बाकी नहीं रही जीने से मरना बेहतर के है। अंत में फिर उसको यही कदम उठाना सबसे सरल और सही लगता है। इतना अवसाद में - तनाव के साथ डर , भय , आशंका में घिर जाता है कि उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता। यह चक्रव्यूह है , इस चक्रव्यूह में से निकलना हर एक के बस का   नहीं है। अभिमन्यु भी चक्रव्यूह में घुसना जानता था पर बाहर निकलना नहीं। मैं यह सोचता हूं इन सब के पास समस्याएं एक जैसी भी नहीं हैं ; सब की समस्याएं अलग-अलग होती हैं। लेकिन जब कोई पद पर रहते हुए या कोई सेलिब्रिटी या कोई बड़ा धनिक आत्महत्या जैसे कार्य करता

ग्रामीण अंचल और खेल

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समाचार पत्र में समाचारों के अंतर्गत जानकारी प्राप्त हुई एक ग्रामीण लड़की साइकिल पर अपने पिताजी को बिठाकर पंद्रह सौ किलोमीटर 5 दिन में पहुंच गई। अब उसकी प्रतिभा के लिए भारतीय साइकिलिंग संघ ने उसे अपने यहां आमंत्रित किया है , ऐसे समाचार पहले भी हमने कई बार प ढ़े , दौड़ में बुधिया के बारे में या अन्य व्यक्तियों के बारे में खबरें समय-समय पर अखबारों में छपी। जब लगता है , जो प्रतिभा है छुपती नहीं है , छप जाती है। प्रतिभाओं का ठेका केवल शहरी लोगों का ही नहीं है , ग्रामीण इलाके में भी बिना प्रशिक्षण के , बिना किसी बड़े तामझाम के भी बड़ा काम करने के लिए अच्छी प्रतिभाएं है। बस सवाल यह है उन्हें तराशना पड़ेगा । मैं याद करूं जब तीरंदाज लिंबाराम गांव से आए थे और ओलंपिक तक पहुंच गए । ऐसे कई छोटे-छोटे गांवों में प्रतिभाएं हैं , लेकिन लगता यह है कि हमारे जो हुकुम रा न है , उन्हें केवल शहरी प्रतिभाओं पर ज्यादा ध्यान होता है और गांव का जो मेहनत का काम करते है , वहां जिस तरीके की आबोहवा है , उस मेहनत में प्रतिभा एं ज्यादा कार्यकुशल बन सकती है। आप पिछले सालों की प्रतियोगी परीक्ष

गांधीजी की सही समझ

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गांधी व गीता भारत की विश्व को ऐसी दो देन है, जिन पर हर विचारक, हर चिंतक ने अपने - अपने दृष्टिकोण से विश्लेषण किया है. गांधीजी के कट्टर समर्थक, गांधी जी को मानव नहीं वरन् भगवान तुल्य मानते हैं तथा गांधीजी के आलोचक हमारी प्रत्येक समस्या की जड़ गांधीजी में खोज रहे हैं, कहावतें तक बन गई "मजबूरी का दूसरा नाम महात्मा गांधी है"  इन दो अति के मध्य आज के परिप्रेक्ष्य में निरपेक्ष दृष्टिकोण से गांधी जी पर विचार करने की आवश्यकता है। गांधीजी एक महामानव थे लेकिन मानवीय गुण - अवगुण, वेदना - संवेदना, स्वाभिमान - अभिमान ये सब  भी गांधीजी मे थे। हम गांधी जी का तटस्थ विश्लेषण करने का प्रयास करेंगे। गांधी जी की जीवन का जो सबसे अटूट पहलू - शाश्वत पहलू है. वह सत्य एवं अहिंसा के प्रति गांधीजी की आस्था थी। गांधीजी कहते थे सत्य ही ईश्वर है स्वयं की आत्मकथा का नाम भी सत्य के प्रयोग रखा क्योंकि बचपन से लेकर मृत्यु तक गांधीजी वह करते रहे लेकिन गांधीजी का सत्य जड़ नहीं था, उन्होंने लिखा है कि "लिखते समय मैं यह कभी नहीं सोचता कि पहले मैंने क्या कहा था। किसी प्रस्तुत प्रश्न के ऊपर अपने पिछले