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जीने की कला - कम खाना, गम खाना, नम जाना

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आज से करीब 25 वर्ष पूर्व पापा जी सोहन राज जी ने प्रेक्षा ध्यान , कथा लोक , जैन भारती आदि कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखा करते थे । वे लेख स्वल्प शब्दों में समग्र दर्शन के हिसाब से होते थे। किसी एक शब्द पर उसका विवेचन वे करते थे। वह शब्द लोकोक्ति , मुहावरा , कहावत या प्रचलित वाक्य होता था। उस ढाई दशक पूर्व लिखे गए लेखों की प्रासंगिकता आज भी है। उन्हीं लेखों में से एक लेख कम खाना , गम खाना , नम जाना आज आपके सामने प्रस्तुत है यह लेख वर्तमान जीवन में भी इतना ही महत्वपूर्ण ओर उपयोगी है , जितना कि उस समय था। आप इस लेख को पढ़कर स्वयं अपने जीवन में इन बातों को उतारेंगे तो इसलिए को पढ़ने की सार्थकता होगी। - मर्यादा कुमार कोठारी कम खाना, गम खाना, नम जाना - उपरोक्त तीन शब्द युगलों में किसी अनुभवसिद्ध व्यक्ति ने जीवन की सफलता का सार स्वरूप निचोड़कर रख दिया है , ऐसा प्रतीत होता है। व्यक्तिगत जीवन , सामाजिक जीवन एवं सामुदायिक जीवन में मनुष्य उपरोक्त शब्द युगलों को हृदयंगम कर ले , तो उसका जीवन सहज , सरल एवं सुखी बन सकता है। तीनों शब्द-युगल अक्षरों की दृष्टि से लघु होते हुए भी इनमें , प्रत्येक में