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विश्वास -किस पर करें???

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  वर्तमान जीवन का सबसे बड़ी जो समस्या है वह है विश्वास की। हम किस पर विश्वास करें। विश्वास की हालत यह है कि पिछले दिनों जब मैं देखता हूं आत्महत्याए बढ़ रही हैं। इसका कारण है कि उन्हें अपने स्वयं पर विश्वास नहीं है , जब आदमी का स्वयं से विश्वास उठ जाता है तो वह फिर आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। आज विश्वास की स्थिति यह है कि व्यक्ति किस पर विश्वास करें । रिश्तेदारों पर , धर्म गुरुओं पर , राजनेताओं पर , सरकारी अधिकारियों पर , पत्रकारिता पर या फिर न्यायपालिका किस पर करे। प्रतिदिन हम अखबारों में समाचार पढ़ते हैं कि बेटा-बेटी अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ क्या हालत करता है या बहु अपने सास-ससुर की क्या हालत करती हैं ? फिर उन्हें वृद्धाश्रम की ओर देखना पड़ता है। तो क्या यह हमारे संस्कार हैं ? हमारी संस्कृति ने हमें यह सिखाया है ? जहां पिछले दिनों पारिवारिक दुष्कर्म की बातें भी कई बार आई। यह भी हमारे समाज पर धब्बा है , दाग है। जहां हमारे विश्वास के रिश्ते हैं उन पर बहुत बड़ी चोट है। अभी पिछले दिनों न्यायाधिपति जसराज जी चोपड़ा बता रहे थे एक बेटे ने मां को विदेश अपने साथ ले जाने की बात कही। व...

कहते कुछ हैं करते कुछ है

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  सारी दुनिया मुंह पर मास्क लगाकर चल रही है पर कोरोना वायरस के डर से। ये देखकर कई बार यह लगता है कि पहले ही कई लोग कई मुंह लगाकर रहते आ रहे हैं। कहते कुछ हैं करते कुछ है। यह बात हर स्तर पर हर जगह पर देखने को आपको मिल सकती है। थोड़ा सा हम ध्यान लगाएं तो पता चलेगा जो मानदंड है या जो पैमाना है वह अपने लिए अलग दूसरे के लिए अलग। यह बात गले कम उतरती है लेकिन ऐसा हम सब करते हैं। मैंने जहां तक अनुभव किया है सब जगह यही चलता है जैसे मैं राजनीति की बात करूं तो राजनीति में अपनी पार्टी में कोई दूसरा  पार्टी का सदस्य आता है तो कहते हैं उसका हृदय परिवर्तन हो गया और अपनी पार्टी से कोई सदस्य जाता है तो कहा जाता है वह दलबदलू है। यह दोहरापन जो है यह हमारी दुनिया में बराबर चलता है। अब मास्क लगाने के बाद तो चेहरों का पता ही नहीं चलता। मेरे को अभी कई बार बाहर जाने का काम पड़ा तो कई लोगों ने कहा पहचाना नहीं क्योंकि चेहरे पर मास्क था। लेकिन मुझे लगता है हम तो वैसे भी कई चेहरे लगा कर चलते हैं जहां दोहरा पन में जीते हैं। ये मास्क तो बाहरी आवरण है भीतर का चेहरा  जो दोगलापन लिए है वह कैसे नजर आए। म...

स्त्री - समानता - सुरक्षा - सम्मान

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हमारी यह सृष्टि द्विसंयोगिक है। एक पक्ष का प्रतिपक्ष भी होता है। दिन है तो रात भी है , जीव है तो अजीव का भी अस्तित्व है , मिलन हुआ है तो वियोग होगा ही। इसी सृष्टि में निर्माण एवं संचालन हेतु नर व मादा की संरचना हुई (मनुष्य-पशु-पक्षी सभी जीव योनियों में)। मनुष्यों को छोड़ कर शेष जीव सृष्टि में नर एवं मादा का सामाजिक जीवन प्राकृतिक रूप से , बंधे हुए नियमों से चलता है। मानवीय सभ्यता का जैसे-जैसे विकास हुआ , स्त्री-पुरुष की भूमिकाएं बदलती रही , स्थितियों में परिवर्तन हुए एवं धीरे-धीरे असमानता वाले समाज का निर्माण हो गया। हजारों वर्ष पूर्व , मानवीय सभ्यता के आरंभिक अवस्था में , मनुष्य भोजन एवं अन्य आवश्यकता हेतु शिकार व वनो पर निर्भर था , हर रोज शिकार करना , हिंसक पशुओं से अपने आप को बचाना आदि दुष्कर कार्य पुरुषों के अधिक उपयुक्त थे , स्त्री की जैविक जवाबदारियां थी , छोटे शिशु या बच्चो के साथ जंगल जाना अत्यधिक जोखमी था। अतः स्त्री को सुरक्षित रखा जाता था। उस परिस्थिति में काम का आदर्श बंटवारा था। सिंधु - सरस्वती सभ्यता , उसके बाद के वैदिक काल , सोलह जनपद काल , मौर्य साम्राज्य- गुप्त...