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आचार्य श्री भिक्षु विचार दर्शन और अणुव्रत निदेशक तत्व

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                     आचार्य श्री भिक्षु विचार दर्शन और अणुव्रत निदेशक तत्व  तेरापंथ का  प्रवर्तन आचार्य श्री भिक्षु द्वारा विक्रम संवत १८१७ मे हुआ। आचार्य श्री भिक्षु , भगवान महावीर प्रवर्तित अहिंसा के महाभाष्यकार थे , उस युग की प्रचलित मान्यताओं के विपरीत, आपने भगवान की वाणी का सही स्वरूप प्रगट किया, इसी कारण से इसे भिक्षु दर्शन /तेरापंथ दर्शन कहा गया।  आचार्य श्री भिक्षु के नवमे पट्टधर आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से संयम,नैतिकता एवं व्यवहार शुद्धि का मार्ग जन जन को बताया । अणुव्रत दर्शन के निदेशक तत्व , मानो आचार्य श्री तुलसी ने भिक्षु स्वामी के दर्शन को युगीन भाषा मे प्रस्तुत किया ,ऐसा लगता है। अणुव्रत दर्शन के निदेशक तत्व आचार्य भिक्षु के विचारों का सार तत्व है। अणुव्रत दर्शन का प्रथम निदेशक तत्व है, "दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता". आचार्य श्री भिक्षु ने उस युग की प्रचलित मान्यताओं के विपरीत स्पष्ट घोषणा कि, बड़े जीवों की रक्षा के लिए छोटे जीवों का हनन किसी भी अपेक्षा से धर्म नहीं है। आ...

जैन धर्म के सिद्धांत

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    जैन   धर्म   के   सिद्धांत   - भारत   में   प्राचीन   काल   से   धर्म   की   दो   परम्पराएं   प्रमुख   रही   है।    प्रथम   सनातन   धर्म   की    जिसे   आज   हिन्दू   धर्म   कहते   है  , दूसरी   श्रमण   धर्म   परंपरा   जिसमें   जैन   एवं   बौद्ध   धर्म   समाविष्ट   होते   है।    इस   परम्परा   में   जैन   धर्म   का   प्रवर्तन   प्राचीन   है   एवं   २४   तीर्थंकरों   की   सुव्यवस्थित   प्रणाली   में   जैन   दर्शन   और   सिद्धांत   गुम्फित   है।    जैन   धर्म   के   सिद्धांत   अहिंसा  , संयम  , अपरिग्रह  , श्रम   और   स्वालम्बन   पर   आधारित   होने   के   कारण   इसकी   कुछ  ...