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तलाक से परिवार पर असर: सिर्फ पति-पत्नी की बात नहीं है !

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  तलाक से परिवार पर असर: सिर्फ पति-पत्नी की बात नहीं है भारतीय सामाजिक परिवेश में विवाह मात्र  दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है वरन् दो परिवारों और दो कुलों का भी संबंध है. जैन - हिंदू संस्कृति में विवाह जीवन का अनिवार्य अंग है, जन्म जन्मांतर का रिश्ता है। पाश्चात्य  सांस्कृतिक परिवेश में विवाह मात्र दो व्यक्तियों के साथ रहने मात्रा का संबंध है, आपसी मेल नहीं होने से स्वतंत्र होने की स्वतंत्रता सामाजिक रूप से मान्य है। तलाक, शादी टूटना, संबंध विच्छेद , विवाह खत्म होना आज भी भारतीय परिवेश में अनगमता है, सहज स्वीकार्य नहीं है. पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारत में भी आज तलाक के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ रहे है, स्त्री पुरुष दोनों की सोच में फर्क आ रहा है तथा आज सम्बन्धों में पारिवारिकता से अधिक व्यक्तिगतता आ रही है, लेकिन यह स्थिति बहुत सुखद है ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। तलाक के साथ साथ, हिंसा , अनावश्यक आक्षेप, बालकों की परवरिश में कमी, कानूनी दांवपेचों और न्याय व्यवस्था का दुरूपयोग और कुटुंबो के मध्य शत्रुता का भाव आदि घटनाएं बढ़ रही है।  पति पत्नी रिश्ते में सबसे जरूरी...

अधिकार : दायित्व और कर्तव्यों

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  आज के दौर में अधिकारों की आपाधापी चल रही है। पता नहीं हर व्यक्ति यह चाहता है कि यह करना मेरा ही अधिकार है। लेकिन दायित्व और कर्तव्यों के प्रति कोई उसका लेना-देना नहीं लगता। मानसिकता यह हो गई हमारे अधिकार क्या है यह जानने से पहले हमें बताया जाए कि दायित्व और कर्तव्य क्या है पिछले दिनों यूट्यूब पर कई वीडियो देखने में आए। इनमें देखा गया दुर्घटना घटी तब लोग वीडियो बनाने में मशगूल है न कि जान बचाने में। यह सब क्या हो रहा है कहां गई हमारी मानवीय संवेदना यह हमारा कर्तव्य क्या केवल मात्र घटना को किस तरीके से प्रदर्शित करें यही रह गया क्या हमारी संवेदना तो लगता है खत्म हो गई। संवेदना के साथ-साथ लगता है करुणा दया भाव में भी बेहद कमी आ रही है। प्रश्न यह है ऐसा क्यों हो रहा है सोशल मीडिया का जमाना होने कारण के लगता है , हर व्यक्ति घटना को अपने नजरिए से देखकर सबसे पहले परोसना या बताना या प्रचारित करना चाहता है। जबकि उसका दायित्व है वह मानवाधिकार के तहत कार्य करें , नागरिक होने कर्त्तव्य निभाए। पुलिस को अधिकार है कानून व्यवस्था बनाए रखने का। पर वे भी डंडे बरसा कर क्या बताना चाहते है य...

सगपण, सौदो, चाकरी, राजीपे रा खेल

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  स्वलप शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी का लिखा हुआ कहावतों पर यह लेख वर्तमान संदर्भ में समसामयिक है क्योंकि तलाक और संबंध विच्छेद बहुत बढ़ रहे हैं। उसका कारण है हमने बिना या पुरी जानकारी   किए बिना संबंध कर लिया और उसका आगे परिणाम अच्छा नहीं आया। यह लोकोक्ति हमें बताती है   संबंध करते समय ही   सारी बातें देख परख कर एक दूसरे को समझ कर करना चाहिए। जिससे कि आगे मुसीबत ना खड़ी हो। विषय वर्तमान परिपेक्ष में हम सबके लिए प्रेरणादायक है। -   मर्यादा कुमार कोठारी पाणी पीजे छाण ने , सगपण कीजे जाण ने इस लोकोक्ति में स्वस्थ व सुखी जीवन जीने का अपूर्व गुर निहित है। पानी में कई प्रकार के कीटाणु और जीवाणु रहते है। अतः तालाब , कुंआ या नल का पानी वैसी ही स्थिति में पीने से कीटाणु और जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते है। व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनायास बिगाड़ देते है। जिससे इस लोकोक्ति में व्यक्ति को छानकर पानी पीने का आह्वान किया गया है। यह सर्वविदित है कि गांवों में तालाबों का अनछाना पानी पीने से  नारू का रोग बहुत प्रचलित है। नलों में टंकियों से...

किरदार माता-पिता और संतान

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  स्वल्प शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी ने राजस्थानी कहावत ऊपर लेख लिखें। उसी में से एक यह लेख वर्तमान संदर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि यह जब लिखा गया था तब भी था। आज के परिपेक्ष में हम देख रहे हैं कि जहां वृद्ध माता-पिता वृद्धाश्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं , जिन्होंने अपना पेट काटकर , कितने ही मंदिरों में मन्नत मांग कर , माथा टेक कर , अपने लिए संतान को चाहा और वह संतान अपने दायित्वों से विमुख हो जाती है पता ही नहीं चलता। यह लेख हम सबके लिए पठनीय , चिंतनीय व माननीय है। - मर्यादा कुमार कोठारी छोरू कोछोरू हवे , माईत कुमाईत नीं वे यह लोकोक्ति एक ऐसे सत्य को उद्घाटित करती है जो युगो-युगों तक स्थायित्व लिए रहा , पर लगता है कि भौतिकवादी युग की भोगलिप्सा ने इसका अर्थ बदल दिया है। राजस्थानी भाषा में ‘‘ छोरू ’’ पुत्र या लड़के को कहते है और ‘‘ माईत ’’ माता-पिता को कहते है , अतः लोकोक्ति का शब्दार्थ होता है कि पूत कपूत हो सकता है , पर माता-पिता कभी कु-माता-पिता नहीं हो सकते , अर्थात् माता-पिता , कभी अपनी संतान का अहित नहीं कर सकते। माता-पिता के शारीर...