तलाक से परिवार पर असर: सिर्फ पति-पत्नी की बात नहीं है !
तलाक से परिवार पर असर: सिर्फ पति-पत्नी की बात नहीं है
भारतीय सामाजिक परिवेश में विवाह मात्र दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है वरन् दो परिवारों और दो कुलों का भी संबंध है. जैन - हिंदू संस्कृति में विवाह जीवन का अनिवार्य अंग है, जन्म जन्मांतर का रिश्ता है। पाश्चात्य सांस्कृतिक परिवेश में विवाह मात्र दो व्यक्तियों के साथ रहने मात्रा का संबंध है, आपसी मेल नहीं होने से स्वतंत्र होने की स्वतंत्रता सामाजिक रूप से मान्य है। तलाक, शादी टूटना, संबंध विच्छेद , विवाह खत्म होना आज भी भारतीय परिवेश में अनगमता है, सहज स्वीकार्य नहीं है. पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारत में भी आज तलाक के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ रहे है, स्त्री पुरुष दोनों की सोच में फर्क आ रहा है तथा आज सम्बन्धों में पारिवारिकता से अधिक व्यक्तिगतता आ रही है, लेकिन यह स्थिति बहुत सुखद है ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। तलाक के साथ साथ, हिंसा , अनावश्यक आक्षेप, बालकों की परवरिश में कमी, कानूनी दांवपेचों और न्याय व्यवस्था का दुरूपयोग और कुटुंबो के मध्य शत्रुता का भाव आदि घटनाएं बढ़ रही है।
पति पत्नी रिश्ते में सबसे जरूरी है एक दूसरे को सम्मान, समझ और स्थान (space) देना। पत्नी जब एक परिवार छोड़कर दूसरे परिवार जाती है तब अपने कुछ संस्कार, कुछ आदतें साथ में लेकर आती है, इसी तरह जब परिवार में नया सदस्य आता है तब पुराने सदस्यों को उसे अपनाने में समय और समायोजन दोनों की आवश्यकता होती है। इस कार्य के लिए धैर्य, प्रमोद भावना और स्नेह की भावना अनिवार्यता है। पुराने समय जब स्त्रियों को दबाया जाता था, शिक्षा से वंचित किया जाता था तब स्त्री भी घुट घुट कर जीने को मजबूर थी। आधुनिक काल मे स्त्री शिक्षित है, आर्थिक रूप से सक्षम है तब पुरुष और परिवार दोनों को सोच बदलने की जरूरत है। जहां बदलाव हो रहा है वहां परिवार खुशहाल है, जहां आज पुराने रंग ढंग से बर्ताव हो रहा है, वहां रिश्तों में दरारे आ रही है, जो तलाक के स्तर तक पहुंच जाती है।
पति पत्नी के मध्य तलाक के कारणों पर दृष्टिपात करने पर पता चलता है तलाक के मुख्य कारण में - रिश्तों में अनावश्यक दखल अंदाजी ( सास, ननद, श्वसुर,, जेठानी, देवरानी) , आपसी सामाजिक प्रताड़ना , पारिवारिक सम्मान मे कमी और आपसी गलतफहमियां मुख्य है। तलाक रोकने में दोनों (पति पत्नी के) परिवार सबसे प्रभावी भूमिका निभाते हैं ।मनुष्य की प्रथम इकाई परिवार होता है, सुखमय पारिवारिक जीवन हमे इस भूलोक पर ही स्वर्ग की अनुभूति करता है। एक घटना प्रसंग , मेरे पिताजी श्री सोहनराज जी कोठारी जब कोटा में न्यायाधीश थे तब का है , कोर्ट मे पति -पत्नी के मध्य तलाक का विवाद आपके समक्ष आया, आपने दोनों को अगली तारीख पर "कोरा कागज" मूवी देखकर आने का परामर्श दिया। मुकदमें की तारीख पर दोनों के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आया, पिताजी ने दोनों को अगली तारीख देकर, अपना - अपना अहं छोड़कर,एक प्रयोग करने की सलाह दी " जब भी पति गलत शब्द अथवा व्यवहार करे , पत्नी शांत रहे , कटु प्रतिक्रिया न दे, इसी तरह पत्नी गलत शब्द अथवा व्यवहार करे, पति शांत रहे, तुरंत प्रतिक्रिया न दें " । अगली तारीख पर जब दोनों आए तब एक दूसरे के प्रति दोनों में ही भाव परिवर्तन हो गया और तलाक की स्थिति की जगह मिलन की सुखद स्थिति बन गई। परिवार में सभी सदस्यों को समझना चाहिए कि वे आपस में प्रतिस्पर्धी नहीं हैं वरन् एक दूसरे के पूरक हैं। "कटु प्रतिस्पर्धा" की भावना ईर्ष्या, अहंकार, द्वेष जैसे अमानवीय गुणों का सृजन करती है, "पूरकता" स्नेह, सहयोग और संवेदनशीलता आदि गुणों का विकास करती हैं। यह जरूरी है कि जब स्त्री ससुराल आए तो उसे स्नेह सिक्त सहयोग दे, पति अपनी पत्नी के माता पिता का भी उतना सम्मान करे जितना स्वयं के अभिभावकों का करता है। परिवारों का आपसी तालमेल और समझ रिश्ते की डोर को अटूट बनाती है।
तलाक का सर्वाधिक असर बच्चों पर होता है। बालकों मे संस्कार सिंचन और अच्छी परवरिश माता पिता दोनों की संयुक्त जवाबदारी है । मां जहां स्नेह सिंचन कर बालक को पल्लवित करती है , वही पिता पथ प्रदर्शक बन बालक को विकसित करता है । यह देखा गया है कि उन बच्चों में अवसाद, आत्महत्या के भाव , क्रोध, नशा प्रवृति अधिक होती है जिनके माता पिता का तलाक हो गया हो अथवा संबंध अत्यंत कटु हो। बालक के सुरक्षित भविष्य की भावना भी सम्बन्ध विच्छेद को रोकती है। बालक पति पत्नी के मध्य समन्वय का कार्य करते हैं, जोड़ने वाली एक कड़ी है, दोनों के रिश्तों का सेतु है। तलाक रोकने में बालक प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
तलाक का असर मात्र स्वयं के परिवार पर ही नहीं रहता वरन् सामाजिक रिश्तेदारी और सामाजिक सम्मान पर भी असर होता है। रिश्तेदारियां खत्म हो जाती है,समाज में आने जाने में संकोच होता है।परिवार, बच्चों के साथ रिश्तेदारी भी तलाक रोकने में सहायक होते है। अक्सर देखा गया है कि रिश्तेदार,पति पत्नी के मध्य गलतफहमी, कानाफूसी, ऊंच नीच की भावना पैदा कर संबंधों को बिगड़ने का काम करते है। पति पत्नी संबंधों में जब खटास आती है तब रिश्तेदारों को उनमें मिठास लाने का कार्य करना चाहिए । अतः रिश्तेदारी में आपसी समझ, सामंजस्य और सीमा का जान होना आवश्यक है।
संबंध समरसता के कुछ सुझाव बिंदु हो सकते है १. पति पत्नी के मध्य आपसी संवाद कभी बंद नहीं होना चाहिए। संवाद के अभाव में अविश्वास का वातावरण बनता है जो तलाक के नासूर में परिवर्तित हो जाता है।
२. पति पत्नी और परिवार के निर्णय जितने अधिक सामूहिक होंगे , उतनी ही सबकी सहभागिता होगी । निर्णय के क्रियान्वय में सुगमता रहेगी और पारिवारिक वातावरण समरस रहेगा ।
३. पति पत्नी के लिए जरूरी है कि एक दूसरे के उत्तम गुणों को देखे , समझने का प्रयास करें,यही प्रेम की भाषा है। एक दूसरे की कमियां देखना - बतलाना यह अहंकार की भाषा है। हम परिचित से संबंध बनाने हेतु प्रयत्नशील रहते है लेकिन स्वयं के स्वजनों के साथ पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर आगे नहीं बढ़ते । अतः दोनों को मुक्त मन से गणों को आत्मसात कर आगे बढ़ना चाहिए।
४.पति पत्नी दोनों को सदैव समझौता के लिए तैयार रहना चाहिए। आचार्य विजय रत्न सुंदर सूरी जी ने सुन्दर लिखा है "मन हमेशा न्याय चाहता है और हृदय समझौते के लिए सदैव तत्पर रहता है, न्याय से एक घर में दीपक जलता है लेकिन समझौते से दोनों घरों में दीपक प्रज्वलित होते है"। अतः सम्बन्धों में मन की चंचलता से नहीं , हृदय की निर्मलता से कार्य करना चाहिए।
५. यदि तलाक के सिवाय अन्य सभी समाधान के रस्ते बंद हो गए हो तो कोशिश हो कि सद्भाव,बिना कड़वाहट एवं सम्मान के साथ अलग हो जाए ताकि भविष्य में मिले तो मित्रवत मिले , बच्चों पर अलगाव का नकारात्मक असर न हो।
इस बड़े संसार में,अपना छोटा सा संसार है परिवार ।
स्नेह और सम्मान की , पतवार से चलता है परिवार ।।
टकराहट - कलह से नहीं , समझौते की धार से बढ़ता है परिवार।
आओ करे संकल्प, तलाक के दूषण से बचाएंगे हम अपना परिवार ।।
जिनेन्द्र कुमार कोठरी
अंकलेश्वर
Very nice,, Sudhir Godbole through Whatsapp
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