हे प्रभु यह तेरापंथ -1
आज मैं आपके साथ कुछ बात करूंगा - जैन धर्म के तेरापंथ संप्रदाय की। जैन धर्म आदि - अनादि काल से चला रहा
है। जिसके इस अवसरपिणी काल में प्रथम
तीर्थंकर भगवान आदिनाथ हुए, और उनके बाद 23 तीर्थंकर और हुए। चरम तीर्थंकर भगवान महावीर थे। भगवान महावीर
से वर्तमान तक अढ़ाई हज़ार वर्ष बाद
तक जैन धर्म चला आ रहा है। इस जैन धर्म में मानने
वालों में दो मान्यताएं हैं
श्वेतांबर एवं दिगंबर। इनमें भी दो अलग - अलग
हैं मूर्तिपूजक व अमूर्तिपूजक। मैं
यहां केवल जैन धर्म के तेरापंथ
संप्रदाय की बात करूंगा जो श्वेतांबर जैन है व अमूर्तिपूजक संप्रदाय है। यह संप्रदाय आज से
करीब 260 साल पहले श्वेतांबर जैन के स्थानकवासी
संप्रदाय से अलग होकर तेरापंथ के नाम से विख्यात
हुआ। इसके आदि प्रवर्तक आचार्य भिक्षु हैं। मैं गर्व करता हूं कि मैं जैन हूं और मुझे गौरव है कि मैं तेरापंथी हूं।
आज के परिपेक्ष में सभी लोग अनुयायी तो हैं पर क्या अनुयायी बनना एक भेड़ चाल नहीं है? क्या हम जिस पर गर्व करते हैं या गौरव
करते हैं, उसके सिद्धांतों को व दर्शन
को नहीं जानते हैं; तो
क्या गौरव करना उचित है??
गर्व करना उचित है?? यह भी हम सबके लिए विचारणीय है। प्रश्न है करीब अढाई सौ साल पहले
आचार्य भिक्षु ने एक धर्म क्रांति की, उसी धर्म क्रांति का प्रतिफल है तेरापंथ
संप्रदाय। तेरापंथ संप्रदाय किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, आचार्य भिक्षु
ने कहा की 'हे प्रभु यह
तेरापंथ' और
वे स्वयं प्रभु के इस पथ के
प्रथम पथिक बन गए और उसी पथ पर चल कर उन्होंने स्वयं का व आने वाली भावी
पीढ़ी का कल्याण
करने का माध्यम बता दिया।
इन 260 सालों में 11 आचार्य
हुए हैं और तेरापंथ अनवरत
रूप से आज जैन धर्म का
पर्याय बन गया है। आचार्य भिक्षु कुछ सिद्धांतों
पर, कुछ मान्यताओं
पर स्थानकवासी संप्रदाय से अलग हुए। हमें उन सिद्धांतों को जानना है, हमें आचार्य भिक्षु के दर्शन को जानना है और हमें आचार्य भिक्षु को व उनके उत्तरवर्ती आचार्यों को भी जानना है। इन सब को
जानेंगे तभी हम तेरापंथ
को जानेंगे और तेरापंथ को जानेंगे तभी हम उस
प्रभु के पथ के पथिक बन अपना कदम आध्यात्मिकता की ओर बढ़ा सकते हैं।
मैं यहाँ
बताना चाहूंगा आज से करीब 15 वर्ष
पहले भिक्षु दर्शन
कार्यशाला, मैसूर
के दौरान में प्रशिक्षक श्री बजरंग जैन ने मुझसे पूछा था मर्यादा
कुमार तुम तेरापंथी क्यों हो? मैंने बताया कि मैंने सोहन राज जी कोठारी के घर में जन्म लिया इसलिए मैं तेरापंथी हूं। वे नाराज हो गए, उन्होंने मुझे कहा कि तुम से ऐसे
उत्तर की आशा नहीं थी; मैं भी बड़े आराम के मूड में था, मैंने फिर कहा मैंने जज साहब के
घर में जन्म लिया इसलिए मैं तेरापंथी
हूं। उन्होंने क्रोधित होकर बोला मैं हरियाणा के अग्रवाल सनातनी परिवार से हूँ, हमने तेरापंथ के दर्शन को जाना, सिद्धांतों को अपनाया और फिर जाकर हमारा परिवार तेरापंथी जैन बना और तुमने बड़े
ही आराम से कह दिया कि मैंने जन्म तेरापंथी परिवार में लिया इसलिए तेरापंथी
हो गया। क्या तुम्हें सिद्धांतों का या दर्शन का
नहीं ज्ञान करना चाहिए
जिससे तुम तेरापंथी होने का गर्व या गौरव कर सको। भाई साहब बजरंग जी जैन की बात मेरे दिल को छू गई, मैंने तेरापंथ के दर्शन को पढ़ा, सिद्धांतों को जाना,
इतिहास को पढ़ने में रुचि बढ़ाई और इन सब बातों को पढ़कर, जानकर तेरापंथी होने का मैं आज गर्व या गौरव करने लायक हुआ।
तेरापंथ का इतिहास आचार्यों की कर्मजा शक्ति,
साधु - साध्वियों का तपोबल, श्रावक - श्राविकाओं की श्रद्धा व निष्ठा से भरा पड़ा है। हम उसे पढ़कर प्रेरणा
लें व स्वयं उसी आस्था के साथ संघ और संघपति के प्रति भावना परिपक्व करें। अन्यथा अपने आप को टटोलना पड़ेगा, समझना पड़ेगा
क्या मैं तेरापंथी कहलाने लायक
हूं या नहीं। तेरापंथ किसी एक का नहीं सबका पंथ है और इस पथ पर चलने वाले पथिक केवल प्रभु के पथिक है प्रभु के दिखाए हुए सन्मार्ग पर चल कर हम
अपना कल्याण कर सकते हैं।
क्रमशः ...
रचनाकार:
मर्यादा कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ
युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
Acha article jisme spast sandesh hai janmna jain hone ke sath karmana jain terapanthi hone se hamara dharmik hone ko purnta milegi. Om Arham
ReplyDeletethank you Kanakraj ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
DeleteAcha article jisme spast sandesh hai janmna jain hone ke sath karmana jain terapanthi hone se hamara dharmik hone ko purnta milegi. Om Arham
ReplyDeleteOur all leaders of various social organisations in Terapanth dharamsangh are fully Devoted n Spiritual🙏many of them having basics of Jain philosophy ...that two are complementary for every shravaka...and the shravakas are representing Jainism to the society ...so it's also a good opportunity for them from that flatform to preach Jainism in whole world..
ReplyDeletethank you ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
Deleteवाह वाह, भाई साहब, आपने तो मेरे जैसे अनेक नव तेरापंथी लोगों की मन की बात पकड़ ली,, मुझे भी लगभग बीस साल हुये हैं, सनातनी से तेरापंथ में दीक्षित हुये लेकिन क्यों बना,,, इसका जवाब अभी तक नहीं समझ पाया, अब शायद आपके ब्लॉग को पढ़ कर इस काबिल हो जाऊँगा,,, बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDelete,,
आपने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि बिना सोच-विचार के ही अपने अपनी निष्ठा बदल दी।शुक्र है कि संयोग से या भाग्यवश तेरापंथ मिल गया,बधाई हो।
Deleteसटीक एवं सामयिक चिन्तन। नये पुराने सभी तेरापंथी श्रावक श्राविकाओं को एक बार चिंतन के लिए बाध्य करता है। भाईजी अगली कड़ी भेजें।
ReplyDelete🙏🏻👌😊👌🙏🏻
हनुमान जी शर्मा (via whatsapp)
तेरापंथ दर्शन और तेरापंथ सिद्धांत को जानना गर्व और गौरव हैं
ReplyDeleteॐ अर्हम आदरणीय मर्यादा जी सा 🙏
✍️✍️👌👌👌
में जन्मना तेरापंथी नही हुँ,मंदिर मार्गी ससुराल आकर सब सीखा एवं धीरे-धीरे तेरापंथ धर्मसंघ को जाना, जान रही हुँ,
अभी भी बहुत कुछ सीखना बाक़ी हैं.
आज आपकी बात से गुज़रा समय याद आ गया.
आप द्वारा लिखी अक्षरश बात को अमल कर पाऊँ यहीं मंगल कामना
Binduji Jain Bangalore (via whatsapp)
Best
ReplyDeleteBest
DeleteChanda kothari
Nice
ReplyDeleteअति सुंदर आलेख । ॐ अर्हम
ReplyDeleteTill the point, we tell our generations, WHY we should do, WHAT we tell them to do, all Maryada's would need a बजरंग to guide them. Though not every body is as lucky as yourself, to get the right guidance at the right time.
ReplyDeleteShreyans
जन्मना जैन तेरापंथी होने के साथ कर्मणा जैन तेरापंथी होना अपने आप में गर्व की बात हैं।
ReplyDeleteहे प्रभु यह तेरापंथ!
Bhagya bina terapanth nahi mil sakta
ReplyDeleteHamare Bhagya bade balwan mila yah terapanth mahan
अच्छा लेख है।
ReplyDeleteधर्म और धर्म के सिद्धांतो को समजना बहुत जरूरी है। आज की पीढ़ी के लिए तो दर्शन को समझना अती आवश्यक है।
कनक कोठारी