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स्त्री - समानता - सुरक्षा - सम्मान

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हमारी यह सृष्टि द्विसंयोगिक है। एक पक्ष का प्रतिपक्ष भी होता है। दिन है तो रात भी है , जीव है तो अजीव का भी अस्तित्व है , मिलन हुआ है तो वियोग होगा ही। इसी सृष्टि में निर्माण एवं संचालन हेतु नर व मादा की संरचना हुई (मनुष्य-पशु-पक्षी सभी जीव योनियों में)। मनुष्यों को छोड़ कर शेष जीव सृष्टि में नर एवं मादा का सामाजिक जीवन प्राकृतिक रूप से , बंधे हुए नियमों से चलता है। मानवीय सभ्यता का जैसे-जैसे विकास हुआ , स्त्री-पुरुष की भूमिकाएं बदलती रही , स्थितियों में परिवर्तन हुए एवं धीरे-धीरे असमानता वाले समाज का निर्माण हो गया। हजारों वर्ष पूर्व , मानवीय सभ्यता के आरंभिक अवस्था में , मनुष्य भोजन एवं अन्य आवश्यकता हेतु शिकार व वनो पर निर्भर था , हर रोज शिकार करना , हिंसक पशुओं से अपने आप को बचाना आदि दुष्कर कार्य पुरुषों के अधिक उपयुक्त थे , स्त्री की जैविक जवाबदारियां थी , छोटे शिशु या बच्चो के साथ जंगल जाना अत्यधिक जोखमी था। अतः स्त्री को सुरक्षित रखा जाता था। उस परिस्थिति में काम का आदर्श बंटवारा था। सिंधु - सरस्वती सभ्यता , उसके बाद के वैदिक काल , सोलह जनपद काल , मौर्य साम्राज्य- गुप्त...

आस्था रखें अटूट – अडिग

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मैं काफी समय से सुबह सुबह सबसे जय जिनेंद्र के साथ सुप्रभात कर एक कोई भी सुवाक्य   संलग्न भेजता हूं। अभी पिछले दिनों की ही बात है एक सुवाक्य   भेजा था आस्था हमेशा भक्त के चित्त और मन में होती है , वरना कमी निकालने वालों को तो परमात्मा में भी कमी नजर आती है तो मैं इस बारे में विचार कर रहा था , सोचा आस्था के बारे में कुछ लिखूँ । सोचते सोचते विचार आया आस्था भक्ति है , आस्था निष्ठा है , आस्था श्रद्धा है , या फिर ये आस्था है क्या ? आस्था किसी व्यक्ति विशेष के लिए या दल विशेष के लिए या किसी राष्ट्र के लिए या किसी धर्म या संप्रदाय के प्रति या समाज विशेष के लिए - किसके लिए ? आस्था गू ढ़ शब्द है। आस्था के बारे में लोगों के मन में जो कई भाव आते हैं , उन भावों पर विचार करता हूं। एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति जो विशुद्ध ,   निर्मल एकात्मक भाव आता है , जो उसे उसके प्रति   जोड़ने का कार्य होता है , वह आस्था है।   मैं पाता हूं , कि आचार्य भिक्षु की दृढ़ आस्था आगम के प्रति या भगवान महावीर के प्रति थी और वह सारी उम्र उस पर दृढ़ रहे। उसी दृढ़ता के आध...