सगपण, सौदो, चाकरी, राजीपे रा खेल

 

स्वलप शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहनराज जी कोठारी का लिखा हुआ कहावतों पर यह लेख वर्तमान संदर्भ में समसामयिक है क्योंकि तलाक और संबंध विच्छेद बहुत बढ़ रहे हैं। उसका कारण है हमने बिना या पुरी जानकारी  किए बिना संबंध कर लिया और उसका आगे परिणाम अच्छा नहीं आया। यह लोकोक्ति हमें बताती है  संबंध करते समय ही  सारी बातें देख परख कर एक दूसरे को समझ कर करना चाहिए। जिससे कि आगे मुसीबत ना खड़ी हो। विषय वर्तमान परिपेक्ष में हम सबके लिए प्रेरणादायक है।

-  मर्यादा कुमार कोठारी

पाणी पीजे छाण ने, सगपण कीजे जाण ने

इस लोकोक्ति में स्वस्थ व सुखी जीवन जीने का अपूर्व गुर निहित है। पानी में कई प्रकार के कीटाणु और जीवाणु रहते है। अतः तालाब, कुंआ या नल का पानी वैसी ही स्थिति में पीने से कीटाणु और जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते है। व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनायास बिगाड़ देते है। जिससे इस लोकोक्ति में व्यक्ति को छानकर पानी पीने का आह्वान किया गया है। यह सर्वविदित है कि गांवों में तालाबों का अनछाना पानी पीने से  नारू का रोग बहुत प्रचलित है। नलों में टंकियों से पानी आता है। वहाँ भी टंकियों की उचित समय पर सफाई न होने से धूल और मिट्टी की परतें जम जाती है। उनमें कीड़े पड़ जाते है। जब वही पानी नलों में आता है, तो उसका सेवन मनुष्य को बीमार कर देता है।

जब जिला न्यायाधीश के पद पर, मेरा जयपुर पदस्थापन हुआ तो मेरे कई मित्रों ने मुझे चेतावनी दी, कि यहाँ का पानी अनछाना या अस्वच्छ पीने से आमाशय में विकृति हो जाती है। पेचिश की बीमारी व पेट में कीड़े उत्पन्न होने का लगातार अंदेशा रहता है। पूछने पर पता लगा कि, जयपुर में पचास प्रतिशत लोग ‘‘एमोबाइसिस’’ से पीड़ित रहते है। यह स्थिति जयपुर की ही नहीं, लगभग हर नगर, महानगर की है। कई बार, जब शहर में बीमारियों का प्रकोप होता है, तब राज्य सरकार की ओर से घोषणा की जाती है कि, लोग पानी छानकर या उबालकर पींए। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए, पानी छान कर पीना अत्यंत आवश्यक है। जैन परिवारों में तो, जैन-आचार-संहिता का एक अनिवार्य प्रावधान है कि प्रतिदिन एक या दो बार पानी अवश्य छान लेना चाहिए, पीने अथवा रसोई बनाने में छाना हुआ पानी काम में लेना चाहिए। जैन ही नहीं, इस देश में सभी सुसंस्कृत व सभ्य परिवारों में इसी प्रकार की आचारसंहिता की अनुपालना की जाती है। जैन साधु तो उबला हुआ या फिटकरी, चूना अथवा राख आदि से स्वच्छ एवं अचित किया हुआ पानी ही काम में लेते हैं। चिकित्साशास्त्री सामान्य लोगों को भी, ऐसा पानी पीने के लिए  निर्देश देते है, ताकि व्यक्ति स्वस्थ्य रह सके। आजकल तो कई तरह की फिल्टर पद्धतियां  भी घरों के लिए विकसित हुई है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि छानकर शुद्ध किए हुए  पानी की, व्यक्ति को स्वास्थ्य प्रदान करने में, महत्ती भुमिका है।

लोकोक्ति का दूसरा भाग, प्रथम भाग से भी अधिक महत्वपूर्ण है। राजस्थानी भाषा में ‘‘सगपण’’ शब्द को बहुधा स्त्री-पुरूष के बीच पति-पत्नी के संबंध निर्धारित करने की प्रथम प्रक्रिया के रूप में प्रयोग किया जाता है। स्त्री-पुरूष के बीच वैवाहिक संबंध निर्धारित करने की प्रक्रिया निष्पादित करने में, दोनों के बारे में एक-दूसरे को या उनके संरक्षकों को पूरी जानकारी कर लेना आवश्यक होता, क्योंकि भारतीय संस्कृति में विवाह जीवन भर के संबंधों की आधारशिला है। इतना ही नहीं विवाह के पश्चात् नई संतति का निर्माण होता है सृष्टि विस्तार पाती है। अतः वैवाहिक संबंधों में कड़ुवाहट आने अथवा अंतराल या अलगाव की दरार पड़ने से न केवल दो व्यक्तियों का, बल्कि पूरे समाज का सन्तुलन बिगड़ जाता है। उसमें विच्छृखंलता पैदा हो जाती है।

हमारे समाज में प्रत्येक पिता, अपनी पुत्री को 18 या अधिक से अधिक 22 वर्ष, पूरे लाड़-प्यार से रखकर, उसका किसी दूसरे परिवार के व्यक्ति से परिणय संबंध करने को विवश होता है। उसकी पुत्री अन्य परिवार के व्यक्ति के साथ जुड़कर ही फलवती व रसवती बन सकती है। उसकी पुत्री के सरस जीवन जीने व सन्तानप्राप्त करने की संभावनाएं अन्य परिवार के व्यक्ति के साथ जुड़ी हुई है। वस्तुतः नारी एक ऐसा पौधा है जिसका पुनर्स्थापन अन्यत्र होने से ही, वह विशाल एवं फलदायिनी वृक्ष बन सकता है। इतना ही नहीं, इस एक कार्य से दो परिवारों व उनके संबंधियों के बीच पीढ़ियों तक के संबंध निर्मित हो जाते है, जो परिवार की शाखा-प्रशाखाओं को प्रभावित करते है। विवाह से ही, समाज में अन्य रिश्ते विकसित करते समय, दो व्यक्ति (पुरूष-स्त्री) व उनके परिवारों का रहन-सहन, जीवन स्तर, खान-पान, स्नेह-सौजन्य आदि की पूरी जानकारी कर लेने व संतुष्टि करने पर ही, यदि सगपण किए जायें, तो मै समझता हूं कि मंगल परिणय सूत्र में आबद्ध होने वाले दोनों व्यक्तियों का जीवन सुखद व सफल बन सकता है।

आजकल समाज में, सगपण के पूर्व लड़के-लड़की का साक्षात्कार कराने की प्रवृत्ति चल पड़ी है। शारीरिक सौष्ठव या बोलचालका परिचय तो ऐसे साक्षात्कारों से मिल सकता है पर चंद मिनटों की ऐसी मुलाकातों में लड़के-लड़कीके स्वभाव, रूचि, गुणवत्ता का परिचय कदापि नहीं हो सकता। उसके लिए आस-पास के लोगों अथवा दोनों परिवारों में समान हित रखने वाले संबंधियों से गहन पूछताछ करने पर ही पता चल सकता है और वस्तुतः यही आधार सगपण करने के लिए अधिक सार्थक हो सकता है। इसमें भी मात्र लड़के या लड़की के बीच का साक्षात्कार अधिक भ्रमोत्पादक हो सकता है, क्योंकि नर-नारी दोनों में यौनव के प्रवेश द्वार पर अनुभव की कमी रहती है और कभी-कभी मात्र रूपलावण्य या मधुर वचनों से ही, वे प्रभावित होकर सारे जीवन के लिए संबंध करने को सहमत हो जाते है। ऐसा संबंध समग्र जानकारी के अभाव में कभी-कभी दुःखदायी बन जाता है। संभवतः यही कारण है, कि हमारे समाज में लड़के-लड़की के सगपण उनके अभिभावक (माता-पिता-संरक्षक) तय करते है व सगपण के पूर्व वे अपने अनुभवों का पूरा-पूरा उपयोग करते हैं। कुछ धन के लोभी या सत्ता-वैभव के लोलुप पुरूष, अपने बालक-बालिकाओं के भविष्य को दृष्टि से ओझल कर, मात्र अपने स्वार्थ के लिए उनके संबंध कर देते है, जिसका परिणाम न केवल पति-पत्नी किंतु पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है। पर ऐसे लोगों की संख्या नगण्य है। समाज ऐसे व्यक्तियों को सम्मान नहीं देता। उनकी संतान भी उनके लक्षणों से परिचित होती है अतः उनकी इच्छाओं का कोई समझदार समर्थन नहीं करता। इस परिवर्तित युग में भी, अनुभवसिद्ध अभिभाव कों द्वारा पूरी जानकारी कर सगपण करने की पद्धति बहुलांश में सही व कारगर प्रमाणित हुई है।

सगपण के साथ एक और लोकोक्ति बहुत प्रचलित है, जो इस प्रकार है-‘‘सगपण, सौदो, चाकरी, राजीपे रा खेल।’’ मै समझता हूँ, यह उपरोक्त लोकोक्ति की पूरक है। सगपण, सौदे व नौकरी तीनों में दोनों पक्ष स्वेच्छा एवं पसंद से, अपनी पूर्ण मनोदशा में के साथ, वैसा करें, तभी ये तीनों कार्य लाभप्रद हो सकते है। अतः बिना किसी दबाव, प्रलोभन, धोखेबाजी अथवा गलतफहमी के ही स्वतंत्र सहमति होना आवश्यक है, वैसे ही विवाह जो कि जीवन भर का पवित्र अनुबन्ध है, उसमें भी पूर्व में सारी परिस्थितियों की यथार्थ जानकारी के आधार पर दोनों पक्षाकारों की स्वतंत्र सहमति होना आवश्यक है।

इसी प्रकार एक  अन्य विश्रुत लोकोक्ति ‘‘पक्खे खेती, पक्खे न्याव, पक्खे वे बाइ रो ब्याव’’ में भी सगपण के विषय में महत्वपूर्ण संकेत मिलते है। जिसका पक्ष प्रबल हो  यानी जिसका समर्थन उनके लोग करते हो, उनके लिए खेती करना, न्याय पाना, लड़की का विवाह करना सुगम हो जाता है।

- श्री सोहनराज जी कोठारी 

(तेरापंथ प्रवक्ता, शासनसेवी, पूर्व न्यायाधीश)


Comments

  1. अति सुन्दर।

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    1. ज्ञान वर्धक सुन्दर संस्कार पुर्ण जानकारी,,,,

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  2. बहुत ही मार्मिक विषय को समेटता हुआ यह विस्तुत लेख आदरणीय श्री सोहनराज जी द्वारा आलेखित शिक्षाप्रद लगा ।
    कितनी मूल्यपरक बातों का विस्तार पढ़ने को मिला ।
    लोकोक्तियाँ से अपने राजस्थान अपनी मिट्टी की ख़ुशबू लिए यह विषय वर्तमान संदर्भ में बहुत सटीक बैठता है ।
    आदरणीय मर्यादा जी सा आपका आभार 🙏


    बिंदु जैन, बंगलूर

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