विश्वास -किस पर करें???
वर्तमान जीवन का सबसे बड़ी जो समस्या है वह है विश्वास की। हम किस पर विश्वास करें। विश्वास की हालत यह है कि पिछले दिनों जब मैं देखता हूं आत्महत्याए बढ़ रही हैं। इसका कारण है कि उन्हें अपने स्वयं पर विश्वास नहीं है, जब आदमी का स्वयं से विश्वास उठ जाता है तो वह फिर आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। आज विश्वास की स्थिति यह है कि व्यक्ति किस पर विश्वास करें। रिश्तेदारों पर, धर्म गुरुओं पर, राजनेताओं पर, सरकारी अधिकारियों पर, पत्रकारिता पर या फिर न्यायपालिका किस पर करे। प्रतिदिन हम अखबारों में समाचार पढ़ते हैं कि बेटा-बेटी अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ क्या हालत करता है या बहु अपने सास-ससुर की क्या हालत करती हैं? फिर उन्हें वृद्धाश्रम की ओर देखना पड़ता है। तो क्या यह हमारे संस्कार हैं? हमारी संस्कृति ने हमें यह सिखाया है? जहां पिछले दिनों पारिवारिक दुष्कर्म की बातें भी कई बार आई। यह भी हमारे समाज पर धब्बा है, दाग है। जहां हमारे विश्वास के रिश्ते हैं उन पर बहुत बड़ी चोट है। अभी पिछले दिनों न्यायाधिपति जसराज जी चोपड़ा बता रहे थे एक बेटे ने मां को विदेश अपने साथ ले जाने की बात कही। वह स्वयं एयरपोर्ट पर अंदर चला गया मां बाहर इंतजार करती रही क्योंकि बेटा कहकर गया था कि मैं तुम्हारे लिए टिकट लेकर आ रहा हूं। वापस आया ही नहीं, मां ने जिसे 9 महीने पेट में पालकर बड़ा किया, अपना पेट काटकर पढ़ाई कराई। उसे विदेश में नौकरी मिली और वह उस मां के साथ इस तरीके का घिनौना त्यकृ करता है। यह वर्तमान सामाजिक हालातों की एक पिक्चर हमारे सामने पेश होती है।
मैं और आगे जाऊं हमारा विश्वास धर्म के प्रति अगाध है। भारत पुरातन काल से ही धार्मिक देश कहलाता है। जहां पश्चिमी देश तो हमे धार्मिक अंध भक्त कहते है। लेकिन हमारे यहाँ आध्यात्मिकता के साथ धर्म के प्रति बड़ी अगाध श्रद्धा आस्था निष्ठा है। जब पिछले दिनों धर्म गुरुओं के किस्से अलग-अलग ढंग से चाहे राम रहीम के हो या रामपाल के हो या आसाराम बापू के हो या फिर कुछ जैन साधुओं के भी हो हम जिन पर विश्वास करते हैं, उन्होंने किस तरह हमारे विश्वास को झकझोरा हैं ये स्थिति हम सबके सामने है। भरोसा किस पर करें। उन धर्मगुरुओं को हम हमारी समस्याओं के समाधान हेतू सारी बातें बताते हैं। कि वे हमें समाधान देंगे लेकिन समाधान तो अलग रहा, एक नई समस्या पैदा कर देते हैं। तो धर्म गुरुओं पर भी विश्वास कम होता जा रहा है। राजनीति की तो हालत ही खराब है। आपस में उनको ही एक दूसरे का विश्वास नहीं है। एक ही दल के सदस्य एक दूसरे के प्रति अविश्वास में ही जी रहे हैं और एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में भी कोई कमी नहीं रखते।
बात करें पत्रकारिता की उन पर भी विश्वास था। कई पुराने दिग्गज पत्रकारों के नाम याद करें तो उन पर एक विश्वास था। वे हमेशा नैतिक मूल्यों पर बात करते थे। पर अब जबसे पेड पत्रकारिता और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का युग आया है जब से खबरों का तो कचरा हो गया और उन्हें तोड़ मरोड़ कर दिखाया जाता है। क्या आप भरोसा क्या कर पाएंगे? उन पर भी विश्वास नहीं रहा वह जो दिखा रहे हैं क्या वह सही है? इस प्रश्न चिन्ह हैं। वहाँ भी पैसे का बोल बाला हैं। कार्यपालिका की बात करें तो वहां भी विश्वास की बहुत बड़ी कमी नजर आ रही है। वह केवल मात्र सत्ता के पीछे कार्य करते हैं और जैसा सत्ताधारी चाहते हैं उसी टाइप से काम होता है। विश्वास उन पर भी नहीं है। जैसा कि पिछले दिनों ही बिहार में हुआ एक पुल का जून में उद्घाटन हुआ था करीब करीब ढाई सौ 300 करोड रुपए पुल पर लगे थे और 1 महीने के अंदर अंदर जुलाई में वह पुल ढह गया। यह क्या है? कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है? किस पर विश्वास किया जाए? किस पर भरोसा किया जाए?
न्यायपालिका पर जरूर लोगों को अभी भी थोड़ा बहुत विश्वास है लेकिन वहां भी जब देखते हैं रिटायरमेंट के बाद भी न्यायधीश महोदय लाल बत्ती की आस में राजनेताओं के आगे पीछे होते हैं। तो फिर लगता है कहीं ना कहीं उनका भी विश्वास डगमगा रहा है, इन सब बातों से ऐसा लगता है।
मैं एक बात और यह कहूंगा डॉक्टरों पर अभी विश्वास है। लेकिन पिछले दिनों इस कोरोना महामारी में जहां अखबारों में पढ़ा उसमें भी बड़ा घपला हो रहा है कहीं तो शरीर के अंग भी बेचे जा रहे हैं यह सारी बातें जो आती है फिर उन पर भी विश्वास डगमगा जाता है। विश्वास अगर कानून के पालन कराने वालो पर करे तो उनकी भी स्तिथि अच्छी नहीं है क्योंकि जब थाने के अंदर दुष्कर्म की घटनाएं सुनते हैं तो फिर कहां विश्वास रहा? आदमी कहां बचकर जाएगा? हमारी सारे तंत्र (सिस्टम) में ही विश्वास नाम खत्म हो गया। हर व्यक्ति एक दूसरे को संदेह भरी नजरों से देखता है। आपसी में जो भाईचारा था, वो खत्म हो रहा है। क्योंकि कहीं धार्मिक सद्भाव, जातीय सद्भाव, प्रांतवाद और राष्ट्रवाद बीच-बीच में आ रहे हैं। आज अगर एक मुख्यमंत्री यह कहता है कि दिल्ली में केवल दिल्ली वालों का इलाज होगा तो क्या मैं भारतीय नहीं हूं? बहुत पहले एक नेता ने कहा था मुंबई आमची मराठी। यह जो खेल रहा है यह भी हमारे भारतीयता के ऊपर विश्वास ही पैदा कर रहा है। इन सब बातों से हो सकता है आपको लगे कि मैंने नकारात्मक बातें ज्यादा कह दी। लेकिन अभी मुझे ऐसा लगता है कि मक्खन पूरा डूबा नहीं है। कुछ बातें जरूर वर्तमान में सकारात्मकता की है, और उसी सकारात्मकता के कारण हमारा जीवन एक सही रूप में बिना डरे आगे चल रहा है। मैं अगर बात करूं डॉक्टर की कई डॉक्टरों ने अपना जीवन खपा दिया कोरोना महामारी के इस दौर में, अपना सर्वस्व उसके प्रति समर्पित कर दिया। सम्माननीय कई धर्म गुरुओं आज भी उसी निष्ठा से पाँव पाँव चल नैतिकता सद्भावना के साथ सामाजिक बुराईयों दुर करने के लिए धर्म का परचम फैला रहे हैं। लोगों को सही दिशा दे रहे हैं। मैं किसी का नाम नहीं ले रहा लेकिन उनके कार्यों के कारण हमारा देश आज भी धर्म के मामले में, लोगों को आध्यात्मिकता देने के मामले में, सही संस्कार देने के मामले में, एक उच्च स्तर पर स्थान रखता है।
मैं बात करूं राजनीति की वहां भी कई चीजें विश्वास की है हमने विश्वास के साथ ही सत्ता का परिवर्तन करवाया किया था और अभी भी हमें भरोसा है कि कहीं ना कहीं अच्छी शुरुआत होगी अच्छे दिन आएंगे। सोच में सकारात्मकता लाएं, विधायक दृष्टिकोण रखें। स्वयं पर विश्वास रखें यह सबसे बड़ी वर्तमान दौर की आवश्यकता है। जहां में संबंधों की बात करता हूं वहां भी जब कहीं रिश्तो के बारे में पढ़ता हूं, देखता हूं या जानता हूं तो कई प्रेरणादायक भी लोग सामने आते हैं। बस हमें उन्हीं प्रेरणादायक लोगों को याद रखना है। हम जितनी सकारात्मकता वर्तमान जीवन में फैला सकेंगे या ला सकेंगे जब ही हमारा जीवन सफल होगा। हमारा मानव जन्म लेना सार्थक होगा अन्यथा भाइयों बहनों पैदा तो जानवर भी होते हैं और वे भी अपना जीवन जीते हैं। लेकिन हमें मानव जीवन मिला है उस को सार्थक बनाएं उसमें सकारात्मकता लाएं, सब के प्रति सद्भावना लाएं और एक दूसरे के प्रति व्यवहार में विश्वास पैदा करें। संबंध अच्छे बनाएं केवल लालच लोभ या अर्थ के कारण अपने स्वार्थ में पडकर संबंधों के विश्वास में पलीता न लगाये। हमें आदर्श के रूप में जहां भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, भगवान राम, भगवान कृष्ण आदि कई महापुरुष इस भूमि पर हुए और उन्होंने हमें सद्भावना की ही बात कही। तो हम उन्हीं से प्रेरणा लेते इस सद्भावना को आगे बढ़ाएं। विश्वास बनाए रखें तो आशा है हमें मानव जीवन की सार्थकता पता चलेगी।
बात के समापन में मेरे पिताश्री सोहनराज जी कोठारी की एक कविता आपके साथ साझा करूंगा---
मन
चैतन्य का कभी नहीं करता, विश्वास,
विचारों
के धुएं में, दृष्टि मूढ़ बनाने का, करता
प्रयास
न
पीछे झांकने देता, न करने देता, स्वयं
का दर्शन
दूसरों
से सुख सुविधा पाने, सदा दौड़ता, मन
आधा
दिखाकर, आधे पर, वह रखता आवरण
बुद्धि
और तर्क में, फंसा कर, पैदा
कर देता उलझन।।
- मर्यादा
कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं)
बहुत ही सटीक,शानदार व प्रेरणा दायीं निबन्ध है,मनुष्य को विश्वास अपने खुद के ऊपर करना चाहिए लेकिन वो भी आजकल धोखा दे जाता । सुंदर sir जी
ReplyDeleteधन्यवाद सा।
Deleteबहुत सटीक एवं प्रेरणादायक निबन्ध 👌👌👍👍
ReplyDeleteबहुत ही सटीक, प्रेरणा दायक व वर्तमान के सामाजिक स्थिति का चित्र
ReplyDeleteसुन्दर अति सुन्दर
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