भ्रष्टाचार - सबसे बड़ा संक्रमण



अभी कुछ दिनो से अखबार में कुछ समाचारों में यह पढ़ा कि करोना महामारी के समय आम लोगों को जो सामग्री दी जा रही है, उसमें  कमीशन या रिश्वत ली जा रही हैं। समझ में नहीं आया किसी जमाने में यह कहा जाता था या कहावत में मैंने पढ़ी थी कि बनिये को कहीं भी भेज दो तो बनिया समुंदर की किनारे लहरें गिन कर भी पैसे कमा लेगा या चांद पर जाएगा तो उसकी रोशनी या मिट्टी बेचकर भी पैसे कमा लेगा, ये बात थी समझदारी की। लेकिन अब यह इस कहावत कलयुग में मैं समझ पाया हूं चाहे कोई वक्त हो - कोई काल हो - कोई समय हो - अफसर और राजनीतिज्ञ हर काल में अपनी-अपनी  रिश्वत व कमीशन कैसे भी बना लेते हैं। चाहे मुर्दों के कफन से या ताबूत से या सेनेटराईज की सप्लाई में या दवाओं की सप्लाई में या सैनिक साजो समान में  या हथियारों में  या हवाई जहाज या किसी भी अन्य खरीद में या बिजली  पानी की सप्लाई में कहीं ना कहीं से वे अपना मुर्गा तलाश ही लेते हैं। यह सब क्या है? क्या यह हमारी संकीर्ण  मानसिकता को नहीं दर्शाता है? हम क्या जन्मजात भ्रष्टाचारी हैं? या भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले? मुझे तो यह भी समझ में नहीं आता है कि लोग अपना कार्य निकलवाने पर रिश्वत देते हैं और लेने वाले लेते हैं। क्या दोनों बराबर के गुनाहगार नहीं है?

आज पारदर्शिता के युग में भी इतना रिश्वत का बोलबाला चल रहा है और लोग बिना किसी डर और भय के इस कार्य में तल्लीन है। अफसर व राजनीतिज्ञ  आपस में मलाई खाने के चक्कर में  स्थानांतरण, पोस्टिंग  सामान की खरीद में  बंदरबांट कर  जनता को भरमाने में  लगे रहते हैं  और व्यापारी लोग  इसी का फायदा उठाकर  अपना ही उल्लू सीधा करते हैं।  इतना बड़ा खेल हर वर्ष होता है। फिर भी हम  आप सब  मूकदर्शक की भांति खड़े निहारते रहते हैं। लगता है  हमारा सबका ही  जमीर खत्म हो चुका है। फिर कहां हम विकास की बात करते हैं, कहाँ आत्मनिर्भरता की बात करते हैं। सब स्थानों पर दलालो का बोलबाला हैं। यह केवल भाषणों में अच्छा लग सकता हैं, यह हमें कागजों में अच्छा लग सकता है। लेकिन हकीकत के धरातल पर जब तक इस तरह का गठजोड़ अमला देश में रहेगा, देश कैसे आगे बढ़ेगा? जहां ट्रेन में बैठते हुए व्यक्ति को कहा जाता है 2 दिन में आप घर पहुंचेंगे और ट्रेन में वह 8 दिन में भी घर नहीं पहुंच पाता है यह सब क्या है और कोई इसके लिए जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं? एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम भी नहीं समझ पाते यह सब क्या हो रहा हैकहावत है कुएं में ही भांग पड़ी हुई है, लगता तो यही है कुएं में भांग गिर गई है और सब बस उसी नशे में या तो वाह वाही ही कर रहे हैं या एक दूसरे की टांग खींच रहे। देश के विकास पर या आम जनता पर या आमजन के बारे में कोई नहीं सोच रहा है। किसने क्या किया? किसको क्या करना था? किसने हमसे पूछा नहीं? किसकी नीति देश के लिए ठीक नहीं है? किसके सोच वर्तमान समय में सही नहीं है? यह सारी बातें कहीं भी हम नहीं सुन रहे हैं किसी से। केवलमात्र उस अमले की सुरक्षा और उनके खर्चे  देश में कम नहीं हो रहे।

आम नागरिक जो मजदूर है, श्रमिक है, किसान है, छोटा-मोटा दुकानदार या व्यापारी है, अल्प आय वर्ग वाला है, मध्यमवर्ग वाला है, वही सब दर-दर भटक रहे हैं। बात तो सभी उन्हीं की करते हैं पर क्या उनके लिए कुछ हो रहा है? आम आदमी को तो 14 दिन का क्वॉरेंटाइन किया जाएगा और जो विशेष आदमी है उनके लिए सात खून माफ है। यह दोगली नीति कब तक चलेगी? ऐसा लगता है देश की जनता को जागरूक होना पड़ेगा अन्यथा यह भ्रष्टाचार इस देश को कहां ले डूबेगा उसका कोई ठिकाना नहीं। घोषणा तो लंबी चौड़ी होती है, 20 लाख करोड़ की घोषणा हुई। नई पुरानी घोषणाओं को एक कर लीपापोती हो कर रह गई। क्या इस देश के भविष्य में फिर कोई गांधी पैदा होगा या फिर भगत सिंह - चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी वीर पैदा होंगे जो एक नई राह दिखाएंगे? भ्रष्टाचारियों के लिए तो एक तरह से क्रांति की ही जरूरत है क्योंकि कई लोगों के तो खून में या उनके जींस में भ्रष्टाचार घुस गया है। इसको बाहर निकालना है। करोना के वायरस के साथ-साथ हम इस भ्रष्टाचार के वायरस से भी लड़े। इस संक्रमण से जो देश संक्रमित है, इससे हमें सुधार लाना है। बहुत बड़ी जरूरत है आज के दौर की करोना वायरस तो फिर भी वैक्सि बनके ठीक हो जाएगा लेकिन यह भ्रष्टाचार का वायरस माइक्रोस्कोप से भी नजर नहीं आ रहा है। उसको कैसे दूर करना है? यह बड़ा विचारणीय प्रश्न हम सबके सामने है।

हम सब का नैतिक कर्तव्य और दायित्व है कि हम इसके खिलाफ आवाज उठाएं बोले और हर एक  नागरिक का दायित्व निभाए। हम भारत से भ्रष्टाचारी रूप वायरस को दूर करेंगे। नैतिकता का ज्ञान हमें भगवान महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण आदि सभी महापुरुषों ने दिया। वह नैतिकता हमें पुनः परिवार में, समाज में और राष्ट्र में लानी पड़ेगी। वह ब तक नहीं आएगी, ब तक न देश आगे बढ़ेगा, ना विकास होगा, न आत्मनिर्भरता आएगी। यह केवल वादे और भाषण रह जाएंगे और फिर कुछ साल बाद नए नेता आएंगे नए भाषण व गाने आएंगे। जैसे एक जमाने में - बचपन में - मैंने सुना था गरीबी हटाओ, गरीबी तो हटी नहीं लेकिन गरीब और बढ़ गए। यह सब जो दिवास्वप्न हमें दिखाए जाते हैं, उनकी हकीकत क्या है हम सब सोचें। इसके मूल में क्या है? यह संक्रमण जो है, उस ओर ध्यान देना जरूरी है। एक बीड़ा जरूर उठाएं और समाज में ऐसे भ्रष्ट तत्वों को सामने लाएं। समाज को आगे बढ़ाने का, राष्ट्र को आगे बढ़ाने का संकल्प लें - भी हम एक  हो पाएंगे। हम समृद्ध राष्ट्र कहलाएगें, भी हम विकसित राष्ट्र कहलाएंगे और भी हम आत्मनिर्भर भारत की ओर आगे बढ़ेंगे। मैं विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और चौथा स्तंभ मीडिया इन सभी में व्याप्त भ्रष्टाचार को किस रूप में दूर किया जा सकता है? यह हमें सोचना है। इस पर हमें विशेष ध्यान देना हैं। उद्योग धंधे और व्यापारी व्यक्ति भी इस और ध्यान दें, उनकी नीति स्वयं के प्रति उत्तरदायित्व ना होकर समाज और राष्ट्र के प्रति ज्यादा उत्तरदायी हो तो हम आगे बढ़ पाएंगे। यह लोकतंत्र के सारे अंग  मिलकर नैतिकता पर उतर आए तो इस धरा पर स्वर्ग उतर आएगा फिर भारत सोने की चिड़िया कहलाएगा। लेकिन जरूरत है इस भ्रष्टाचार रूपी संक्रमण को राष्ट्र से दूर भगाना है। हमारी यह मानसिकता ही देश को - समाज को आगे नहीं ले जा पा रही है। हम इस मानसिकता से दूर  अलग हटकर समाज और राष्ट्र के बारे में सोचें तभी समुचित विकास होगा अन्यथा अपनी पार्टी के बारे में सोचा जाता है, अपने बारे में सोचा जाता है, और बीवी बच्चों के बारे में सोचा जाता है बस इसके आगे हमारी सोच नहीं जाती है - नहीं जाती है - नहीं जाती है। तो फिर कैसे विकास की - आत्मनिर्भरता की  कल्पना कर सकेंगे? यह विचारणीय है।

विचार करें हम नैतिकता का बीजारोपण कर भ्रष्टाचार रूपी तंत्र से कैसे लड़ सकते हैं। राष्ट्रवाद की भावना हम में विकसित हो। अर्थ को सर्वोपरि ना समझ के मानवता के प्रति उत्तरदायित्व को समझें। हर भारतवासी स्वयं संकल्पित हो तो यह कार्य हो सकता है अन्यथा वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होगी। मैं अब यह प्रश्न आप सभी सुधि पाठकों पर छोड़ता हूं।

आचार्य तुलसी ने भी कहा है सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से राष्ट्रीय स्वयं सुधरेगा। पर कब यह आप बताएं??

पापाजी सोहनराज जी कोठारी की चार लाईन से समापन करता हूँ:

भविष्य की चिंता, अतीत का दुख
वर्तमान में जीवन का, सोख लेता सुख।
एक व्यक्ति की प्रगति, जग को देती गति
एक व्यक्ति का पतन जग का बुझा देता मन।।

रचनाकार:

मर्यादा कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं)

Comments

  1. सच कहा आपने जब तक हम अपने स्वार्थ में बंधे रहेंगे तब तक इसे दूर करना मुश्किल है बहुत बहुत धन्यवाद श्री मर्यादा जी कोठारी

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  2. अफसर नेता रीती बड़ी
    रिश्वत चाहिए हर घड़ी
    नीचे से उपर तक जुड़ी कड़ी

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  3. आज कल जो व्यक्ति सरकारी अफसर या नेता बन जाते है सम्भवतः लगभग हर किसी का एक ही उद्देश्य रहता है कि येन, केन, प्रकारेण ज्यादा से ज्यादा पैसों का अर्जन करू, चाहे तरीका वैध हो या अवैध।
    आज जहाँ कहीं सामान्य व्यक्ति आपदा काल में, जो स्वयं कठिनाइयों में होते हुए भी सधार्मिकता की सोच, विचारधारा से दूसरों की सहायता के लिए जूट जाता हैं। वहीं कुछेक व्यक्ति उस स्थिति को भी अवसर मान गलत तरीकों से अपना घर भरने में लग जाते हैं।

    आपके सम्यक चिन्तन को साधुवाद।

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    1. प्रिय स्वरूप जी, ब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।

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  4. दृढ़ इच्छाशक्ति वाला राजनेता चाहे तो चार दिन में ही समस्या मिटा सकता ह ।कठोर कानून और उसका क्रियान्वन ही एक मात्र समाधान है
    अरविन्द सालेचा

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    1. प्रिय अरविंद जी, ब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।

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  6. जब तक जनता, पार्टी या व्यक्ति विशेष के पीछे भागती रहेगी, तब तब उनको और बढ़ावा मिलता रहेगा, वो और मज़बूत बनते जायेंगे,
    व्यक्ति कितना भी जानकार हो, वो हर जगह शत प्रतिशत सही नहीं हो सकता हैं, जरूरत हैं उनकी गलती पर उनको आँख दिखाने कि, तो हि, उनको अपनी गल्ती का अहसास होगा, और वो आगे उसको सुधारने की कोशिश करेंगे या फिर गल्ती करने की हिम्मत नहीं करेंगे !
    लेकिन भारत की जनता पर उनको भरोसा हैं, उनको पता हैं अब इन्होंने अपना चश्मा पहना
    लिया हैं, अब कुछ भी कर लो... ये तो अपने ही रहने वाले हैं,
    यंहा पर नेता, आदमी को चश्मा पहनाने में मेहनत तो करते हैं लेकिन सिर्फ चश्मा पहनाने तक, फिर उसकी वो वसूली शुरू हो जाती हैं
    यंहा पर आदमी सरकारी नौकरी पाने में जितनी मेहनत करता है उतनी बाद में नहीं, फिर वो वसूली में लग जाता हैं...
    जरूरत हैं गलत के लिए बोलने कि, चाहे वो गल्ती किसी ने भी की हो, तो जरूर सुधार की राह दिखनी शुरू होगी...
    इस माहौल में भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको अपने अधिकारों की बजाय अपने कर्तव्य का एहसास ज्यादा रहता हैं, बस उन्ही कुछ लोगो की छोटी सी धुरी ने पुरे ग्लोब को टिका रखा हैं !
    ~सुनील श्रीश्रीमाल

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    1. प्रिय सुनील जी, ब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।

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  7. आपके सम्यक और मानवीय चिंतन को नमन।
    परंतु आज पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार से सना हुआ है जहां आम आदमी और ईमानदार व्यक्ति का जीना भी दुर्भर है। ईमानदार व्यक्ति या तो अपनी ईमानदारी छोङ देता है या तकलीफ के सिवा कुछ नहीं मिलता उसको। कुछ एक अपवाद हो सकते हैं ।

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    1. प्रिय मनीषा जी, ब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।

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  8. भाई सा मर्यादा कुमार जी कोठारी

    सादर जय जिनेंद्र
    आपका लेख भ्रष्टाचार सबसे बड़ा संक्रमण मैंने पढ़ा आप बहुत ही साहसी व्यक्ति है अन्यथा आजकल तो मीडिया वाले भी बिक चुके हैं भाई साहब इस युग में इंसान में इंसानियत नहीं रही अब अंध भगत चापलूस व चमचे रहे हैं इमानदार व सही आदमी को कहीं भी फसा लिया जाता है उसके ऊपर झूठे मुकदमें बना लिए जाते हैं इसलिए इमानदार लोग खुले में आने से डरते हैं आप आपके पिताश्री स्वर्गीय जज साहब सोहन राज जी सा कोठारी की तरह निर्भीक है भाई सा मर्यादा कुमार जी आज देश को आप जैसे लाखों युवकों की व्यक्तियों की जरूरत है तब जाकर भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन खड़ा हो सकता है परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध अणवृत आंदोलन चलाया उन्होंने पूरे देश की यात्राएं की भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रचार प्रसार किया आज उनके पट धर परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी भी पूरे भारतवर्ष की यात्रा कर रहे हैं भ्रष्टाचार के ऊपर चोट करते हैं लेकिन जैसा आपने लिखा कुएं में भांग पड़ी हुई है भ्रष्टाचार की जड़े बहुत ही गहरी है राजनेता व बड़े अफसर जब तक नहीं सुधर जाते तब तक भ्रष्टाचार के खिलाफ तब तक भ्रष्टाचार के खिलाफ कामयाबी मिलना मुश्किल है
    आपका प्रयास काबिले तारीफ है इमानदार व्यक्ति आपके साथ में जरूर जुड़ेंगे ऐसे प्रयास आप लगातार करते रहें एक ना एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी🙏

    आपका साथी
    सोहनलाल सालेचा जसोल
    (via whatsapp)

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  9. मेरे
    सरकार
    करो ना तुम तकरार
    जनता कर रही
    हाहाकार
    😭😭😭

    कुर्सी का छोड़ो
    चक्कर
    कुछ
    जनता का भी
    कर दो
    उद्धार
    बढ रहा चारो तरफ
    भ्रष्टाचार
    इसका भी कर दो
    उपचार
    ध्यान दो तुम
    कैसे बढ़े रोजगार
    कैसे हो
    जनता का कल्याण
    केन्द्र हो
    या
    हो
    राज्य सरकार
    मत करो तुम
    अत्याचार
    जनता जब ठान लेगी
    तो
    कर देगी
    तुम सबका
    बण्टाढ़ार
    👊👊👊
    दुखी जनता का कर दो
    बेड़ा पार
    ओ मेरे सरकार
    ओ मेरे सरकार

    सुनील जी हिगंड, राजसंमद।
    (via whatsapp)

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  10. 👆👌👌👌पुरा Article पढ़ा और सोचा भी पर निष्कर्ष नहीं निकाल सके की गलती किस किस की है और सुधरना किसको किसको है याद दोबारा राम अवतार प्रगट होने तक ऐसे ही चलता रहेगा या विनाश काले ??? उपाय तो नहीं सुलझा 👌👌👌आपका चिन्तन सराहनीय है अति सुन्दर रचना👍👍🙏

    स्वर्णमाला पोखरना, एडवोकेट।
    बैगंलुरू
    (via whatsapp)

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  11. आपका लेख पढ़कर मुझे आत्म संतुष्टि मिली। माफ़ कीजियेगा मैंने सिद्धांतों पर चलने की जिद के कारण बहुत परेशानी भोगी है, और अब भी भुगत रहा हूं। शायद ही कोई विभाग भ्रष्टाचार से अछूता रह गया हो। संगठन के बिना कोई सुनवाई नहीं हो सकती।आप यदि गंभीरता से सोच कर आगे आ जायें तो हमारे जैसे हजारों लोग अनुसरण कर सकते हैं। मैंने बहुत ज्यादा कटु अनुभव प्राप्त कर संजोये हैं। फिलहाल इतने में आप समझ सकते हैं, आपसे जनहित में आशा करता हूं।🙏🙏

    सम्पतजी भंसाली
    (via whatsapp)

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  12. आज की जो समस्या है उस पर बहुत ही सुंदर शब्दों में प्रकाश डाला है बहुत अच्छा लगा ऐसे आगे बढ़ते रहो और हम पढ़ते रहे

    Shakuntala Shah
    (via whatsapp)

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  13. आदरणीय मर्यादा जी सा ,

    सादर जय जिनेंद्र🙏
    भ्रष्टाचार पर ये अतंर के उठे भाव जो शब्दों के माध्यम से आपने उकेरे हैं।

    ऐसा प्रतीत होता है की—
    लोगों का नैतिक स्तर रसातल छूने लगा है,लोभ का भूत मानव के दिमाग़ पर इस तरह सवार हो गया की वह संसार का सारा धन बटोर लेना चाहता है।

    भ्रष्टाचार इस तरह व्याप्त हो गया की धार्मिक स्थानों में व्यक्ति अपने आपको असुरक्षित महसूस करता है,,,,!!!!
    और तो क्या,उसे यहाँ तक आशंका बनी रहती है की कहीं कोई जूते उठाकर न ले जाए। बाज़ार में ग्राहक आशंकित रहता है वस्तु का क्रय करते हुए वह कही ठग लिया जाए।
    समाज का ऐसा कोई वर्ग नही जहाँ अनैतिकता मानवीय पतन ना हो रहा हो।
    कही पढ़ा था- चलते-चलते ठहर गया बिच्छु
    ख़ूनी इंसान से डर गया बिच्छु।
    अपनी फ़ितरत से बाज़ ना आ सका
    मार कर डंक ख़ुद मार गया बिच्छु।।
    स्वार्थों में अंधा बना मानव अपना ईमान बेचते,अवांछनिय से अवांछनिय प्रवृति करने से ज़रा भी नही सकुचाता।
    उसकी आत्मा ज़रा भी प्रकम्पित नही होती।
    एक समय में —
    भारत एक अध्यात्मप्रधान देश रहा है अध्यात्म एवं धर्म के संस्कार यहाँ लोगों की नस-नस में प्रवाहित होते रहे है।आदमी का नैतिक स्तर भी बहुत ऊँचा था यहाँ तक कहा जाता है की -
    व्यापारी दुकानों के ताले नही लगाते थे।बाहर जानेवाला अपना घर खुला छोड़कर चला जाता।
    और वापस आने पर सारा सामान ज्यों का त्यों पड़ा मिलता।
    कोई किसी को लूटने की भावना नही रखता था संतोषी जीवन जीने के प्रवृति थी सादगी स्वावलम्बन से जीवन शृंगारीत था.....
    पर आज बिलकुल प्रतिकूल स्थिति ?????

    मानवता की विडम्बना है-
    महापाप है क्यों नही सोचता की जिस पैसे या स्वार्थ हेतु घिनोना कृत कर रहा है वह मरने के समय साथ नही निभाएगा।परभव साथ भी चलेगा।
    विवेक जगाय अपना मन सद्दगणों से महकाएँ,पतन के गर्त से निकलकर मानवता का राजमार्ग अपनाए।
    चाहे वह शिक्षक-डॉक्टर-वक़ील-नेता-अभिनेता-साधु-साहित्यकार कोई भी क्यों ना हो,,??
    सभी मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखे।जिससे हमारा जीवन मानवता की प्रभा से भाषियों हो उठेगा।

    आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रबुद्धता से ओतप्रोत हैं।

    आज के ब्लॉग में विशेष आदरणीय सोहनराज जी की सारगर्भित पंक्तियों हेतु 🙏🙏

    बिंदु जी रायसोनी बैगंलुरू
    (via whatsapp)

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