सेवा का सम्मान
पुलिस
अधिकारियों के मन में जो लोगों के प्रति दया व सेवा की भावना आई है उसके लिए देखा
गया जगह-जगह
लोग पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत भी कर रहे हैं। वे हमें
शिक्षा
भी दे रहे हैं इस लॉक डाउन पीरियड में जितना घर में रहेंगे, उतना सुरक्षित रहेंगे।
मैं
हमारे घर के बाहर ही आए दिन देख रहा हूं,
दिन में दसों बार पुलिस की गाड़ी निकलती है और माइक पर यही कहते हैं कृपया आप अपने
घर में रहे, आप इस लक्ष्मणरेखा को ना लांघें।
आपके
न लांघनें से आप सुरक्षित रह पाएंगे। यह जो उनका रवैया
बदला जो पहले डंडे और बंदूक के जोर से यह काम करवाते थे, अब उन्होंने प्रेम और सद्भावना की भाषा
सीख ली। यह हमारे लिए इन दिनों की बहुत बड़ी परिवर्तन है।
मैं
कामना करूंगा इस दौर के गुजरने के बाद भी उनमें वही मैत्री भाव, सद्भावना, अनुकंपा व दया का भाव रहे और हम इनकी सेवाओं का उपयोग कर अपने
आप को घरों में सुरक्षित समझे। बस यही हमारी इनके प्रति मंगल कामना है। इन दिनों
जो स्वास्थ्य कर्मी हैं,
जो
प्रशासनिक अधिकारी है उन्होंने अपने घर परिवार को छोड़कर जो जनता की सेवा का बीड़ा
उठाया है वह भी हम सबके लिए एक अनुकरणीय और प्रेरणादाई
है। समाचारों
में जब पढ़ता हूं किसी के घर में छोटे बच्चे हैं, कोई नन्हे मुन्ने को घर छोड़कर अपने
दायित्व के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य में जुटे हैं; ऐसे जज्बे को नमन करने का मन करता है। देश में एक अनुकरणीय उदाहरण पेश हो
रहे हैं किसी एक व्यक्ति द्वारा ना होकर,
पूरे समुदाय द्वारा जो पूरे देश की, समाज की सेवा हो रही है, यह हम सब के लिए गौरव की बात है अपना
घर-परिवार छोड़कर हम सब की सेवा में लगे हुए हैं।
ये सब अपने कर्तव्य व दायित्व का निर्वहन कर रहे
हैं न कि अधिकारों की मांग। इन सब के साथ ही उन सभी के जज्बे को भी प्रणाम करूंगा
जो इस दौर में हमें रोजमर्रा के जरूरतमंद वस्तुओं की मांग पूरी कर रहे हैं सब्जी
वाला, दूध वाला, पेट्रोलपंप कर्मी, बैंककर्मी, सफाईकर्मी, दमकल कर्मी, रेलवे के मालवाहक, टेलीफोनकर्मी, बिजलीकर्मी जलदायकर्मी, सेनाकर्मी आदि सभी जन अपनी सेवा के माध्यम से हमें
घर पर सभी सुविधाएं सुलभ करा रहे हैं। अंत में घर की ग्रहणिओं की सेवा की बात नहीं करूं तो मेरी
सबसे बड़ी भूल होगी, उन माताओं, बहनों, बहुओं, बेटियों
को
नमन
जिनका कार्यों की सराहना सामान्य समय में शायद
ना
हो पर वर्तमान दौर में बहुत ही तारीफे काबिल है
वे हैं तो घर है अन्यथा हम सब बेघर हैं
इस
मौके पर मुझे पापा जी की एक कविता याद आती है
यश और आनंद तो बिखरा पड़ा है
तेज और प्रकाश तो निखरा पड़ा है
पर उसे कोई लेता ही नहीं
क्योंकि लेने की शर्त है
तन दो मन, दो,
धन
दो
पर उसे कोई देता ही नहीं
जिसने कण भर दिया
उसने मण भर पाया
जो दे न सका
उसने जीवन व्यर्थ गवायाँ।
तो
हम अपने जीवन को व्यर्थ ना गवाएं और बस देते रहें और
देने
का सुख लें।
रचनाकार:
मर्यादा कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ
युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
Sir कविता में कण की जगह शायद करण लिखा गया है
ReplyDeleteji thanks, changing it now
Deleteइस समय अगर चिकित्सक जन या सफ़ाई कर्मी या अन्य जो भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं उन्हें शत शत अभिवादन।
ReplyDeleteशत शत अभिवादन गृहणियों का जिनका काम अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है । फिर भी ये बिना कुछ शिकायत एवम शिकन के निर्वाध रूप से कार्य करते हुए सबका पूर्ण रूप से ख्याल रख रही है। ये भी किसी योद्धा से कम नही है।
पुनः इनका अभिवादन, अभिनन्दन।