कला और साहित्य में छिपे नारे : जो रसिकता और समझ को बढ़ाते हैं
कला और साहित्य में छिपे नारे : जो रसिकता और समझ को बढ़ाते हैं
जिनेन्द्र कुमार कोठारी
"नारा" का शाब्दिक अर्थ है " बुलंद आवाज़ में लगाया गया घोष " . प्राचीन काल में नारा युद्ध के समय सेना द्वारा लगाया जाता था जिससे सैनिको में जोश आए और युद्ध में अधिक से अधिक शौर्य प्रदर्शन को प्रेरित करे। आधुनिक सन्दर्भ में नारे का प्रयोग समाज - राष्ट्र मे एक विशेष परिस्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करना होता है। समय के साथ साथ , सभ्यता -संस्कृति के विकास के क्रम में नारों के भिन्न भिन्न रूप हमारे समक्ष आ गए है यथा साहित्यिक , राजनैतिक ,सामाजिक , आर्थिक, शैक्षणिक , धार्मिक , आध्यात्मिक , मनोवैज्ञानिक और स्वास्थय सम्बन्धी।
नारा साहित्यिक और कलात्मक दर्ष्टि से वो ही अच्छा माना जाता है जो सहज , सरल और सुगम हो। भाषा सरल और प्रचलित शब्दों का प्रयोग हो। सर्वोत्तम नारा वो ही माना जाता है जो काम से काम शब्दों में अपनी बात व्यक्ति के ह्रदय में उतार दे. नारा एक या दो पंक्तियों ( १०-१५ शब्द) का हो ताकि लोगो की जुबान पर शीघ्रता से चढ़ जाये। शब्दों की आपसी लयबद्धता और तालमेल नारे को अधिक प्रभावी बनाते है। साहित्य और कला जगत मे प्रभावी और सकारात्मक नारा लिखना बड़ी विधा माना जाता है , साहित्य और कला को समाज का दर्पण कहा जाता है और ये दर्पण का कार्य करते है नारे , प्रकट अभिव्यक्ति से। कला और साहित्य के माध्यम से ज्ञान प्रसरित और संरक्षित होता है , जन जन तक पहुँचता है।
भारतीय राष्ट्रीयता प्रतीक "वन्दे मातरम्" श्री बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की अप्रतिम कृति आनन्द मठ हिस्सा है। भारतीय दर्शन और न्याय का राज्य वाक्य " सत्य मेव जयते " मुण्डक उपनिषद से लिया गया है। भारत माता की जय यह घोष १८७३ में किरण चंद्र बंदोपाध्याय ने मंचित नाटक " भारत माता" के दौरान दिया था , आज यह घोष राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का दिया हुआ नारा " स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" साहित्य- कला और जीवन दर्शन का अद्भुत संगम है। नारे का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही होते है , पूर्व प्रधान मंत्री श्री लालबाहदुर शास्त्री का दिया नारा " जय जवान जय किसान " ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग में पुरे देश में जोश भर दिया था। पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटलबिहार बाजपाई ने इसमें "जय विज्ञानं" और जोड़ दिया , जो यह दर्शाता है की समाज की समृद्धि के लिए सुरक्षा ,अन्न और तकनीक तीनो का ही विकसित होना जरुरी है।
साहित्य और कला की दृष्टी से वे नारे बेहतर है जो मानव -समाज- राष्ट्र की सर्वांग उन्नति के लिए हो न की किसी के प्रति घृणा अथवा आक्षेप के लिए। जैसे जल है तो कल है , जल ही जीवन है ये हमें संयम और जल संरक्षण की प्रेरणा देते है। वृक्ष लगाए धरती बचाये , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ , आज की बचत कल की कमाई , बेहतर शिक्षा बेहतर राष्ट्र , कुंजी परिश्रम ये सभी नारे शिक्षात्मक है , जीवन के बेहतर पहलू की सीख देते है।
आचार्य श्री तुलसी ने मानवीय और सामाजिक जीवन की उत्कृष्टता के दो नारे दिए थे १. संयम ही जीवन है २. निज पर शासन फिर अनुशासन , इसी प्रकार आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने नारा दिया था " जो सहता है वह रहता है"। महात्मा गाँधी का प्रसिद्ध घोष " Be the change you wants to see in the world " . ये नारे हमारे जीवन की समस्याओ का समाधान कारी है।
व्यावसायिक नारे भी हमें जीवन शिक्षा देते है। भारतीय जीवन बीमा निगम का नारा " जिंदगी के साथ भी -ज़िंदगी के बाद भी " GIC का नारा " आपत्काले रक्ष्यामि " टाटा नमक का नारा " देश का नमक " भारतीय सेना का नारा " Service Before Self," अमूल के साप्ताहिक नारे जो की समसामयिक विषय पर होते है , का तो बेसब्री से इंतज़ार रहता है।
हमने देखा साहित्य और कला जगत से जुड़े नारे न केवल हमारी समझ बढ़ाते है वरन जीवन में समरसता भी लाते है।
युवादृष्टि July 2024 publish
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