खुली आंख का सपन - अणुव्रत आंदोलन
खुली आंख का सपन - अणुव्रत आंदोलन
वर्तमान जैन धर्म का प्रगपन श्रमण महावीर प्रतिपादित है आत्मकृतत्व के सहारे सत्य का साक्षात्कार करने वाले तेजस्वी पुरुष के धर्म दर्शन में सत्य -अहिंसा -अपरिग्रह-अचौर्य मुख्य तत्व है . जब हम विश्व के अन्य धर्म दर्शनों को देखते है तो पाते है की इन में भी मुख्य दर्शन तत्व नैतिकता ,सच्चाई , क्षमा - करुणा अदि है जो की सत्य -अहिंसा के ही रूप है।अर्थ की अनर्थ लालसा और नैतिक मूल्यों के क्षरण ने धर्म के इन शाशवत मूल्यों को कर्म-कांड तक सीमित कर दिया और आचरण के स्तर पर अप्रभावी इस पृष्ठ्भूमि में आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन को प्रवर्तित किया।
"अणुव्रत " स्वतंत्र भारत का नैतिक मूल्यों की पुनःस्थापन और आचरण विशुद्धि का प्रथम आंदोलन था। प्रत्येक धर्म का अनुयायी अपनी अपनी धार्मिक क्रिया करते ,हुए , छोटे छोटे संकल्पो से अपने दैनिक आचरण पक्ष को उन्नत करे। आचार्य श्री ने स्पष्ट घोषणा की " अपने अपने धर्म स्थानों पर न जा सको लेकिन यदि आप जीवन जीने में प्रमाणिकता -शांत सहवास -मैत्री -करुणा रखते है ,तो आप सच्चे धार्मिक है , सच्चे मानव है।
अणुव्रत आंदोलन जाति-संप्रदाय -छुआछूत - रंगभेद से परे जाकर मानव जाति ही नहीं प्राणी- वनस्पति सभी के हेतु हितकारी आंदोलन है। मनुष्य छोटे छोटे सम्यक संकल्पों से अपने जीवन को उन्नत बनाये इससे प्राणी और पर्यावरण दोनों ही लाभान्वित होंगे। व्यक्तियों का समूह समाज और समाज का समूह राष्ट्र इस तरह अणुव्रत संस्कार का जड़ से सिंचन कर विश्व बंधुत्व की भावना विकसित करता .यदि वृक्ष की जड़ मजबूत है तो पेड़ फलदायी -छायादार होकर सबके ली लाभदायी होगा,यही अणुव्रत का मूल मंत्र है अहिंसक -मैत्री पूर्ण- नैतिक समाज का निर्माण.
अणुव्रत अमृत वर्ष के सन्दर्भ में जब हम अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी की प्रारंभिक दो दशक की यात्राओं को पढ़ते है -सुनते है तब पाते है कि उन्हें कितने - कितने विरोधों का सामना करना पड़ा ( आतंरिक -बाहरी) , छापर में हरिजन बस्ती में प्रवचन हो , राजनगर चातुर्मास में सलवियो की गोचरी हो , नया मोड़ के अंतर्गत सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार ( पर्दाप्रथा ,दहेज़,आवश्यक शोक,प्रदर्शन) हो, तेरापंथ धर्म संघ की साधु और श्रावको के विग्रहीत प्रश्न हो , अन्य धर्मावलम्बियों ने सशंकित प्रश्न उढ़ाये , इन सब प्रारंभिक बाधा को आचार्य श्री तुलसी और उनके अन्नय सहयोगी आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ( तब मुनि श्री नथमल जी) अप्रतिम साहस और धैर्य से पार किया। अणुव्रत के सामाजिक प्रभावों को हम शायद बड़े स्तर ( Macro level ) पर दृष्टी गोचर न कर पाए लेकिन व्यक्ति स्तर ( Micro Level )पर सामाजिक जटिलताओं को सुगम्य बनाने में अणुव्रत ने महती भूमिका निभाई है।
मैं कुछ व्यक्तिगत अनुभव भी साझा करना चाहूंगा, अंकलेश्वर (गुजरात ) से ३० किलोमीटर दुरी पर स्थित एक ग्राम विधयालय में मेरा शैक्षणिक प्रोजेक्ट के लिए जाना हुआ ,वहां पर आचार्य श्री तुलसी शताब्दी वर्ष कैलेंडर अणुव्रत अचार सहिंता और जीवन विज्ञानं देखकर मुझे प्रसन्ता हुई , प्रधानध्यापक जी ने बताया अणुव्रत पर्यावरण अचारसहिंता का पालन कर शाला परिसर में बगीचा विकसित किया है। इसी तरह आचार्य श्री तुलसी की १९६० में बालोतरा में अणुव्रत यात्रा हुई थी तथा एक हमारे परिचित सिंधी डॉक्टर ने मासाहार का त्याग किया , जिसको उन्होंने आजीवन निभाया , यह सब है अणुव्रत की सामाजिक चेतना का जीवंत उदहारण है।
भारतीय संस्कृति में संत वाणी अत्यधिक महत्व है , व्यक्ति कानून के समक्ष असत्य बोल देता है लेकिन आमजन संतो के समक्ष झूठ बोलना , लिए हुए तोडना महापाप मानता है, इस को ध्यान में रखते हुए आचार्य श्री तुलसी ने नगर-नगर ,गांव - ,गांव, ढाणी -ढाणी में अणुव्रत पदयात्रा में उनकी बुराइयों की खोट मांगी। हज़ारों -हजारों लोगो ने मदिरापान ,मासांहार ,पशु वध ,मिलावट , कर चोरी ,दहेज़ प्रथा , कन्या भ्रूण हत्या , छुआछूत जैसे बुराइयों का परित्याग किया। २९ जनवरी १९६० , दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के साथ मुलाकात प्रसंग, आचार्य श्री तुलसी लिखते है " बड़े बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों ने हमें कहाँ कि हम राजनेताओ के सामने वादे करते है और तोड़ देते है ,लेकिन आपके सामने असत्य नहीं कहेंगे क्योँकि आपसे लिए व्रत तोडना महापाप है" आचार्य श्री आगे लिखते है ,इस घटना का प्लस पॉइंट इतना सा ही है लोग संतो का आदर करते है और समक्ष झूठ बोलने में संकोच करते है। यहाँ थे अणुव्रत का आर्थिक सामाजिक प्रभाव जहां बड़े बड़े उद्योगपतियों ने भी व्यापारिक दूषणो से दूर करने का प्रयास किया।
अणुव्रत का एक सबसे प्रभावी सामाजिक पहलू है इसका असम्प्रदयिक स्वभाव , इससे तेरापंथ - जैन धर्म और अन्य धर्मो के मध्य संवाद बढ़ा , आम जन को धर्म की नई परिभाषा मिली। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने धर्म के कर्म कांड एवं आचरण पक्ष की युगीन अवधारणा प्रस्तुत की। अणुव्रत के कारण धर्मो के मध्य सांप्रदायिक भाव तिरोहित होने की प्रक्रिया आरभ हुई।
अणुव्रत के अमृत वर्ष में जब हम समग्रता से समीक्षा करते है तो ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि स्वतंत्रता पश्चात् भारत में नैतिक -सामाजिक शुद्धि के आंदोलनों में अणुव्रत ने महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। अन्य आंदोलनों यथा भूदान ,भारत सेवक समाज ,व्यव्हार शुद्धि आंदोलन ,तरुण भारत आदि सुधारवादी आंदोलन की धार या तो मंद हो गई है या बंद हो गई है लेकिन अणुव्रत का सिंहनाद आज भी पुरे जोश के साथ अनैतिकता की बुराई से लड़ने की प्रकिया जारी है । सफल कितने हुए -कितने नहीं यह सब एक सापेक्ष प्रश्न है , महत्वपूर्ण है २१ वि शताब्दी के दौर में भी ७५ वर्ष पूर्व किया गया नैतिक मूल्यों की पुर्नस्थापना का आंदोलन जीवंत है , गतिशील है और समय के साथ उपयोगिता सिद्ध कर रहा है। आचार्य श्री तुलसी प्रवर्तित खुली आंख का सपन अणुव्रत मनुष्य मनुष्य के बीच बंधुत्व की भावना और सर्व समावेशी मैत्री को विकसित कर रहा है।
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