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नापसंद ही हमारी पसंद: नोटा 

विश्व में मानव सभ्यता एवं समाज निर्माण विकास क्रम में शासन तंत्र की विभिन्न प्रणालियाँ विकसित हुई , यथा कुलकर व्यवस्था , राजतंत्रीय शासन, तानाशाही  एवं

आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था जहाँ जनता अपने मतो से अपने प्रतिनिधि चुनते है. भारत में १९४७ में औपनिवेशक सत्ता से मुक्ति के बाद ब्रिटिश आधारित संसदीय प्रणाली की शासन व्यवस्था का चयन किया ,जिसमे चुनाव में खड़े हुए उमीदवारों में जिसे सबसे अधिक वोट मिलते है उसे घोषित किया जाता है. First past the post  विजेता उमीदवार को  कुल मतदान का अल्पमत मिले लेकिन अन्य सभी उमीदवारो में सर्वाधिक।भारत में  इस कारण से ३५-४०% वोट प्राप्त कर भरी बहुमत से सरकार  बना लेते है।  इस पृष्ठभूमि में भारतीय  निर्वाचन प्रणाली  में "NOTA ( NONE OF THE ABOVE ) का प्रयोग प्रारम्भ किया।  

चुनाव में मतदाता अपनी नाराजगी मतदान  करके कर सकता है लेकिन यह एक नकारात्मक प्रभाव होगा लेकिन जब एक मतदाता सभी को  नापसंद वाला विकल्प चुन कर मतदान करता है तो वो एक सकारात्मक प्रतिरोध है।  इससे चुने हुआ प्रतिनिधि पर एक नैतिक दायित्व  जाता है।  यही नापसंद ही हमारी पसंद बन जाती है। NOTA के कुछ पहलुओं की चर्चा करते है ,

. नोटा का पहला प्रयोग २०१३ में  पांच राज्यों की विधानसभा चुनावो एवं बाद में लोकसभा  चुनावों २०१४ से इसे नियमित रूप से चुनाव प्रणाली  अंग  बन गया।  

 . नोटा को जाहे कितने मत मिले , विजेता उम्मीदवार से अधिक हो  तो भी सर्वाधिक मत प्राप्त उमीदवार ही विजेता घोषित किया जाएगा , इस कारण से इसे विषहीन भुजंग की उपमा दी जाती है। 

. नोटा का वोट प्रतिशत चुनाव को प्रत्यक्ष नहीं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है , रस्सा कसी वाले  चुनावो में नोटा का मतदान , विजेता और पराजित उम्मीदवार के अंतर से अधिक होता है , इसी कारण  से राजनैतिक दल इस विकल्प  को  हटाने की मांग करते  रहे है।  

  नोटा का अधिक वोट प्रतिशत विजेता उम्मीदवार के लिए एक चेतावनी भी है , जनता के समस्या को समाधान दे अन्यथा अगले चुनाव में पराजय का भी सामना करना पड़ सकता है।  ये आधुनिक सविनय अवज्ञा अभिव्यक्ति है।  

  बिना किसी आर्थिक भार , सामाजिक विग्रह के , हिंसा -तोड़फोड़ के जनता अहिंसक तरीके से मतदाता अपनी नाराजगी व्यक्त करती है , संवेदनशील सरकारों को  इस पर अवशय ध्यान देना चाहिए।  

 नोटा का मत प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनावो में .०४ प्रतिशत ( लगभग ६५ लाख )था और पिछले  वर्षो में जितने चुनाव हुए उनमे लगभग . करोड़  मतदाताओं ने इसका उपयोग किया ,अतः स्पष्ट है ये परिणाम बदल  नहीं सकता लेकिन प्रभावित जरूर कर सकता है। 

 .  पसंद का विकल्प मतदाता का लोकतंत्र प्रति आस्थावान है ये भाव प्रकट करता जबकि मतदान ही नहीं करना निराशा का प्रकटीकरण है , अतः अब जरुरत है नोटा विकल्प को थोड़ा अधिक प्रभावी बने। 

. नापसंद ही हमारी पसंद ( NOTA )  प्रतिशत यदि सर्वाधिक हो या कुल मतदान का २५- ३० % से अधिक हो वहां दुबारा चुनाव करवाया जाये अथवा विजेता उम्मीदवार  कार्यकाल  सामान्य ( ५वर्ष ) से छोटा हो  .

नोटा लोकतंत्र के लिए एक whistle blower  कार्य करता है , आज आवश्यकता है इसे अधिक प्रभावी बनाया जाये ताकि भारतीय लोकतंत्र ओर बेहतर तरीके से कार्य कर सके और नापसंद ही हमारी पसंद एक प्रभावी वाक्य  बन जाये।  

जिनेन्द्र कुमार कोठरी 

अंकलेश्वर 

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