जिंदगी चलती रहे - यौवन बढ़ता चले
जिंदगी चलती रहे - यौवन बढ़ता चले
कवि की पंक्ति से प्रारंभ करते हैं
" निर्झर में गति है,जीवन है ,वह आगे बढ़ता जाता है !
लहरें उठती है , गिरती है ,तब यौवन बढ़ता आगे ,बढ़ता ही जाता है।
चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है !
रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है !
जीवन की उपमा नदी के कलकल प्रवाह से , समुंद्र की अथल गहराई से , वृक्ष के काल क्रम से और पानी के अनवरत झरने से की गई है। इन सबमे गतिशीलता और परिवर्तन के साथ सांमजस्य की क्षमता इनकी उपयोगिता बनाये रखती है , उपमित जीवन भी निरंतरता के साथ गतिशील रहे तभी जिंदगी की प्रांसगिकता है, तभी तो जिंदगी चलती रहे यौवन बढ़ता चले ।
यौवन का सम्बन्ध मात्र अवस्था से कतई नहीं है , वरन आपके स्वास्थय ( शारीरिक और मानसिक) , मन की सोच , सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश एवं शिक्षा से भी गहरा नाता है। Hit युवा Fit युवा वही है जो जिंदगी में नित नवीन चुनौतियों का सामना करते हुआ विकास करे। जीवन में सभी के उतार - चढ़ाव , कृष्ण -शुक्ल पक्ष , दुःख - सुख आते है उनका सकारात्मक ढंग से मुकाबला करना यौवन की निशानी है। आचार्य महाश्रमण जी अवस्था की दृष्टी से युवा नहीं है लेकिन साधना -सोच - स्वास्थय की त्रिवेणी से आज भी दिन में १९-१८ घंटे श्रम करते है। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने तो जीवन के नौवें दशक में अहिंसा यात्रा की. महामना आचार्य श्री भिक्षु जीवन के अंतिम वर्ष तक खड़े -खड़े प्रतिक्रमण करते थे। आचार्य श्री तुलसी को हमने ८० वर्ष की अवस्था में १६-१६ घंटे श्रम करते देखा है , आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के शब्दों में " जीवन भर काम करूँगा , गण का भंडार भरूंगा , संकल्प अटूट निभाया " ये सभी व्यक्तित्व ज़िंदगी चलती चले यौवन बढ़ता चले के जीवंत उदहारण है।
हम नदी के नीरव प्रवाह से सीख सकते है जहाँ स्थिरता के साथ- साथ प्रतिपल नवीनता भी है , सागर की अथाह गहराई में शक्ति के साथ -साथ अनुशासन और मर्यादा भी है , वृक्ष का पतझड़ और वसंत कभी न हार मानने जिजीविषा भी है। वृक्ष की जड़ सिद्धांतो के प्रति निष्ठां भी है। जिंदगी में उपरोक्त सभी उपमित सद्गुण ऐसे उर्वरक कार्य करते करते जो जिंदगी के अनुभवों और अनुभूतियों को जीवन पर्यन्त यौवनमय रखता है , यही तो है सम्पूर्ण जीवन को युवा बनाये रखने का सारभूत तत्व.
व्यक्ति को समय समय पर युगानुसार परिवर्तित करते रहना चाहिए। एक कहावत है की शिक्षक कभी वृद्ध नहीं होता कारण वे हमेशा युवाओ के साथ रहते है। अप्रासंगिक रूढ़ियों , सामाजिक व्यवहारों एवं परंपरागत आदर्शो पर जो बिना विचारे अड़े वे वस्तुतः ठूंठ का पेड़ है जो सड़ांध एवं जड़ता का प्रतीक है , ऐसे व्यक्ति की ज़िन्दगी चाहे अवस्था से युवा हो वृद्ध सी ही है . हमारे विचार लचीले , तर्कपूर्ण ,समन्वयवादी और वैज्ञानिक होने चाहिए तभी जिंदगी चलती रहेगी -यौवन बढ़ता चलेगा. आचार्य श्री तुलसी ने युग को परख कर मूल मान्यताओं को अक्षुण रखते हुए तेरापंथ धर्मसंघ को एक नै दिशा दी , आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने गतिशीलता के साथ प्रेक्षा ध्यान , युग प्रेरक साहित्य दिया और इन दोनों युगप्रधान आचार्यो ने तेरापंथ को चिर यौवन बना दिया. हमारे सामने उदहारण है अमिताभ बच्चन जो तीन पीढ़ी के कलाकारों के साथ आज भी कार्य कर रहे है , सचिन तेंदुलकर ने अपने क्रिकेट करियर में अपने शरीर और खेल की मांग अनुसार परिवर्तन कर अपने खेल को नै उचाईया दी , प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इस अवस्था में भी नई -नई तकनीक का प्रयोग कर अन्य सभी से मीलो आगे है।
योग , ध्यान साधना , आहार संयम, स्वाध्याय , सत्संग ,नैतिकता और कार्य के प्रति सत्य निष्ठा ये सब ऐसे प्रयोग है जिनके माध्यम से जिंदगी में भौतिक के साथ साथ आध्यात्मिक विकास भी होता और हमारा यौवन भी बढ़ता चलता है।
श्री कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर ने अपने निबंध " एक था पेड़ और एक था ठूंठ " में लिखा है - जिस जिंदगी में समझौता नहीं , समन्वय - सामजस्य नहीं , वह जीवन कहाँ है ? रावण , हिटलर , स्टालिन जो केवल अपने मत को ही श्रेष्ठ थे वो काल के गर्त में नष्ट हो गए। इन्ही के शब्दों में थोड़े परिवर्तन के साथ
जीवन की भाषा - दे ,ले
जीवन प्रणाली - कह ,सुन
जीवन यात्रापथ - मान , मना
इन तीनो का समन्वय है हिलना -झुकना , समझौता और जड़ की भांति सत्य के प्रति अडोलता।
यही सारतत्व है जिंदगी चलती रहे ,यौवन बढ़ता चले।
Very True but Very Difficult . We all know but we failed to do - Reason may be whats ever , For every human being. Those who rectify reasons at early stage lives life with peace. Narendra Jain Through whatsapp
ReplyDeleteChange always acceptable. Mona shah Through whats app
ReplyDeleteBahut khub👌, Anita kataria through whats app
ReplyDelete