अधिकार : दायित्व और कर्तव्यों


 

आज के दौर में अधिकारों की आपाधापी चल रही है। पता नहीं हर व्यक्ति यह चाहता है कि यह करना मेरा ही अधिकार है। लेकिन दायित्व और कर्तव्यों के प्रति कोई उसका लेना-देना नहीं लगता। मानसिकता यह हो गई हमारे अधिकार क्या है यह जानने से पहले हमें बताया जाए कि दायित्व और कर्तव्य क्या है

पिछले दिनों यूट्यूब पर कई वीडियो देखने में आए। इनमें देखा गया दुर्घटना घटी तब लोग वीडियो बनाने में मशगूल है न कि जान बचाने में। यह सब क्या हो रहा है कहां गई हमारी मानवीय संवेदना यह हमारा कर्तव्य क्या केवल मात्र घटना को किस तरीके से प्रदर्शित करें यही रह गया क्या हमारी संवेदना तो लगता है खत्म हो गई। संवेदना के साथ-साथ लगता है करुणा दया भाव में भी बेहद कमी आ रही है। प्रश्न यह है ऐसा क्यों हो रहा है सोशल मीडिया का जमाना होने कारण के लगता है, हर व्यक्ति घटना को अपने नजरिए से देखकर सबसे पहले परोसना या बताना या प्रचारित करना चाहता है। जबकि उसका दायित्व है वह मानवाधिकार के तहत कार्य करें, नागरिक होने कर्त्तव्य निभाए।

पुलिस को अधिकार है कानून व्यवस्था बनाए रखने का। पर वे भी डंडे बरसा कर क्या बताना चाहते है यह समझ के बाहर की बात है। अधिकारों की पालना कर्त्तव्य के साथ करेंगे तो दायित्वों का निर्वाह उचित तरीके से कर पियेगा।

नेता जो कानून बनाने के लिए विधायिका में बैठते हैं और वही नेता कानून की धज्जियां उड़ाते हैं। अपने चुनावी दौरों में कोरोना काल में जहां आम आदमी को मास्क न पहनने पर दंडित किया जाता है। एक राज्य से दूसरे राज्य में आने पर नेगेटिव रिपोर्ट मांगी जाती है, क्वॉरेंटाइन होने का कहा जाता है पर राजनेताओं के लिए कोई बंदिश नहीं। वे चाहे जहां का दौरा करें ,चाहे जहां पर जाकर आए, कोई रोक नहीं। नियम, कायदा, कर्तव्य व दायित्व उनके लिए नहीं जैसे उनका ये अधिकार है। यह सब करने आम जनता कानून के दायरे में स्थिति है।

संगठन में भी यही हालत है अधिकार सब चाहते हैं और कर्तव्य और दायित्व के प्रति कोई सचेतता नहीं है। सदस्यों से अगर कहा जाए कि उनका दायित्व यह है, कर्तव्य यह है तो वे केवल अपने अधिकार मांगते हैं। यह जो सब हो रहा है इससे स्वस्थ समाज की संरचना में बड़ा ही रोग है। इसे रोकना होगा लेकिन रोकेगा कौन रोकने वाले स्वयं ही अधिकार जताकर दायित्व और कर्तव्य के प्रति लापरवाह हो रहे हैं । देश के प्रति किसी का कोई दायित्व नहीं है, कर्तव्य नहीं। संघ समाज या परिवार जिसका वह सदस्य हैं, उसमें भी हम अधिकारों की बात करते हैं। दायित्व कर्तव्य किताबों में है। कहीं कोई और से उन्हें नहीं पूछता, स्वयं की निष्ठा आस्था केवल अधिकारों के प्रति है। दायित्वों के प्रति नहीं अगर हम दायित्व के प्रति सचेत हो जाएं तो किसी भी समाज या संगठन में या कह दूं देश में कोई भी कमी नहीं होगी। सभी अपने अपने कर्तव्यों का पालन सही ढंग से करें तो देश नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगा। कर्तव्य और दायित्व विधान में तो है पर जीवन में नहीं आए।

जीवन में उनके प्रति निष्ठा जगी और उनके महत्व को अगर समझ ले तो, हमारा देश, परिवार, संगठन समाज सब प्रगति की ओर आगे बढ़ेगें। अन्यथा अधिकारों की आपाधापी में प्रगति की जगह समाज में विकृति पैदा हो रही है। मानसिकता को बदलना है, दायित्वों के प्रति गहन चिंतन करना हैं, मनन करना है, हम सब सभ्यता के उस पड़ाव पर हैं जहां की संस्कृति एक मोड़ ले रही हम उस मोड़ में अपने आप को ढालें। लेकिन नहीं ढा़ल पाये तो हमारी संस्कृति की सुरक्षित नहीं रह पाएगी। समाज की जो दिशा और दशा वर्तमान में है यह हम सब के लिए विचारणीय  है। सुसंस्कृत नागरिक होने के लिए या किसी संगठन के निष्ठावान सदस्य होने के लिए हमें संगठन के प्रति कुछ अपने दायित्व का निर्वाह अवश्य करना चाहिए। जब हम अपने दायित्वों का निर्वाह कर पाएंगे, कर्तव्यों के प्रति अपनी आस्था प्रकट करेंगे तभी संगठित समाज सभी रह सकता है। उसके सभी सदस्य संगठन के विधान में वर्णित कर्तव्यों का चलकर संगठन के मापदंड को ऊंचा उठाएं।

वर्तमान परिस्थिति में हालत यह है कि मैं देखता हूं कोरोना का प्रकोप वापस बढ़ रहा है और इस बीमारी के बढ़ने का जो कारण है वह मैं मानता हूं हम सब अपने अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति सचेत नहीं है। चाहे मास्क लगाना हो, चाहे दो गज की दूरी हो और चाहे सार्वजनिक स्थल पर भीड़ का जमाव हो इन सब में हमें पूर्ण जागरूकता रखनी पड़ेगी। पूर्ण जागरूकता रखकर ही हम इस महामारी से बच पाएंगे, अन्यथा हर व्यक्ति करीब करीब चपेट में आ रहा है। अपना दायित्व निभाते हुए हम सोचे हमें क्या करना है हमें इस महामारी की चेन को किस तरह से खत्म करनी है। यह तभी हो सकता है जब हम दायित्व और कर्तव्य के प्रति सचेत रहेंगे अधिकारों के प्रति नहीं। चाहे चुनाव हो, चाहे कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन हो या चाहे विवाह समारोह आदि व्यक्तिगत कार्यक्रम हो सभी में सहभागिता निभाते हैं तो उसमें अपने दायित्वों का निर्वाह करें। नहीं करने हैं पर इसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है।

इस माह में नवरात्रि का त्यौहार है, जिसमें माता दुर्गा हमें कर्तव्य और दायित्व के प्रति सचेत करती है। भगवान श्री राम जो कि मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उनका जन्मदिन है। उन्होंने अपने राज्य के अधिकार को छोड़कर पिता की आज्ञा को कर्तव्य मानकर वनवास के लिए प्रस्थान कर गए। प्रेरणा पुरुष भगवान श्री महावीर ने गर्भ के समय ही अपनी माता को कष्ट नहीं देने के लिए संकल्प लिया तथा माता पिता के रहने तक दिक्षित नहीं हुये, यह उनका दायित्व के प्रति समर्पण हैं। ऐसे महापुरुषों का इस माह में जन्मदिन है, जो हमें दायित्व और कर्तव्यों के प्रति सदैव प्रेरणा देते रहते हैं। बस उनसे प्रेरणा लेकर मैं इतना ही कह कर अपनी बात को विराम दूंगा अधिकारों पर नहीं दायित्वों और कर्तव्यों पर ध्यान दें।

अंत में पापा सोहनराज जी कोठारी की यह कविता मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के प्रति ---

हरा भरा बगीचा जिसमें स्वच्छ सुरभित सजी सब क्यारी,

पुष्प, वृक्ष, लता, वल्लरी, कटी-छटी शोभा पा रही सारी,

प्रवाहाश्रित निर्मल जल, रंगीन फव्वारों से खिल रहा उपवन,

ऐसा ही था सुंदर, सँवारा मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन,

विनम्र पुत्र, संकल्प शील योद्धा, सुशील पति, स्नेहसिक्त भाई,

लोक-हितकारी शास्ता के रामराज्य की जग देता है दुहाई,

उसके चरित्र का जिसने भी स्पर्श किया वह बन गया आदर्श,

युगों युगों तक उसके चरित्र की चर्चा सीन, जग पा रहा अपूर्व हर्ष।।

- मर्यादा कुमार कोठारी

(आप युवादृष्टितेरापंथ टाइम्स के संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं)


Comments

  1. Really true the present situation.

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  2. संवेदनाएं,करूणा व सहानुभूति जैसी कोमल भावनाएं कमतर तो नहीं कही जा सकती है।किन्तु ऐसा लग रहा है कि मीडिया में प्रसिद्धि की चाहत ज्यादा बलवती होती जा रही है।इस परिदृश्य में समानुभूति का लोप भी मानवीय मूल्यों के संदर्भ में चिंताजन्य स्थतियों को आकार-प्रकार दे रहा है।सच पूछा जाए तो मीडिया की अनर्गल प्रचुरता से हम स्व से ही दूरियां बढाये जा रहें हैं।अपेक्षा है हम स्वय॔ के प्रति प्रीति का विकास करते हुए समानुभूति का अभ्यास करें।

    गौतम सेठिया, चेन्नई।

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  3. सम्मानीय भाई श्री मर्यादा कुमार जी कोठारी
    सादर जय जिनेंद्र
    सबसे पहले तो मैं आदरणीय जज साहब की महान आत्मा को सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं मुझे ऐसा लगता है कि आज समाज में आदरणीय जज साहब जैसे व्यक्तित्व होते तो समाज की यह दुर्दशा नहीं होती दूसरे में मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि आज देश के प्रधानमंत्री गृहमंत्री जैसे लोग भी अपने कर्तव्य के प्रति सजग नहीं है तो दूसरे की बात करना तो बेमानी है अब सबको सत्ता की मलाई ऐशो आराम की जिंदगी बिना मेहनत किए चाहिए झूठ बोलो और राज करो देश का प्रधानमंत्री सैकड़ों बार झूठ बोल सकता है जनता से झूठे वादे कर कर सत्ता में आना अब एक परंपरा बन चुकी है मुझे तो नहीं लगता कि पूरे देश में 20 नेता भी ईमानदार मिल जाए जनता पर जो शासन करेंगे वह झूठे व चोर होंगे तो पब्लिक उनसे क्या सीखेगी आप ही बताइए जज भ्रष्ट होते जा रहे हैं पुलिस पर तो काले धब्बे परंपरा से लगे हुए हैं सरकारी एजेंसियां चाहे चुनाव आयोग हो सी बी आई हो ई डी हो निष्पक्ष रही नहीं कुआं में भांग पड़ गई है
    जो नेता वह राजनीतिक दल घोटाले करते हैं कितनों को सजा हो पाती है बस जनता को खुश करने के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं तू चोर तू चोर ऐसे नहीं कहते कि मैं चोर हूं मेरा तो ऐसा मानना है टोटल राजनीतिक दल चोर है और सभी बड़े बड़े घोटाले करते है कोठारी साहब कई लोग तो राजनेताओं के साथ फोटो खिंचवाने मैं अपना अहोभाग्य समझते हैं इंसानियत ही मर गई है स्वार्थ हावी हो गया है मैंने पिया मेरे बैल ने पिया अब चाहे कुआं ढह पड़े ऐसी हालत में सुधार की अपेक्षा नहीं की जा सकती पहले ऊपर से सुधार होना जरूरी है बाद में जनता तो राजा का अनुसरण अपने आप कर लेगी राजा चोर होगा तो प्रजा कभी भी ईमानदार नहीं रह सकती आपका प्रयास बहुत ही सराहनीय है लगातार आपके लेख आ रहे हैं अपना अमूल्य समय समाज को दे रहे हैं कोशिश जारी रखिए कभी न कभी सफलता जरूर मिलेगी बहुत-बहुत धन्यवाद सा🙏🙏

    सोहन सालेचा , सुरत।

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