कहते कुछ हैं करते कुछ है

 


सारी दुनिया मुंह पर मास्क लगाकर चल रही है पर कोरोना वायरस के डर से। ये देखकर कई बार यह लगता है कि पहले ही कई लोग कई मुंह लगाकर रहते आ रहे हैं। कहते कुछ हैं करते कुछ है। यह बात हर स्तर पर हर जगह पर देखने को आपको मिल सकती है। थोड़ा सा हम ध्यान लगाएं तो पता चलेगा जो मानदंड है या जो पैमाना है वह अपने लिए अलग दूसरे के लिए अलग। यह बात गले कम उतरती है लेकिन ऐसा हम सब करते हैं। मैंने जहां तक अनुभव किया है सब जगह यही चलता है जैसे मैं राजनीति की बात करूं तो राजनीति में अपनी पार्टी में कोई दूसरा  पार्टी का सदस्य आता है तो कहते हैं उसका हृदय परिवर्तन हो गया और अपनी पार्टी से कोई सदस्य जाता है तो कहा जाता है वह दलबदलू है। यह दोहरापन जो है यह हमारी दुनिया में बराबर चलता है। अब मास्क लगाने के बाद तो चेहरों का पता ही नहीं चलता। मेरे को अभी कई बार बाहर जाने का काम पड़ा तो कई लोगों ने कहा पहचाना नहीं क्योंकि चेहरे पर मास्क था। लेकिन मुझे लगता है हम तो वैसे भी कई चेहरे लगा कर चलते हैं जहां दोहरा पन में जीते हैं। ये मास्क तो बाहरी आवरण है भीतर का चेहरा  जो दोगलापन लिए है वह कैसे नजर आए।

मैं बात करूं इस कोरोना काल में कई परिवारों में ही देखा है जहां अपने परिवार में कार्यक्रम है तो आप अच्छे रूप में कर रहे हैं। सब को बुला रहे हैं और नहीं जाते हैं तो नाराज भी होते हैं। आप उन्हें किसी कार्यक्रम में बुलाते हैं तो कहते हैं कोरोना काल है, नहीं आने का यह बहाना बनाकर इस तरीके से जो यह काम चल रहा है। यह केवल मात्र मापदंड अपने लिए अलग दूसरों के लिए अलग। यही हो गया है ऐसी ही एक बात मैं करूं समाज में एक बात और अभी देख रहा हूं बेटी को पढ़ाएंगे लिखाएंगे और चाहेंगे अफसर बने। बेटे की बहू  घरेलू हाऊसवाइफ चाहिए। इस  दोहरीकरण में यह पता नहीं क्या आपकी बहू भी किसी की बेटी है, आपकी बेटी भी किसी के यहां बहू बनेगी।  बेटी कॉर्पोरेट कल्चर की बहू गृह कार्य में दक्ष। यह मानसिकता कईयों की देखी यह मानसिकता का दोहरापन है। आप जब तक बहू को बेटी नहीं मानेंगे या अपनी बेटी को किसी के घर की बहू मान कर नहीं चलेंगे तो कैसे काम चलेगा। बेटी के लिए मापदंड अलग बहू के लिए मापदंड अलग तो फिर परिवार में कहीं न कहीं दरार पड़ने की बात अवश्य आ जाती है। यह सब हमारी दोहरी मानसिकता का फल है। हम विचार करें यह दोहरी नीतियों का हम जो मापदंड या मानदंड या पैमाना अपने लिए बनाते हैं वही हम दूसरों के लिए भी काम में ले।  जहां मैं नहीं जा सकता तो मैं दूसरों को क्यों बुलाऊं। मैं मेरी बेटी को अगर पढ़ी लिखी कॉर्पोरेट कल्चर की समझता हूं तो बहू से भी चाहूंगा ऑफिस में काम करें। हृदय परिवर्तन और दलबदल इन दोनों में जो फर्क है, वह हमें समझना पड़ेगा वह हमारी मानसिकता में  विचारों में ,नीतियों में लाना पड़ेगा। अन्यथा परिवार विघटन की ओर जाएंगे और आपस में रिश्ते में दरारें बढ़ेंगी। अपनी सोच को बदलें, अपनी समझ को बदलें और समय के साथ अपने आप को ढ़ालें। तभी हम सही दृष्टि से यह सारी चीजें समझ पाएंगे अन्यथा दोहरी मानसिकता की उलझन में उलझ कर घर, परिवार समाज, राष्ट्र व विश्व तक को उलझा देंगे। जरूरत है सम्यक दृष्टि की, सकारात्मक सोच की ओर आगे बढ़ने की।

मुझे पापा जी सोहन राज जी कोठारी की एक कविता याद आ गई।

पूछा गुरुवर से, ''क्या तीरथ का रास्ता यही,''

"पीछे चले आओ, मार्ग मिल जाएगा सही,"

वर्षों तक चलता रहा उनके पीछे, दिन रात

कि यकायक रोष में भरकर गुरु बोले

"सही मार्ग पर तुमने मुझे पहुंचाया ही नहीं"

बस हम उसी सही मार्ग को पकड़ने का प्रयास करें बिना दोहरेपन के, यही काम्य है।

रचनाकार:

मर्यादा कुमार कोठारी

(आप युवादृष्टितेरापंथ टाइम्स के संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं)

Comments

  1. मर्यादा जी
    आपके विचार से पूर्णता सहमत हूं

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  2. Truth of today's so called modern culture....

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  3. बहुत सुन्दर मार्मिक आलेख

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  4. यह बिल्कुल सही व सविषेश सामायिक चिंतन का विषय है। ऐसी ऊहापोह जो हर परिवार के लिए विसंगतियों को पनाह दे रहा है।यह भी सच्चाई है कि पारिवारिक व प्रासंगिक जीवन में ऐसी विषमताओं का निस्तारण आसान नहीं है।जीवन शैली में बदलाव होते रहते हैं और प्रत्येक परिवर्तन नयी समस्याओं को एक भिन्न कलेवर में पैदा कर देता है। मुझे आपके द्वारा उल्लेखित विचार सरणी में यह समाधान समीचीन लगता है कि हरेक परिवार की सोच और संगति में सामंजस्य की राह तलाशी जाये तो एक सानुकूल परिवेश का निर्माण असंभव नहीं है।

    गौतम सेठिया, चेन्नई (via sms)

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  5. Very very true. I really appreciate your vision , passion matched with action , your zeal to bring change in our thought process .👍💐🙏

    पन्नालाल टांटिया, चेन्नई।

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  6. Nice and Perfect Topic for current world
    Specialy in our community
    Let's hope things will change
    And it is changing Also..

    नरेंद्र मांडोतर

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  7. कोठारी सा मैंने ज़्यादातर अगवानी महानुभावो को देखा है एक ही काम है जो वो ख़ुद करते है तो सही है और कोई दूसरा व्यक्ति अगर वही काम करता है तो ग़लत 🙏🙏🙏🙏🙏

    मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है वो भी धर्म के ठेकेदार या समाज के मोजिज महानुभावो नी किया

    मोहनलाल बाफना (via sms)

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  8. मर्यादा जी भाईसाब विषय एकदम सम सामयिक है परन्तु विकराल समस्या का समाधान बड़ा typical है। हम मध्यम वर्ग से निम्न वर्ग एवं उच्च वर्ग में ये समस्या कम पाई जाती है। वास्तव में कहने को तो हम यही कहते है कि बहु हमारी बेटी के रूप में ही है, लेकिन वास्तव में खूंन का रिश्ता खून का ही होता है, बेटी अपने स्वयं का खून होती है, वहीं बहु को अपने परिवार के संस्कार देने के नाम से और जो शोषण उसकी सासु मां ने अपनी बहू पर किये वो सासु मां अपनी बहु पर थोपने की कोशिश करती है। बेचारी बहु को अगर पति का सहयोग मिल जाये तो ठीक अन्यथा संघर्ष चरम पर पहुंच कर रिश्ता break होने के कगार पर पहुंच जाता है। हां यहां पर बहु की माँ एवं पीहर पक्ष का खून का रिश्ता वापस अपना रंग दिखाए बगैर नही रहता, वो बेटी की ससुराल में टांग अड़ाने का अवश्य प्रयास करते हैं। वर्तमान में एक एक, दो-दो बच्चे होते हैं, भरपूर लाड़ प्यार में लालन पालन होता है, ऐसे में वो अपनी बेटी का पक्ष लिए बिना रह ही नही सकते।
    रही समस्या के समाधान की बात तो अभी शादी और कैरियर साथ साथ चल रहे है। प्रत्येक पेरेंट्स चाहते हैं, उनके बच्चे स्वावलम्बी बने। अब जब शादी की रियल उम्र होती है तब तो वो बच्चा और बच्ची कैरियर बना रहे होते है और जब शादी की उम्र निकल जाती है कैरियर बन जाता है तब पेरेंट्स इधर उधर भागते है। अब तक कैरियर की वजह से बच्चे परिपक्व हो चुके होते हैं, उनका खुद का ego जाग्रत हो चुका होता है, बैंक बैलेंस भी उनके पास होता है। ऐसे में शादी करके सामजंस्य बैठाना आसान नही होता। मेरी यह व्यक्तिगत राय है हमारा जैन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है, मेरी तो यह सोच है अगर हमारे धर्म गुरु, हम अग्रिम पंक्ति के श्रद्धालुओं को केवल सही कर दे तो काफी कुछ बदलाव तुरन्त देखा जा सकेगा हम हमारा वर्तमान सही कर ले, हमारी कथनी और करनी में समानता आ जाए फिर देखिए कैसे एक समाज आदर्श समाज बन कर उभरता है।

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  9. Very good article on the society.

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  10. Very good article on the society.

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  11. Very good article on the society.

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