सिद्ध और बुद्ध
पिछले दिनों वैशाख शुक्ला दशमी के
दिन कई वर्ष पूर्व भगवान
महावीर को सिद्धत्व की प्राप्ति हुई व
वैशाख
शुक्ल पूर्णिमा को भगवान बुद्ध बुद्धत्व को प्राप्त हुए। वैसे तो दोनों शब्दों में कोई लंबा
फर्क नहीं है। सिद्ध और बुद्ध
दोनों
ही करीब-करीब समानार्थी शब्द है।
भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही करीब
करीब समकालीन है, समकालीन ही नहीं दोनों भारत भूमि
के उसी एक ही क्षेत्र से आते हैं जो वर्तमान में बिहार है
और
दोनों का अधिकतर विहार क्षेत्र भी वहीं रहा। चाहे राजगृह हो, चाहे
नालंदा, चाहे वैशाली हो, चाहे मगध, चाहे पाटलिपुत्र। उनके अधिकतर चातुर्मास व
विरहण इसी
क्षेत्र में हुए। दोनों राजकुमार थे। दोनों ने विवाह किया। भगवान महावीर के पुत्री हुई है, एसा श्वेतांबर संप्रदाय मानता है और भगवान
बुद्ध के 1 पुत्र
था। भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही यौवन काल में घर गृहस्थी छोड़ के, राजमहल त्याग के, सन्यास की ओर मुड़े। सन्यास जीवन में
ध्यान और तप कर आगे बढ़े। सिद्ध
और
बुद्ध बने दोनों ने श्रमण संस्कृति को आगे बढ़ाया।
कहा यह जाता है उस जमाने में करीब आठ-नौ
लोग अपने आपको तीर्थंकर कहा करते थे और सब के
सैकड़ों शिष्य बनाए थे। बुद्ध
व महावीर
के भी थे और आज अढ़ाई-तीन
हज़ार वर्ष बाद
केवल बुद्ध व और महावीर का नाम रह गया। लोग भूल गए पुण्य
कश्यप को, अजीत केश
काबली
को या
मैं बात करूं मंखली पुत्र गौशालक की
व प्रबुद्ध
कात्यायन की,
सबके अपने-अपने दर्शन थे और उन दर्शन के आधार पर ही इन सब का एक विभाजक रेखा बनी
हुई थी।
लेकिन महावीर और बुद्ध तब से आज तक अपनी परंपरा के अनुसार चले
आ रहे हैं और श्रमण संस्कृति के पुरोधा के रूप में दोनों की एक अपनी पहचान
भारतीय संस्कृति में सदा के लिए अंकित है। दोनों महापुरुष एक ही महीने में सिद्ध
- बुद्ध बने। एक ही समय में एक ही क्षेत्र में बिचरण
किया और
उन्हीं राजाओं को जो कि हिंसक थे,
उन्हें अहिंसा का पाठ पढ़ाया। चाहे बिंबिसार, श्रेणिक हो, उदयन हो, चंड-प्रद्योत, इन सब राजाओं को उन्होंने अपने ज्ञान के
द्वारा अनुयायी बनाया और अपनी शिक्षाएं उन्हें दी। हजारों
लाखों लोगों को जीवन में अहिंसा का पाठ पढ़ाया,
अपरिग्रह बताया और अपने संघ का अनुयायी बनाया।
मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा मेरे
पापा जी की एक कविता का जहां उन्होंने बताया है
गंगा तो है एक, उसके घाट हैं अनेक,
हर घाट में कूदकर, व्यक्ति पा सकता है, असीम प्रभाह
और डुबकी लगाकर, पूरी कर सकता, निर्मल बनने की चाह
इसी तरह सत्य और अस्तित्व की गंगा से,
जो होना चाहता एकाकार
संकल्प और श्रम के तीर्थ से छलांग भरकर
जो पावन हो, उतरना चाहता उस पार
उसके लिए, तुमने श्रमण संस्कृति के तीर्थ
का किया
नवनिर्माण
तपोनिष्ठ
ध्यान योगी
बनकर, कहलाए
तुम तीर्थंकर
महान।
महावीर ने जहां पांच महाव्रत बताएं
बुद्ध ने वही अष्टयाम धर्म बताया। महावीर के बात को गौतम और सुधर्मा ने आगे बढ़ाया, बुद्ध की बात को आनंद आदि शिष्य ने आगे बढ़ाया। वैसे कई विदेशी लेखक दोनों को एक मानते
हैं
क्योंकि उन्हें इनके इतिहास की, इनके परिवार की, इनके परिवेश की जानकारी नहीं है लेकिन दोनों
का एक अपना अपना अलग-अलग महत्व है और अलग-अलग दर्शन है। कई बातें जैन धर्म मानता
है वह बौद्ध धर्म नहीं मानता। बौद्ध धर्म में आत्मा का इतना महत्व नहीं है; जैन धर्म आत्मकृतत्ववाद के आधार पर ही आधारित रखता है।
यहाँ
ऐसा
भी कहा जाता है भगवान महावीर और बुद्ध आपस में कभी मिले या नहीं मिले, बहुत बड़ा प्रश्न है? दोनों समकालीन थे, क्षेत्र एक ही था और दोनों का मिलन
क्यों नहीं हुआ, जब मिलन हुआ तो उसके बारे में कहीं
कोई बात ना आगमों में आती है न
ही त्रिपिटक
में आती है।
मेरे पिता श्री ने इस पर भी एक कविता
के माध्यम से अपनी बात कही है कि
यही
सही है कि कभी
मिले नहीं बुद्ध और महावीर
और यह भी सही है कि उनके अंदर जागृत
चेतन एक सा था
यद्यपि उनके अलग से शरीर
वे
भी मिल
लेते तो अलग दिखता न आकार
और अलग रहे तो भी उनका रहा
एक
ही प्रकार
मिलने पर केवल हृदय बोलता मौन हो जाता
वचन
अंतर में दोनों के प्रभावित हो रहा था
एक सा ज्योतिर्मय जीवन
ज्ञानियों के बीच बात हो सकती है पर
होती न कभी
और अज्ञानी बात कर नहीं सकते पर बहुत
बोलते
सभी
दोनों का असीम केवल-ज्ञान शब्दों में
होता नहीं आबद्ध
और उनकी अपूर्व
मुक्त
चेतना तन में रही नहीं प्रतिबद्ध
यह तथ्य है कि कभी मिले नहीं उनके तन
और यह सत्य है कि मिलता रहा
सदा सर्वदा उनका जागृत चेतन।
ऐसे दोनों प्रणम्य पुरुषों को मैं प्रणाम करता हूं और भारतीय संस्कृति के इन दोनों पुरोधाओं
को
जिन्होंने हमें जीवन जीने की कला में नवीनता बताइए और हमें साधना के आधार पर जीवन
को जीना सिखाया है। हमें इनके बारे में पढ़कर अपने जीवन मैं सार्थकता लानी है।
इन्हें भी समझना है, जानना है, पढ़ना है और आने वाली पीढ़ी को इनके बारे में
बताना है। बता तभी पाएंगे जब हम स्वयं जानेंगे अन्यथा कोरे रह
जाएंगे। मानव जीवन मिला है कोरा ना रहे और कुछ ना कुछ आध्यात्मिकता
जीवन में जरूर रहे।
यही बुद्ध व महावीर ने सिखाया यही समझाया है।
रचनाकार:
मर्यादा
कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के
पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
V good
ReplyDeletethank you Rajendra ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
DeleteNice information!!!
ReplyDeleteBahut sunder pryas🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी दी गई है, बड़े भाई साहब आपका आभार।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी हेतु हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रयास। हार्दिक आभार।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी मिली आगे का जारी रखे
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी पढ़ने को मिली
ReplyDeleteआगे भी इससे सुंदर जैन धर्म की ओर जानकारी मिलेगी ओम अर्हम
अनेकान्तवाद के दृष्टिकोण से भावित एक सुन्दर आलेख चिंतन को नवीन दिशा प्रदान करता है। ॐ।
ReplyDeleteअति सुंदर ज्ञानवर्धक विश्लेषण
ReplyDeletethank you Harsh for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
Deleteबहुत सुंदर लेखन किया है । समकालीन होते हुए भी वो मिले नही तो वो आजकल जैसे राजकीय नेता नही थे । वो आध्यात्मिक सिद्ध बुद्ध पुरूष थे ।
ReplyDeleteIt is Anekantwaad, so you may also be correct. Thank you Dr. Vijay for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
DeleteWell written 🙏.
ReplyDeleteOne of the basic premise of Buddhism is Kshanik Vada i.e. Doctrine of Momentariness which Janism refutes.
भगवान महावीर और बुद्ध समकालीन और कुछ हद्द तक एक ही विचारधारा का अनुमोदन करते है।
ReplyDeleteभगवान महावीर त्याग और तपस्या के पक्ष में रहे जबकि गौतम बुद्ध मध्यमार्ग के पक्ष में थे।
कनक कोठारी
thank you kanak bhai for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
Deleteआपकी लेखनी एवम् सोच को नमन ।
ReplyDeleteSundar tarike se likha gya👌
ReplyDeletethank you for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
Deleteआज आपका आलेरव पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपने श्रमण संस्कृति के दोनों महापरूषो को अपनी लेखनी द्वारा तुलनात्मक वर्णन किया।
ReplyDeleteआपने बताया ये दोनों जननायक अवतारवाद की परिकल्पना को नकारते थे।अनिश्वरवाद के सम्बन्ध में महावीर एवं बुद्ध में समानता थी।
भगवान महावीर त्रिरत्न की व्यख्या दी जो निम्न है सम्यक,दर्शन, सम्यक् ज्ञान,एवं सम्यक चरित्र उनके अनुशीलन में पंचमहावतों का पालन अनिवार्य है जो निम्न है सत्य,अहिंसा,अस्तेय,ब्रह्मचर्व,एवं अपरिग्रह ।बुद्ध ने भी आष्टांगिक मार्ग पालन करने की बात करते है,निर्वाण प्राप्ति के लिये दश शीलो की बात करते है जिसमे अहिंसा,सत्य,अस्तेय,अपरिग्रह स्त्रियों से दूर रहना आदि दोनों के दर्शन में समानता है
आप ने लिखा बुद्ध आत्मा के बारे में मौन है।परन्तु उन्होने कहाँ एक दिया दूसरे दिये को जलाकर बुझ जाता है।
उनके परम शिष्य ने एक बार उनसे आत्मा के बारे मे प्रश्न किया था जब उन्होने कहाँ था किसी व्यक्ति के तीर लगता है उस समय उस व्यक्ति के शरीर से तीर निकाला जाएगा उसके इल्लाज की व्यवस्था करे न कि तीर किस दिशा से आया,किसने चलाया क्यों चलाया ये नहीं देखे उनके कहने का मंथव्य था की हम इस भव को पहले सुधारे।
बुद्ध ग्रंथों में गौतम बुद्ध की सैकड़ों कहानीयां पूर्व जन्म की भरी पड़ी है।अगर आत्मा का आस्तित्व नहीं होता तो ये कहानीयां कहां से आती उन्होनें अप्रत्यक्ष रुप से आत्मा की विचारधारा को स्वीकार किया है।
आचार्य रजनीश ने लिखा दोनों का विहार क्षैत्र बिहार था जहाँ महावीर का विचरण होता या चातुर्मास होता उनका भी उसी क्षैत्र में कुछ अन्तराल के बाद होता फिर भी कभी व्यक्तिगत मिले नहीं।अगर मिलते दोनों दर्शनों की व्यख्या होती।
हार्दिक आभार
अशोक प्रदीप
प्रदीप ज्योतिष बालोतरा।
बहुत सुंदर विश्लेषण मर्यादाजी,जय जिनेंद्र।
ReplyDeleteवरिष्ठ श्रावक व पिताश्री के क़दमों पर, साहित्य क्षेत्र में बहुत सुंदर प्रस्तुति जय जिनेन्द्र मर्यादा जी
ReplyDeleteडुंगर सालेचा जसोल
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DeleteNice information given by u
ReplyDeletethank you kamakshi ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.
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