धर्म – राजनीति – सिनेमा

 

कुछ समय पहले मैंने लिखा था भारत विविधताओं में एकता की मिसाल वाला देश है। यह एकता हमें हर दृष्टिकोण से देखने में मिलती है क्योंकि मैंने भी भारत की इस पवित्र और पावन भूमि का भ्रमण कश्मीर से लगाकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लगाकर कामख्या तक किया है। इस भूमि पर देखने में इतनी विविधताए हैं, इतना ही एक अलग ही नजारा है। वैसा मेरी जानकारी में विश्व के किसी और देश में हो नहीं है। यहां भाषा, भूषा और भोजन हर 20 कोस बाद जरूर परिवर्तन करता है। परिवर्तन के साथ साथ इसमें सब की एक अपनी अलग अलग पहचान भी है। वह पहचान ही हमारी अनेकता में एकता को दर्शाती है। हम सब की पारिवारिक सोच की स्थिति करीब करीब मैंने जहां तक देखा है पूरे भारत भर में एक जैसी देखी है।

मुझे याद है मैं एक बार कोंकण रेलवे में त्रिवेंद्रम से मैंने जोधपुर तक की यात्रा के दौरान जब केरल में एक स्टेशन पर पूरा परिवार किसी अपने को पहुंचाने आता है और केवल पहुंचाने ही नहीं आता है वरन सबकी आंखों में आंसू भी आते हैं। उसी तरीके से प्यार और दुलार से जैसे कोई पूरा गांव किसी की रवानगी के लिए आया है या कहीं पर देखा कि किसी का स्वागत करने के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा। ऐसे दृश्य पूरे भारतवर्ष हर जगह पर देखने को मिल सकते हैं और यही हमारी एकता की पहचान है। हमारी जो भावनाएं हैं, समाज व्यवस्थाएं हैं,  वह एक हैं। हम एक परिवार हैं,  इसीलिए हम वसुधैव कुटुंबम का नारा भी देते हैं। ऐसा हमारे देश में ही हो सकता है। क्योंकि बाकी जगह तो टाइम अपने मां-बाप के लिए भी नहीं है। यहां हम एक पड़ोसी ही नहीं गाँव या क्षेत्र के व्यक्ति को अगर कहीं देखते हैं या पाते हैं तो उसके प्रति आपस में इतना प्रेम उमड़ता है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। मुझे याद है मेरे पिताजी की पोस्टिंग कोटा में हुई थी और कोटा में दशहरा का मेला बहुत बड़ा लगता था। वहां बालोतरा के जूतियां बनाने वाले दुकान लगाया करते थे और मेरे फूफा जी घेवरचंद जी सालेचा उसके साथ कुछ ना कुछ सामग्री बालोतरा भेजते थे। जब वे आते थे तब मेरी मम्मी उन्हें बिना खाना खिलाए नहीं भेजती थी। उनका यह कहना था कि हमारे गांव का साधारण व्यक्ति भी आया है आखिर हमारे गांव का हैं। यह जो अपनी मिट्टी के प्रति प्यार है, अनुराग है, यह इस देश की पहचान है। इस देश का धर्म है और इस देश का अजीब नजारा है।

 

भारत में जो एक बात मिलती है वह भी मैंने पिछले दिनों देखा कि हमें आपस में चटपटी खबरें पर चर्चा करने में विशेष रुचि है। उसमें भी मुख्यतः फिल्मी दुनिया, खेल विशेष तौर से क्रिकेट, राजनीति विश्लेष्ण ओर धर्म। ये हमारे जीवन के अभिन्न अंग है। करोना माहामारी के काल में भी अब देखिए अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की अखबारों में पूरे के पूरे पृष्ठ उसकी खबरें से रंगे हुए हैं। लोगों को उसके प्रति इतना प्रेम उमड़ आया और खुद ही लोग नई नई चीजें, रोज कुछ ना कुछ नई बात इस वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक युग के नए नए संचार माध्यमों में परोसे जा रहे हैं। जाने वाला चला गया, क्या सुख-दुख लेकर गया पता नहीं? लेकिन उसके ऊपर चटकारे से रोज नई बेसिर पैर की बातें हैं जो हम मीडिया के माध्यम से पढ़ते हैं। उनसे सुनते हैं और मीडिया नए-नए किस्से कहानियां उस पर गढ़ता भी है। यहीं तक बात खत्म नहीं होती है और एक नई बहस और शुरू कर देते हैं जिसमें कहा जा रहा है कि फिल्मी दुनिया में बहुत ही बड़ी भेदभाव वाली दुनिया है। वहां बहुत ग्रुपिज्म है, आपस में एक दूसरे के प्रति कोई सद्भावना नहीं है। सब केवल मात्र अपने अपने ग्रुप के व्यक्ति को ही आगे बढ़ाने में बढ़ावा देते हैं और उसमें भी सितारा पुत्रों का ज्यादा महत्व है। वह किसी दूसरे व्यक्ति को आगे आने ही नहीं देना चाहते और इस सारे में जो एक दूसरे पर छींटाकशी हो रही है और सब लोग उसे बड़े मजे लेकर सुन रहे हैं, देख रहे हैं। यह बड़ा ही दिलचस्पी वाला मामला बनता जा रहा है। 

 

दूसरी बात खेल पर कहूं तो कार्पेट में आईपीएल होगा कि नहीं होगा? किस रूप में होगा? कहाँ होगा? कौन कौन खेलेगा? टीमें कैसे जाएंगी? कितने खिलाड़ी खेल पाएंगे, जा पाएंगे? इस पर भी लंबी चर्चाएं से अखबार को भरे हुए हैं। भारत में मनोरंजन के साधन में फिल्म और क्रिकेट एक बहुत बड़ा साधन है। फिल्मी सितारों को, क्रिकेट के खिलाड़ियों को यहाँ भगवान तक का दर्जा दे दिया है। चाहे मैं एमजी रामचंद्रन की बात या नंदमूरि तारक रामाराव की या रजनीकांत की करूं या अमिताभ बच्चन की ,चाहे शाहरुख खान हो या सलमान खान या फिर सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली या कपिल देव, महेंद्र सिंह धोनी या विराट कोहली किसी का नाम लूं सारे हमारे लिए एक तरीके से विशिष्टता का अलग तरह का दर्जा लिए हुए हैं। उन लोगों के बारे, उनके हर व्यवहार पर, हर बात पर चर्चा होती है। चर्चा ही नहीं होती उनके घर परिवार की बातें सब लोग ऐसे करते हैं जैसे उन्हें कई जन्मों से जानते हो। अभी पिछले दिनों भारत के सुपर सितारे अमिताभ बच्चन को कोरोनावायरस हो गया और लोगों को रोज अखबारों में, संचार माध्यम से क्या खाते हैं? क्या पीते हैं? कब सोते हैं?  कब जागते हैं ?क्या करते हैं ? इस बारे में जानकारी चटकारे लेकर लिखने, पढ़ने की आदत सी हो गई देश में है। दक्षिण में मैं देखता हूं रजनीकांत या कमल हासन का या भोजपुरी मनोज तिवारी का या बंगाली एक्टर बाबुल सुप्रियो या हरियाणवी हीरो या हीरोइन या गायिका हो सबका अजीब आकर्षण है, आकर्षण भी जुनून की हद तक है। जहां कहा यह जाता है कि कुछ लोग तो सुपर सितारे को बीमार सुनकर आत्महत्या तक करने को तैयार होते हैं। ऐसा बहुत कम दूसरे देशों में सुना या पढ़ा जाता है, लेकिन भारत में उत्तर से दक्षिण तक पूर्व से पश्चिम तक यह घटनाएं होती रहती हैं। 

 

हमारा जुनून फिल्म के प्रति खेल के खिलाड़ियों के प्रति इतना है हम उन्हें अपने आप ऊंचा दर्जा देते हैं। फिर मैं बात करूं तीसरे पायदान पर आते हैं राजनीति पर भी चर्चा करना हमारे यहां बहुत ही एक अहम विषय है। हर व्यक्ति अपने आपको चाणक्य व भृतहरि से कम नहीं समझता है। सलाह तो ऐसी देता है जैसे देश को वो ही चला रहा है। राष्ट्रपति से लगाकर प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री,  मंत्री सभी को सड़क पर, चौराहों पर परामर्श दिए जाते हैं और उन पर लंबी चर्चाएं की जाती है। मीडिया भी उन्हीं बातों को थोड़ा सा ओर तड़क-भड़क के साथ पेश करती है। लोग उसे मजे से पढ़ते हैं, कई बार तो कई बेसिर पैर की बातों को भी पढ़ना पड़ता है, तर्क, वितर्क और कुतर्क तीनों को ही सुनना भी पड़ता है। चाहे कहीं का मामला हो - गांवों की चौपालों पर, कस्बों की चाय की थड़ी पर व बड़े शहरों के कॉफी हाउस में हर तरह के लोग अपना मंतव्य इस तरह प्रस्तुत करते हैं यह जैसे वही सब काम करने वाले हैं और उन्हीं के द्वारा सारी बातें संचालित की जा रही है।

हमारे चर्चा की सूची के विषय यही है सिनेमा - खेल - राजनीति हैं। इनमें जो ऊपर हैं, उन्हें हम सर्वोपरि मानते हैं, उनके प्रति आस्था दर्शाते हैं, उनके प्रति समर्पण भाव करते हैं, और कई कई जगह तो उनके मंदिर भी बनाए गए हैं ऐसा मैंने विश्व में कहीं नहीं सुना। नहीं सुना के अमेरिका में बराक ओबामा या वाशिंगटन का मंदिर है, नहीं सुना पुतिन या लेनिन का कोई मंदिर रूस में है,  जिनपिंग या माओ का चीन में, या ब्रिटेन में महारानी एलिजाबेथ या जर्मनी में एंजेला मर्केल का किसी का भी नहीं लेकिन भारत में आपको अवश्य प्रधानमंत्री जी का मंदिर मिल जाएगा। विदेश में जहां अब मूर्तियों का भी विरोध हो रहा है, वहीं भारत में बड़ी-बड़ी मूर्तियां लगाई जा रही है और जैसे कोई उसका भी एक विश्व कीर्तिमान बन रहा है। यहां पर लोगों का जो रुझान है वह विशेषता लिए हुए हैं। बिना किसी आगा-पीछा सोचे हुए केवलमात्र अपने उस नेता के प्रति या सुपर खिलाड़ी के प्रति या सुपर सितारे के प्रति अपना सर्वस्व सौप देना ऐसा भारत में ही है। जैसा कि मुंबई में सुनते हैं हर रविवार को अमिताभ बच्चन बाहर आते हैं और हजारों की संख्या में भीड़ इकट्ठी होती है केवल एक झलक पाने के लिए। अमिताभ बच्चन की उस एक झलक के लिए लोग दूर-दूर से यात्रा करके भी वहां आते हैं। मेरे एक मित्र हैं उनकी पत्नी से जब मेरी बात हुई तो उन्होंने कहा मेरे तो हीरो अमिताभ बच्चन ही है मैंने कहा भाभी जी आप के हीरो तो हमारे भाई साहब होने चाहिए लेकिन नहीं उन्होंने तो अमिताभ बच्चन को अपना हीरो बताया और उनके मन में एक बार उनसे मिलने की तड़फन है, जैसे कोई उनको मिलकर उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाएगा, ये चाहत या कुछ ओर समझ के परे है। वह उनकी इतनी ज्यादा प्रशंसक है जो बच्चन साहब के लिए कुछ कर सकती हैं। कई बार सुना है कि कई लोग अपने इन सुपरमैनों के लिए अपने रक्त से भी पत्र लिखकर भेजते हैं और अपनी मोहब्बत का इजहार करते हैं। ऐसी दीवानगी पुरुष वर्ग भी महिला अभिनेत्रियों के प्रति प्रकट करते हैं।

 

यह जो बात है यह हमारे देश में अब मैं चर्चा करूं धर्म पर जो हमारे यहां मुख्य वार्तालाप के विषयों में प्रमुख है। जिसके लिए लोग धर्म गुरुओं के पीछे अंधभक्तों का तरह भागते हैं और धर्मगुरु कई तो उनका पूरा शोषण करते हैं। लेकिन फिर भी उनकी भावनाएं धर्म गुरु के प्रति कम नहीं होती दिखती है। जोधपुर में एक धर्मगुरु पिछले काफी समय से कारावास में है लेकिन पूर्णिमा और विशेष तौर से गुरु पूर्णिमा पर भक्तों की केन्द्रीय कारावास के बाहर भीड़ लगती है और अंदर की तरफ पानी का बोतल दिखा कर उनको पानी अर्पण करते हैं और फिर मुंह में पीते हैं। यह सब क्या है?  प्रबुद्ध वर्ग इस बारे में सोचता है, लेकिन उनकी सोच से परे यह सब चीजें हैं। यह काम करने में कई पढ़े-लिखे लोग भी पीछे नहीं है। धर्म के नाम पर हमारे यहां कुछ भी करवा दीजिए लोग तैयार हैं।

राममंदिर का मसला कितने वर्षों से कहूं तो शताब्दियों से चल रहा है और कितने लोगों ने इस पर पापड़ बेले व सेके भी सही। राजनीति की और अपना उल्लू सीधा किया। अब लगता है शिलान्यास होने के बाद कुछ इस राजनीति में कमी आएगी और हमारी आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं होगा। लेकिन लोग फिर भी धर्म के नाम पर सैकड़ों मील पैदल चलने को तैयार हैं, भूखे मरने को तैयार हैं, अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार हैं। किसी से भी पूछो कि परमात्मा का सही रास्ता कौन सा है? आप किस ओर जा रहे हैं? आपको पता है क्या? लेकिन नहीं प्रश्न आपको नहीं करना है, भक्त तो प्रश्न कर ही नहीं सकता वह तो केवल मात्र इन तथाकथित धर्म गुरुओं के आगे पीछे घूमता है और भीड़ का एक हिस्सा बनता है। मैंने देखा है आम आदमी तो चाहे कितना ही बड़ा सुपर सितारा हो, चाहे कितना ही बड़ा खिलाड़ी हो, चाहे कितना ही बड़ा राजनेता हो और धर्म गुरु हो उनके आगे पीछे लंबी चौड़ी अपने  प्रशंसकों की कह दूं या अनुयायियों की कह दूं भीड़ जब तक नहीं लगती है, जब तक उन्हें भी चैन नहीं आता है। यह भी पता नहीं किस आकर्षण से उनके पीछे भीड़ दौड़ती है। हर खिलाड़ी राजनेता या धर्मगुरु या सुपर सितारा उस लायक है या नहीं है पता नहीं लेकिन भीड़ अवश्य होना चाहिए। मैं खुद ही पाठकों से पूछना चाहूंगा आप भी सोचें आप भी कहीं उस भीड़ का हिस्सा तो नहीं बन रहे हैं। कईयों को तो मैं यह पाता हूं इन तथाकथित लोगों में से वे खुद ही भटके हुए हैं, वे हमें क्या सही रास्ता दिखाएंगे। अगर भटका हुआ व्यक्ति नहीं होता तो सुशांत सिंह राजपुत क्यों आत्महत्या करता? कई धर्म गुरु क्यों आज जेल में पड़े रहते हैं? कई राजनेता क्यों आज कारावास की हवा खाते ? लेकिन नहीं हमें तो उनमें अपना विशेष नायक नजर आ रहा है ।

मैं भारत की विशेषताओं की बात कर रहा था और इन्हीं चार विशेषताओं के इर्द-गिर्द भारत के सारे लोग घूमते हैं। सारा कार्य होता है। मैं अभी पिछले 6 महीने से देख रहा हूं अखबारों के पन्ने पर करोना महामारी के बारे में समाचार आना चाहिए, लोग के जो हालत है, आर्थिक दशा है, उसको कैसे सुधार हो? बेरोजगारी बढ़ रही हैं, मंहगाई चरम पर है, इस बारे में हम सोचे। किस रूप में हमारा स्वयं का जीवन यापन सही हो? इस महामारी के काल में हम कैसे बच सकें? यह हम सोचे। हमारी जीवन शैली कैसी हो? हमारा खान-पान कैसा हो?  इस पर लोगों का चिंतन चले तो बहुत बड़ी बात होगी। लेकिन नहीं हमें तो खबरें फिल्म की चाहिए, खबरें राजनीति की चाहिए, खबरें खेलों की चाहिए, खबरें धर्म की चाहिए। यह जो बात है यह हम सब की मानसिकता की एकरूपता दिखाती है आप चाहे उत्तर से दक्षिण तक पूरब से पश्चिम तक या यों कह दूं वैष्णो देवी से कन्याकुमारी तक और तनोट माता से कामख्या देवी तक कहीं पर चले जाइए, अखबार उठाकर देख लीजिए, समाचार सुन लीजिए या लोगों की चौपाल या हथाईयों के वार्तालाप सुन लीजिए या फेसबुक, टि्वटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि पर चेटिंग झाँक लीजिए सब पर चर्चाएं जो है मुख्यतः फिल्म, खेल, राजनीति और धर्म इसी पर चर्चा है। जीवन शैली पर कोई चर्चा नहीं, जीवन यापन के साधनों पर कोई चर्चा नहीं। महामारी तो हमारे यहां लगता है आकर फंस गई, कोई ध्यान नहीं दे रहा है, किसी को नहीं पड़ी है? सबको अपनी-अपनी पड़ी है। जबकि इस महामारी से भारत सरकार के गृहमंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री व अन्य कई उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति ग्रसित हो चुके हैं, सुपर सितारे अमिताभ बच्चन भी ग्रसित हो गए लेकिन आम जनता की चिंता कौन करें क्योंकि वह स्वयं भी सजग नहीं है। स्वयं जनता भी जागरूक नहीं है। उसे तो उन्हीं बड़े लोगों को निहारना है, जो अखबारों में चर्चित रहते हैं। समाचार पत्र भी उन्हीं खबरों को प्राथमिकता देते हैं जिसे लोग चटकारे के साथ पढ़ते हैं और नमक मिर्च लगाकर वह देते हैं, परोसते हैं। 

 

मैं इस अपनी बात के माध्यम से आपसे इतना ही कहना चाहूंगा अनेकता में एकता तो बहुत बढ़िया है, हमारी सबकी सोच विचार कितने मिलते हैं, यही भारत की पहचान है, विशेषता है। लेकिन अब पहचान को थोड़ा सा बदलें और इन सब सुपर सितारे राजनीति व्यक्ति, धार्मिक धर्मगुरु या कथावाचक, बड़े खिलाड़ी इन सब के प्रति अपनी भावना प्रकट करने के पहले अपने प्रति अपनी आत्मा के प्रति भावना अवश्य प्रकट करें। अपने बारे मे अवश्य सोचें, अपने परिवार के बारे में बात करें। ज्यादा अच्छा होगा, ज्यादा बढ़िया होगा क्योंकि आचार्य तुलसी ने कहा है ''निज पर शासन - फिर अनुशासन'' और ''सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से राष्ट्र स्वयं सुधरेगा'' लेकिन यहां तो व्यक्ति समाज राष्ट्रीय सभी एक ही ढर्रे पर चल रहे हैं और आनंद ले रहे हैं। महामारी भी हमारे लिए आनंद के लिए आई है। बस मैं अपनी बात समापन करूं, पापा जी श्री सोहन राज जी कोठारी की कविता से-

''यह तन हैं क्षणिक, नश्वर, नहीं रहता इसका अवशेष

आत्मा की अमरता का तुमने बतलाया दिव्य संदेश

जीर्ण-शीर्ण यह वस्त्र त्याग कर,

नित्य पहनता है नूतन तन

तन को त्याग आत्मा पाती है

एक बार फिर नूतन जीवन

जीवन एक अनंत प्रवाह है

रुककर आगे बढ़ता जाता

अनंत यात्रा के चरण रुके कब

मंजिल पर वह चढ़ता जाता

अपने बने जो इस जन्म में

अनंत प्रवाह में, वे होते लीन

पर जिस ने पा लिया इस प्रवाह से किनारा

वही हो गया अजर अमर शांत स्वाधीन।।''

 

रचनाकार:

मर्यादा कुमार कोठारी

(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं)

 

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