हर हर गंगे
भारत विविधताओं से भरा हुआ देश हैं।
यहां हर दिन त्यौहार है, हर दिन
कोई न कोई नयी बात है, हर दिन कोई न कोई नया राग है, नया
रंग है। अलग-अलग भाषा, अलग-अलग
भूषा, अलग-अलग
भोजन होते हुए भी हम सब एक हैं। एक
बनाने में
यहां के वातावरण, यहां
की भौगोलिक स्थिति,
यहाँ
की तहजीब, यहाँ
के रीति
रिवाज, यहाँ
की परंपराओं, सनातन
काल से चली आ रही धारणाओं का बहुत बड़ा योगदान है।
मैं आज बात करना चाहूंगा गंगा नदी
के बारे, अभी
कुछ दिन
पहले मैंने अखबार में पढ़ा गंगा दशहरा। मेरी जिज्ञासा हुई गंगा
दशहरा के
बारे में पता करने की। मैंने जानकारी लेने की कोशिश की तो पाया
कि जेयष्ठ शुक्ला दशमी
को गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था। उस दिन को गंगा दशहरा के रूप
में मनाया जाता है। गंगा का अवतरण कहा यह जाता है स्वर्ग
से हुआ था। बताया
यह
जाता है भगवान विष्णु के ब्रह्मा जी ने चरण पखारे थे और कुछ जल को अपने कमंडल
में भर लिया था। एक कथा यह भी है भगवान त्रय विष्णु, ब्रह्मा और शिवजी
नाच रहे थे, नाचते
समय में भगवान विष्णु को जो पसीना हुआ उस पसीने को
ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में रखा और उस कमंडल से गंगा का उद्गम हुया। ऐसी
कई पौराणिक कथाओं का
वर्णन
पुराणों में आता है।
गंगा को हिमालय की
पुत्री भी माना जाता है। धरती पर गंगा की
अवतरण की कथा रघुवंश से जुड़ी हुई हैं। राजा सगर के 60000 पुत्र
थे और उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया, उस यज्ञ
के अनुष्ठान में उन्होंने
घोड़े
को छोड़ दिया। वर्णन आता है कि इंद्र
ने चालाकी से उसको पाताल लोक में बांध दिया। सगर के पुत्रों ने घोड़े
को ढूंढा तो देखा कि घोड़ा पताल लोक में बंधा हुआ है। उसके पास कपिल ऋषि
तपस्या मे ध्यानावस्था मे थे, सगर पुत्रों को लगा घोड़े के चोर कपिल
ऋषि हैं। उन्होनें उनका ध्यान भंग कर अपमान किया। कपिल ऋषि ने अपने ध्यान
को भंग करने वालों पर क्रोधित होकर दृष्टि डाली तो उनके
आंखों की रोशनी
की चमक से सगर के 60000 पुत्र
तत्काल भस्म हो गए। उनकी मुक्ति नहीं हो पाई तब उनकी मुक्ति के लिए उनके वंशज अथार्त
सगर के वंशज भागीरथी ने ब्रह्मा से प्रार्थना कर तपस्या की।
उग्र तपस्या के बाद ब्रह्मा ने प्रकट होकर गंगा के पृथ्वी लोक पर अवतरण का
वरदान दिया। गंगा पृथ्वी लोक पर आने के लिए तैयार हुई - बहुत उग्र रूप में
थी, जब
कहते हैं भगवान शिव ने उसको अपनी जटाओं
में लिया। उसके बाद गंगा पृथ्वी पर आई। जिस दिन गंगा
पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन गंगा दशहरे के रूप में पृथ्वीलोक के लोगों
ने मनाया।
गंगा के बारे में
कहा
यह जाता है कि यह पवित्र सरिता
त्रिलोक में बहती है। गंगा का भारतीय संस्कृति में बड़ा
ही महत्व है। बड़े-बड़े त्योहार गंगा पर मनाए जाते हैं, और
वृहद
स्तर पर लोगों द्वारा पवित्र स्नान की
जाती है। स्नान में माना यह जाता है
कि हम मनुष्य जीवन में जो पाप कर्म करते हैं,
वे
सारे पाप गंगा में नहाने से धुल जाते हैं।
महाभारत के अनुसार गंगा भीष्म पितामह
की मां भी है।
गंगा
को कार्तिकेय की सौतेली मां भी कहा जाता है। हमारे सामने गंगा के कई आयाम
संस्कृति को लिए आते हैं। भारत में सबसे बड़ा धार्मिक पर्व कुम्भ का मेला
भी गंगा के किनारे मनाया जाता है। यह भी गंगा के किनारे हरिद्वार में, व
संगम स्थली इलाहाबाद में मनाया जाता है। गंगा पृथ्वी पर गंगोत्री
से अथार्त
हिमालय पर्वतमाला के अंदर से आती है, वहां से चलकर उत्तर
से पूर्व की ओर बहती हुई गंगासागर के वहाँ समुद्र में इसका विलय हो जाती
है।
गंगा को भारत में कई नामों से पुकारा
जाता है। कहा तो यहाँ तक जाता है की इसके
1008 नाम
है। लेकिन कुछ नाम में अवश्य पता लगा पाया हुँ, जो निम्न
है:-- अद्विजा, अध्वगा, अमर
सरिता, अमरापगा, अलकनंदा, किराती, गंग, गंगा, गंगा
मैया, तर्पणी
गायत्री, गिरजा, जटाशंकरी, जहान्वी, त्रिधारा, त्रिपथगा, देव
सरिता, नंदिनी, पापमोचनी, पाविनी, पुण्य
श्लोका, पुरंदरा, भगवत्पदी,भवायनी, भागीरथी, मंदाकिनी, विष्णुपदी, शैल
सुता, समुंद्र महिषी,सरितांवरा, सागरगा, सुधा, सुर
नदी, सुरसरि, हिमालयजा
आदि कई नामों से
इस पवित्र पावनी गंगा को भारतीय संस्कृति में आमजन पुकारते हैं। गंगा को
भारतीय जनमानस में या यहाँ की लोक संस्कृति मे कोई भी नदी
नहीं मानता। भारतीय
संस्कृति की धरोहर माना जाता है। गंगा को देवी के रूप
में मानकर उसका
पूजन होता है। गंगा आरती काशी की व हरिद्वार की
इतनी प्रसिद्ध है कि रोज
हजारों की संख्या मे वहां लोग इकट्ठे होकर सांध्य आरती करते हैं। दिया जला
कर के अपनी मनौती भी मांगते। गंगा के प्रति श्रद्धा आस्था है। हमारे चिरकालीन
संस्कारों का हिस्सा है। गंगा अपने आप में नदी न होकर देवी के रूप में
मानना और देवी हमारी हर तरीके से रक्षा करती है, सुरक्षा करती है। हमारे
जन्म से लेकर
मृत्यु तक के सभी
संस्कारों में
गंगाजल का अपना ही महत्व
है।
उसकी
पावनता व निर्मलता हमें
स्वयं को भी सदैव पावन
और निर्मल
बनाने की प्रेरणा
देती रहती है।
गंगा के बारे में कहावतें भी
कही बन गई क्योंकि जब आम
लोगों
की बोलचाल में व भाषा में गंगा आ गई तो गंगा के प्रति लोगों की भावनाएं कई
रूपों में प्रकट होने लगी। मैं कुछ कहावतें आपके सामने बताता हुँ।
1) गंग
जहां रंग - जहाँ गंगा वही आनंद
2) गंगा
कर गौर गरीबन की - गंगा से गरीब भी प्रार्थना करता है
3) गंगा किसकी खुदाई है
- गंगा को खोदने का काम कोई कर नहीं सकता।
4) गंगा
के मेले में चक्की - राहे को कौन पूछे? - गंगा
के मेले में चक्की टांकने वाले की आवश्यकता नहीं है।
5) गंगा
को आना था भागीरथ को जस - जब काम तो आप हो जाए और किसी
दूसरे को मुफ्त में यश मिले तब
6) गंगा गए मुडा़य सिद्ध -
सुयोग मिलते ही काम कर डालना चाहिए।
7) गंगा
गए मुडा़ए सिर - गंगा या अन्य तीर्थ स्थान मे जाने पर
सिर मुंडाना पड़ता हैं
8) गंगा नहाए क्या फल पाए, मूंछ मुंडाए घर को आए
- ढोंग करने वालो पर व्यंग्य
9) गंगा
नहाए मुक्त होय, तो
मेंढक मच्छियां। मूंड मुंडाए सिद्ध होय, तो भेड़ कपछियां।। - यदि गंगा
नहाने से ही मुक्ति मिलती है तो फिर मेंढक और मछलियों भी मुक्ति पा सकती
है। सिर मुंडाने से सिद्ध बन सकता हो, तो भेड़, मेमने
आदि भी सिद्धि लाभ कर सकते हैं, क्योंकि
उनकी भी मुड़ांई होती हैं।
10) गंगा
बही जाए, कलीबारीन
छाती पीटे - गंगा
का पानी व्यर्थ बहते हुए देखकर कलीबारिन हाय हाय करती है। ऐसे ही निष्प्रयोजन में
अफसोस जताती है।
ऐसे ही राजस्थानी में भी गंगा पर कुछ
कहावते है, उनका
भी मैं उल्लेख करना चाहूंगा :--
1) गंगा
गयां गंगादास, जमुना
गयां जमुनादास - अवसरवादी होना।
2) गंगा
जी के घाट पर, बामण
वचन परमाण
गंगा जी की रेणका, तुं चन्नण करके मान।।
गंगा जी के घाट पर, जाट
बचन परवांण।
गंगा जी की मींडकी, तू
गऊ करके जांण।।
गंगा जी
के घाट पर बामण के वचन सत्य हैं। गंगा जी की रेती को तू चंदन करके मान। जाट
ने ब्राह्मण को उत्तर दिया- गंगा जी के घाट पर जाट के वचन सत्य हैं। गंगा
जी की मेंढकी को तू गाय करके मान।।
3) गंगा
जी को न्हायबों, विपरन
को ब्यौहार, डूब जाए तो पार है, पार
जाय तो पार ।।
गंगा जी में स्नान करना ब्राह्मणों का
नित्य कर्म हैं, डूब
जाए तो भवसागर से पार समझिये है और पानी को पार कर जाए तो पार है ही।
4) गंगा
तूतिए में कद मावे - गंगा एक घड़े में नहीं समा सकती।
5) गंगा
रे नीर में सै रो सीर हुवै - गंगा के जल पर सबका समान अधिकार है।
ऐसे कई
मिथक, कई
कहावते, कई
लोकोक्तियां गंगा के नाम से इस देश में अलग-अलग भाषाओं
में प्रचलित है। गंगा भारतीय जन जीवन की एक अनमोल धरोहर है, जीवनरेखा
है। इस धरोहर को सहेजना हर नागरिक का दायित्व
बनता है। गंगा को
प्रदूषण रहित रखें, साफ व निर्मल
रखना हम सबका कर्त्तव्य है। वहां गंदगी को
ना फैलाएं। गंगा
के आसपास किनारे
पर बड़े शहर हैं, जो
गंगा से जीवन पाते हैं, वहाँ
पर गंगा में कूड़ा
करकट या गंदगी को ना डालें। तभी गंगा निर्बाध रूप से हमारी जीवनधारा बनी
रहेगी। हमारे जीवन को आगे बढ़ाने वाली बनेगी। गंगा का इतना सम्मान हमारे पुरखो
ने किया हम भी उसे
प्रसाद समझकर सम्मान
करें। आदर भाव प्रकट करें।
गंगा हमें स्वच्छता, निर्मलता व हमारे
जीवन में अमरता प्रदान करेगी। भारतीय संस्कृति की
अनमोल धरोहर कहें या विरासत - हमें संजो कर रखना है। आने
वाली पीढ़ी के लिए उसे उसी निर्मलता व पावनता के साथ प्रदान करना
है। भारतीय संस्कृति प्राकृतिक वातावरण को दैवीय संसाधन मानकर उनका न
केवल उपयोग करते हैं, वरन्
उनका पूजन-अर्चन कर उनका सम्मान भी करते हैं। तभी
प्रकृति हमें जीवनोपयोगी सामग्री प्रदान करती है। हम भी उसी पुरातन
संस्कृति को नमन करते हुए उसी का अनुसरण
करें यही सब से अपेक्षा।
पापाजी श्री सोहन
राज जी कोठारी की लिखित चंद
पंक्तियों
के साथ बात का समापन करुं:--
गंगोत्री के मुहाने से, निकल
गंगा उमड़ती, चल
पड़ती है,
तो अछूता, अनजान, धरा
को, हरा
भरा कर,
सागर से कर लेती साक्षात।।
गंगा का, गंदाजल, सदा
पवित्र कहलाएगा,
स्वच्छ, श्वेत, कफन, किसी
के, काम
नहीं आएगा,
जागृत चेतना में, गौण
है, बाहर
का व्यवहार,
अंतर रीता हैं, तो
कृत्रिम आचरण, लगते, निस्सार।।
रचनाकार:
मर्यादा
कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के संपादक व अखिल
भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं)
आदरणीय भाई साहब
ReplyDeleteआपकी लेखनी को नमन
मर्यादा जी भाईसाहब आपका लाख लाख धन्यवाद आपके ब्लोग से हमें न जाने कितनी अनमोल जानकारियां मिलती हैं जिससे आज तक हम अनभिज्ञ थे मैं आपके ब्लोग को नियमित पढ़ता हुं न सिर्फ पढ़ता हुं मगर मित्रों से भी शेयर करता हुं । बहुत बहुत धन्यवाद सा ।
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
Deleteमर्यादा जी आपकी लेखनी नमन
ReplyDeleteबहुत बहुत साधुवाद
डूंगर सालेचा
ब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद, डूंगर जी।
Deleteजैन व तेरापंथ की जानकारी के साथ वैश्णव जानकारी भी बहुत खूब मर्यादा जी
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteआप अनमोल हिरे है आपको नमन
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद नरेंद्र जी।
Deleteबहुत ही विस्तृत जानकारी, ढेरों धन्यवाद ज्ञानवर्धन के लिए।
ReplyDeleteबहुत ही विस्तृत जानकारी, ढेरों धन्यवाद ज्ञानवर्धन के लिए।
ReplyDeleteबहुत ही विस्तृत जानकारी, ढेरों धन्यवाद ज्ञानवर्धन के लिए।
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद सुबोध जी।
Deleteबहुत सुंदर जानकारी आपने बताई है👌 गंगा के वेग को शिव जी ने अपनी जटाओं में धारण किया सिर्फ इतना ही पता था आपने उसे विस्तृत रूप से बताया बहुत-बहुत साधुवाद👏👍
ReplyDeleteसुमन जी शाह, मुंबई
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💐💐🙏🏻🙏🏻अति सुंदर |
ReplyDeleteब्लॉग में जिस तरह से आप किसी भी विषय पर पूर्ण जानकारी देते है उसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता | इतनी गहनता से जानकारी देने के लिये हृदय से आभार |
ब्रजेश जैन, मैसूर।
(whatsapp के माध्यम से)
भारतीय संस्कृति में प्रकृति से प्रेम और पूजा की विशिष्टता को आपने गंगा नदी से जुड़ी विभिन्न नई जानकारियों एवम् पौराणिक कथाओं के संदर्भ द्वारा वर्णित किया है।।
ReplyDeleteकाफी परिश्रम से तैयार किया गया लेखन हे।
अच्छा लगा
सादर धन्यवाद 🙏🏻
नरेंद्र मांडोतर, अहमदाबाद।
(whatsapp के माध्यम से)
आदरणीय मर्यादा जी सा
ReplyDeleteगंगा नाम में ही पवित्रता हृदय में प्रवाहित होती हैं।
इतने अच्छे विषय पर आप द्वारा आलेखित हर शब्द पढ़ते पढ़ते गंगा के क़रीब होने का अहसास हो रहा है।
साथ में आदरणीय सोहनराज जी की काव्य पंक्तियाँ
ॐ अर्हम
संदर्भ में एक कविता को संलग्न कर रही हुँ।
अब आधा जल निश्चल, पीला,--
आधा जल चंचल औ’, नीला--
गीले तन पर मृदु संध्यातप
सिमटा रेशम पट सा ढीला।
... ... ... ...
ऐसे सोने के साँझ प्रात,
ऐसे चाँदी के दिवस रात,
ले जाती बहा कहाँ गंगा
जीवन के युग क्षण,-- किसे ज्ञात!
विश्रुत हिम पर्वत से निर्गत,
किरणोज्वल चल कल ऊर्मि निरत,
यमुना, गोमती आदी से मिल
होती यह सागर में परिणत।
यह भौगोलिक गंगा परिचित,
जिसके तट पर बहु नगर प्रथित,
इस जड़ गंगा से मिली हुई
जन गंगा एक और जीवित!
वह विष्णुपदी, शिव मौलि स्रुता,
वह भीष्म प्रसू औ’ जह्नु सुता,
वह देव निम्नगा, स्वर्गंगा,
वह सगर पुत्र तारिणी श्रुता।
वह गंगा, यह केवल छाया,
वह लोक चेतना, यह माया,
वह आत्म वाहिनी ज्योति सरी,
यह भू पतिता, कंचुक काया।
वह गंगा जन मन से नि:सृत,
जिसमें बहु बुदबुद युग नर्तित,
वह आज तरंगित, संसृति के
मृत सैकत को करने प्लावित।
दिशि दिशि का जन मत वाहित कर,
वह बनी अकूल अतल सागर,
भर देगी दिशि पल पुलिनों में
वह नव नव जीवन की मृद् उर्वर!
... ... ... ... ...
अब नभ पर रेखा शशि शोभित,
गंगा का जल श्यामल, कम्पित,
लहरों पर चाँदी की किरणें
करतीं प्रकाशमय कुछ अंकित!
🙏
बिंदु जी रायसोनी। बैगंलुरू
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पौराणिक मिथक में कुछ अद्भुत लगे तो भी वह जानकारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रबोधन देती है।
ReplyDeleteगौतमजी सेठिया चेन्नई।
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बहुत खूब सार्थक प्रयास, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteरामस्वरुप रावतसरे
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सम्मानीय कोठारी साहब
ReplyDeleteसादर जय जिनेंद्र
पवित्र गंगा नदी के बारे में आपने हमे सटीक जानकारी उपलब्ध कराई है उसके लिए साधुवाद हर एक को इतना जानकारी होना मुश्किल है🙏
सोहन जी सालेचा
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अतिसुन्दर, कलम के धनी हो ,एक अच्छे लेखक
ReplyDeleteअनिल चंडालिया, सुरत।
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This is very new.
ReplyDeleteनेहा मेहता।
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बहुत अच्छा लगा इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई बहुत-बहुत साधुवाद🙏🏻
ReplyDeleteप्रकाश लोढा।
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इतिहास की धरोवर के बारे मे लिखने पर बधाई, जानकारी हुई -धन्यवाद
ReplyDeleteदीपचन्द नाहर, बेगलुरु
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Rochak jankari 👍
ReplyDeleteDilip ji Singhvi, जोधपुर
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वाह वाह क्या बात है 👌
ReplyDeleteरमेश बंसल, भीवानी।
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Awesome
ReplyDeleteभारत विविधता से भरा देश है । इस देश की संस्कृति व परम्पराओं का आपने बहुत अच्छा चित्रण किया है व पुरातन
ReplyDeleteइतिहास के प्रसंगों का अच्छा संग्रह प्रस्तुत किया है। पढ़कर मन प्रसन्न हो रहा है। शानदार लेखन। ओम् अर्हम। 🙏🙏🙏
रायपुर से जीतमल जी जैन
(whatsapp के माध्यम से)