हे! प्रभो यह तेरापंथ (2)
हे प्रभु यह तेरा पंथ, मेरा
पहला आलेख था। मैंने आचार्य भिक्षु को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उस लेख में अपने आप को जैन
होने का गर्व और तेरापंथी होने का गौरव किया था, तब जबकि मैं उसके सिद्धांतों को व दर्शन को जानता हूं। आचार्य
भिक्षु ने स्थानकवासी संप्रदाय में दीक्षा लेकर कभी यह नहीं सोचा था कि मुझे इस संघ या टोले
से अलग होना पड़ेगा या मुझे यह संघ छोड़ना पड़ेगा या मैं कोई नया संघ
बनाऊंगा पर वक्त के थपेड़े ने और संघ की शिथिलता ने उन्हें नई क्रांति करने का
अवसर प्रदान किया। इस संघ में भी दीक्षा लेने से पहले उन्होंने कई संघो या टोलो को परखा था,
जाना था। मेरा मानना है यह उनका प्रारब्ध ही था। क्यों तो उन्हें राज नगर भेजा गया?
वहाँ श्रावको
से चर्चा के बाद आगमों का गहन अध्ययन कर राजनगर में उन्हें जो बोधि प्राप्त
हुई - उस बोधि के आधार पर उन्होंने गुरु से आगम पर, भगवान की वाणी पर, साधना करने का बोला लेकिन गुरु ने काल
का प्रभाव बताकर उनकी बात को दबाने की कोशिश की। आचार्य तुलसी ने तेरापंथ
प्रबोध में लिखा है:
धर्म धार्मिकां री दुरवस्था देख कळजो
कांप उठ्यो ,
हो सन्तां! सतपथ- स्वीकृति रो घोषित कियो करार हो
उन्होंने एक चातुर्मास जोधपुर में गुरु के गुरुभाई
आचार्य श्री जयमल जी के साथ किया। उनके साथ भी लंबी चर्चा की और
उस जमाने की साधु समाज मे व्यापत शिथिलता के बारे में,
चर्या के बारे में, आचार के बारे में विस्तृत विचार विमर्श किया। जिसमें उन्हें लगा
यह गुरुजी मेरी
बात से सहमत हैं, पर
जब बगड़ी में रामनवमी के दिन आचार्य भिक्षु ने उस संघ से अभीनिष्क्रमण किया और उसके बाद के घटनाक्रम में जब चारों ओर से विरोध का स्वर इतना फैल गया उन गुरुजी ने भी
साथ देने से मना कर दिया। आचार्य तुलसी ने तेरापंथ प्रबोध में लिखा है:
एक और आगम है, एक और गुरू रो अपनत्व है,
पर सिद्धांता सच्चाई रो सब स्यूं बड़ो
महत्व है।
तब भीखण जी को लगा कि मुझे यह क्रांति
स्वयं ही करनी पड़ेगी और स्वयं ही चलानी पड़ेगी। उनके साथ शुरुआत में तेरह सेनानी संत
साथ में आए। सब से बात करके उन्होंने चर्चा करके चातुर्मास
के बाद पुनः मिलने की बात कही और कहा कि फिर अपन सिद्धांत और उस पर चर्चा
करेंगे। लेकिन क्रांति की
मशाल, हर व्यक्ति के लिए उठाना मुश्किल का काम
है और साथ देने वालों के लिए भी विरोध झेल पाना मुश्किल का काम हो
गया। तेरह में से से छः पहले निकल गए सातवें भी बाद में अलग हो गए। तेरापंथ प्रबोध में आचार्य तुलसी ने लिखा है
तेरा मां स्यूं सात गया छव रह्या परम परमार्थपखी,
थिर थिरपाल फते. भी. भारी. हर. टोकर अभीधान अखी,
हो सन्तां! आगै स्यूं आगै अब बढ़सी
विस्तार हो।।
बस छ: जन रह गए - एक बार तो ऐसा लगा आचार्य
भिक्षु को भी निराशा आ गई जब उन्होंने कहा है “मर पुरा देसां
पर आत्मा रा कारज सारसा”। सूर्य के प्रकाश में अतापना लेकर साधना करने लगे। समय में फिर परिवर्तन का दौर आया। उनके दो साथी आगे आए उन्होंने कहा यह कार्य
आप हम पर छोड़िए तपस्या व साधना हम करेंगे। आप जनोद्धार की ओर आगे बढ़िए और
जनता को अपनी वाणी से आगमों के आधार पर बताइए सही धर्म क्या है? आचार्य भिक्षु फिर जनता में आए, प्रति बोध देना शुरू किया। तेरापंथ
प्रबोध में आचार्य
तुलसी ने लिखा है:
सार्वभौम सिद्धांत घोषणा करी अभय हो स्वामी जी,
जिनवाणी पर पूर्ण समर्पित आस्थामय हो स्वामी जी,
हो सन्तां! देता ही रह्मा धर्म नै नयो निखार हो।
भगवान महावीर की वाणी के आधार पर सिद्धांत
बताने शुरू किये। उन्होंने कहा धर्म आज्ञा में है अनाज्ञा में नहीं अर्थात
धर्म जो है जैसा भगवान ने कहा है जैसा भगवान की वाणी आगम में आई है
वही धर्म है। हमें उस पर अडिग रहना है। आज्ञा को मानकर ही हमने घर बार छोड़ा है,
संयमित जीवन जीने के लिए संकल्पबद्ध हुए
हैं। हम उस आज्ञा को नहीं मानते हैं तो क्या हमारा संयमी जीवन रह पाता है, यह बहुत बड़ा प्रश्न हमारे साधु जीवन पर
खड़ा हो रहा है, इसलिए धर्म जो है वह भगवान
की आज्ञा में है, आगम
सम्मत जो बात है वह धर्म है। तेरापंथ प्रबोध से ही:
अर्हत आज्ञा धर्म, अनाज्ञा अधर्म खरी कसौटी है।
यह आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर के प्रति इतनी बड़ी
श्रद्धा आस्था और निष्ठा जताकर अपने संयमी जीवन को आगे
बढ़ाने का कार्य किया।
आचार्य तुलसी ने
तेरापंथ प्रबोध में लिखा है:
श्वेतांबर आगम आस्था पर म्हें चारित्र
निभावां हां,
आगम परंपरा स्यूं प्राप्त सत्य पर दिल दृढ़ताई हो,
अपणै सिद्धान्तां में नहीं
शिथिलता राई पाई हो,
हो सन्तां! मन की मजबूती कर दै खेवो पार हो।।
आचार्य भिक्षु ने आगे कहा धर्म व्रत में है
अव्रत में नहीं अर्थात धर्म जो है वह व्रत करने में है जिस किसी ने भी कोई
व्रत लिया है तो वह धर्म का कार्य है, अव्रती मे कोई धर्म
नहीं है। हमें इन बातों से धर्म की परिभाषा भी सीखने को मिलती है । उन्होंने आगे कहा धर्म
त्याग में है वह भोग में नहीं अर्थात जो त्यागी है जो त्याग करता है
वह धर्म है। जो भोग करता है - जो भोग में तल्लीन है उसमें कहीं धर्म नहीं है।
धर्म के तीन बातें
उन्होंने सटीक रूप से हमें बताई इस पर उनका पूरा दर्शन
खड़ा हो गया
अगर हम यह तीन बातें भी थोड़े थोड़े रूप में देख ले जान ले तो हमें आचार्य भिक्षु के दर्शन को समझने
का - जानने का
अवसर मिलेगा क्योंकि हमें पहले तो धर्म को जानना है। धर्म क्या है? धर्म भगवान की आज्ञा में है, धर्म व्रत में है और धर्म की आज्ञा
में है। अगर हम
धर्म को जान लेंगे, तो
आचार्य भिक्षु को जान लेंगे। आचार्य भिक्षु को जान लेंगे तो तेरापंथ
को जान लेंगे। तेरापंथ किसका पथ? उस प्रभु का पथ है, जिस प्रभु के बताए पथ के हम पथिक हैं। जैसा
कि भीखण जी ने कहा है प्रभु यह तेरा पथ। जयाचार्य श्री ने भी पद्य में लिखा है
कि
विघ्न हरण मंगल करण श्याम भिक्षु नों
नाम
गुण ओलख समरण करें, सरे अचिंत्या काम
हम आचार्य भिक्षु के गुणों को जानकर अगर
उन्हें याद करेंगे
तब हमारे सारे काम पूरे होंगे अन्यथा केवल नाम लेने से हमारे कार्य हो जाए ऐसा लगता नहीं
है। कबीर जी ने भी कहा है
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।
हम गर्व करेंगे - जैनी होने का गौरव करेंगे - तेरापंथी
होने का। आचार्य भिक्षु के बताए प्रभो के पथ पर चलना होगा, आस्था का विचलन न करे। तेरापंथ के सिद्धांतों व दर्शन के बारे में आगे और
चर्चा करूंगा। आप लोग जो सुधि पाठकजन है वह भी विचार करें अगर हम तेरापंथी हैं तो क्या हम इन
सब बातों में खरे उतरते हैं या नहीं। हमारी तेरापंथी कहलाने की
सार्थकता तभी है जब उनके बताए हुए पथ पर चलेंगे।
अंत में पापा जी श्री सोहन राज जी
कोठारी की कविता से अपनी बात पूरी करूंगा :--
सारे महापुरुष ज्योति प्रकट कर दिखा गये
प्रकाश
ज्योति बुझ जाने पर रह जाते मात्र लीक व
सुवास
हम बुझी ज्योति को मानते भगवान
उसी की पूजा कर देते सम्मान
बुझी ज्योति में अंधेरा ही पाएंगे
जड़ता की चट्टान में ठोकर ही पाएंगे
ज्योति के अनुभव से जो ज्योति जगमगायेगा
नर से नारायण वह स्वयं बन जाएगा।।
रचनाकार:
मर्यादा
कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के संपादक व अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय
अध्यक्ष रह चुके हैं)
very good
ReplyDeleteआपने बहुत ही अच्छे से एवं सरल शब्दों में समझाया ।
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
Deleteॐ अर्हम
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
Deleteअति सुन्दर विश्लेषण और मार्गदर्शन.
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
Deleteॐ अर्हम
ReplyDeleteबहुत ही शानदार प्रयास
ॐ अर्हम
ReplyDeleteभाईजी बहुत खूब,हम सभी को अवश्य सोचना है
ReplyDeleteOm arham
ReplyDeleteडूंगर सालेचा जसोल
ब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
Deleteॐ अर्हम
ReplyDeleteॐ अर्हम
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
Deleteआपके इस ब्लॉग से आशा है- नई पीढ़ी काफी कुछ सिखेगी
ReplyDeleteभाई साहब मर्यादा जी आपके ब्लॉग में आपने एक महत्वपूर्ण बात लिखी है, धर्म को पहचाने, बहुत महत्वपूर्ण बात है कि हकीकत में धर्म है क्या? तेरापंथ दर्शन के सिद्धांतों की विस्तृत चर्चा न केवल श्रावक श्राविकाओं में अपितु साधु संतों के बीच भी सलक्ष्य होनी चाहिए, जिससे उन साधु समाज के द्वारा श्रावक श्राविका भी लाभान्वित हो सकेंगे।
ReplyDeleteOm Arham
ReplyDeleteॐ अर्हम
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
Deleteओम अर्हम
Deleteआचार्य भिक्षु स्थानकवासी संघ या टोले से अलग होना पड़ा था, परन्तु वे टालोकर नहीं थे। संघ की शिथिलता के कारण उन्हें धर्म क्रांति के लिए संघ छोड़ना पड़ा था,आगमों की च्चाई के लिये सतपथ स्वीकार किया था।आज के टालोकरों के पास कोई आगम की धर्म क्रान्ति नहीं है। ऐसी ऐतिहासिक धरोहरों का उल्लेख आपसे मीलता रहे, इसी आशा के साथ
ReplyDelete> मुकनचंद गांधीमेहता जोधपुर/जसोल
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मर्यादाओं में रहनेवाले मर्यादाजी आज तक कोई भी व्यक्ति आपके काम पर सवाल उठाया है ऐसा मुझे तो नही लगता है। आपके भाग्यरेषा में यश ही लिखा हुआ है। गुरूदेव का आशीर्वाद आप बना रहे और संघ के इतिहास के पन्नो की जानकारी भेजते रहे इन्ही आशाओं के साथ
ReplyDeleteआपका शुभचिंतक
शांतिलाल सेठिया सोलापुर
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आदरणीय श्री जड्ज साब सोहनराजसा कोठारी को , इससे बढ़कर, कोई भावॉजली नहीं हो सकती है 🙏🙏🙏
ReplyDeleteपन्नालाल जी टांटिया
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बहुत ही सुन्दर प्रयास आपका , आपके प्रयास के प्रति बहुत बहुत अनुमोदना।
ReplyDeleteनिश्चित रूप से सभी का ज्ञान वर्धन होगा।
ओम् अर्हम 🙏
L L Gandhi Bhilwara (via whatsapp)
कोठारी साहब 100 100 साधुवाद आपको यह आपका बहुत ही शानदार प्रयास है ऐसे प्रयास आप निरंतर चालू रखिए हम आपके साथ हैं आदरणीय जज साहब की कविता तो स्वर्ण अक्षरों में लिखने जैसी है हमें गर्व है आदरणीय जज साहब पर👍👏
ReplyDeleteमेरे को मोबाइल की ज्यादा जानकारी नहीं है इसलिए कॉमेंट यही लिख रहा हूं बहुत-बहुत धन्यवाद
सोहनराज सालेचा, जसोल
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प्रणाम
ReplyDeleteआप समाज के प्रबुद्ध व्यक्ति हैं
भिक्षु की गोरव गाथा विषय नईं पीढ़ी के लिए बहुत ज्ञानवर्दक रहेग। यह एक फिल्म की तरह चलती रहें तो जन जन के लिऐ उपयोगी रहेगी। धन्यवाद।
निर्मल राका कोयंबटूर बगडी नगर
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बहुत शानदार विवेचन। गुणओलख सुमिरण किया, सरे अचिन्तिया काम।हम
ReplyDeleteसजग रहें। बार बार भगवान के बताये धर्म का स्मरण करें। उस प्रकाश से हमारा पथ
प्रकाशित रहेगा। 🕉️ अर्हम
जीतमल जैन, रायपुर।
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Om arham
ReplyDeleteकहनी- करनी एकसार बना, तुलसी तेरा पथ पाए हम
ReplyDeleteसाधुवाद
पारसमलजी गोलेच्छा, मुंबई
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बहुत सुंदर लिखा है इस तरह नए नए विषय पर लिखते रहो इतिहास की बातें बताते रहो
ReplyDeleteशकुतंला जी शाह
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Om arham
ReplyDeleteभाईजी प्रणाम ,बहुत सुन्दर, आप इतिहास के ज्ञाता है बस आप ऐसे ही ज्ञान को बाटते रहे जो आपकी एक बहुत ही सुंदर ख़ूबी है
ReplyDeleteआदरणीय मर्यादा जी सा
ReplyDeleteसादर जय जिनेंद्र,
आपने आज अपने ब्लॉग में जो विषय चुना वह तेरापंथ की मजबुत नींव है जिस पर आज सशक्त मीनार खड़ी हैं।
कहते है--
"भाग्य उन्ही पर मेहरबान होता है जो बाँहें चढाकर अपने कंधो को कष्ट देने को तैयार रहते है"
अपने ध्येय के प्रति गहरी निष्ठा से ही तितिक्षा का उदय होता है
तेरापंथ की शांति पूर्ण नीति तितिक्षा की ही परिणति हैं।
संघर्ष आते है वे प्रगति के लिए ज़मीन को और अधिक ठोस बना देते हैं।
ध्येय पूर्ति की लगन-संकट झेल पाता है,स्थिरचित्त होता है,वही जितेंद्रिय संकल्प के पार पहुँचता है
जोश व जज़्बे के साथ हम आचार्य श्री भिक्षु में देख सकते है जिन्होंने संघर्षों के शिलालेख पर सत्कर्मों की स्याही से इतिहास लिख डाला,
सफलतावां र शिखरां चढ़्या
ऐसे महामना भिक्षु ने संघ हित-संघ गौरव के लिए क्या कुछ नही सहा।
शिथिलाचार को चूर किया था आगम सारे छान लिए,
सुख सुविधाएँ संघ की जिनवाणी पर वार दिए
आदरणीय सोहनराज जी कोठारी जी की आलेखित पंक्तियाँ बिलकुल सटीक बैठती है।🙏🙏🙏
सारे महापुरुष ज्योति प्रकट कर दिखा गये प्रकाश
ज्योति बुझ जाने पर रह जाते मात्र लीक व सुवास
हम बुझी ज्योति को मानते भगवान
उसी की पूजा कर देते सम्मान
बुझी ज्योति में अंधेरा ही पाएंगे
जड़ता की चट्टान में ठोकर ही पाएंगे
ज्योति के अनुभव से जो ज्योति जगमगायेगा
नर से नारायण वह स्वयं बन जाएगा।।
बिन्दु जी रायसोनी
बैगंलुरू
(Via whatsapp)
बहुत ही ज्ञानवर्धक प्रयास आपका। तेरापंथ के इतिहास के बारे में हर श्रावक को जानकारी होनी चाहिए। आपके श्रम को नमन
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने के लिए अमूल्य समय आपने दिया व उचित समीक्षा की, आपका धन्यवाद।
DeleteToday I could download your narration on Acharya Bhiksu and go through with great pleasure. It's a good spiritual narration of Acharya Bhiksu and l trust people using WhatsApp will go through it. But for many who do not use WhatsApp for them printed matter is needed. Many people should work on this line and it has to be a continued effort then only some progress will be possible in the direction for which you have tried in this artical.
ReplyDeleteB C. Lodhaji
(via whatsapp)