महाभारत : जीवन के अनेक रंग

मैं अबकी बार बात करना चाहूंगा, महाभारत की भी। महाभारत का भी एक अपना महत्व है। महाभारत भगवान श्री कृष्ण द्वारा जीवन के विभिन्न उद्देश्य बताती है। वहां जहां भीष्म पितामह अपनी प्रतिज्ञा पर अटल है, चाहे कोई अवसर आ जाए उन्होंने हस्तिनापुर के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करने में अधर्म का साथ देने में भी नहीं चूके। मैंने जहां तक पाया है शांतनु एक स्त्री के प्रेम में पूरे भारतवंशियों को एक नई दिशा की तरफ ले गए और जहां सत्यवती ने ऋषि व्यास से नियोग के द्वारा धृतराष्ट्र, पांडू विदुर को पाया। धृतराष्ट्र अंधे थे और सारी उम्र ऐसा ही लगा वह पुत्र प्रेम में अंधे ही रहे। उनकी धर्मपत्नी गांधारी ने भी उन्हें देखकर आंख पर पट्टी बांधी लेकिन अपने भाई शकुनि के सारे क्रियाकलापों के प्रति भी पट्टी बांधकर ही रही। यही इस महाभारत की सबसे बड़ी त्रासदी है कि भाई अपनी बहन के ससुराल में सारी उम्र रहता है और कूचक्र रच कर बहन के परिवार को तहस नहस कर देता है। यह दो किसी का नहीं है, बस प्रारब्ध का दोष है।
दूसरी तरफ पांडु के पुत्र आश्रम में ही जन्म लेते हैं वह भी देवताओं के आवाहन द्वारा। कुंती व माद्री ने इस तरीके से बच्चों को जन्म दिया। पांडु की मृत्यु के पश्चात हस्तिनापुर आने पर धृतराष्ट्र व उनके पुत्रों ने पांडवों के साथ जो व्यवहार किया वह भी एक अलग सी हमें देता है। वारणाव्रत के बाद, उन्हें वन गमन हो गया, द्रौपदी स्वयंवर एक अलग ही कथा कहती है। द्रोणाचार्य से शिक्षा एक अलग कथा बताती है और वहां एकलव्य से गुरु दक्षिणा विलक्षण बात महाभारत में कई घुमाव व मोड़ लिए हैं पर अंत में सब का जवाब भगवान श्री कृष्ण है। चाहे द्रौपदी की चीरहरण हो या दुर्वासा द्वारा पांडवों की परीक्षा हो या कुरुक्षेत्र का रणभूमि सब जगह अगर कृष्ण है तो पांडवों को कोई तकलीफ नहीं है। वह हर परीक्षा में पास है। 12 महीनों का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास भी हमें अलग शिक्षा देता है। इतने बड़े राजकुमार भी नपुंसक बनकर, रसोईया बनकर, घुड़साल या गौशाला में सेवा करके, दासी बन के रहना; अपने आप में एक अलग तरह की बात है लेकिन पांडवों ने वह समय भी पूर्ण सहजता के साथ निभाया और अंत में विजय पाकर ही इस समय से निकले।
जहां दुर्योधन और दुशासन अधर्म की पराकाष्ठा थी वही विदुर नीति ने राजकाज की बात भी हमें बताकर्ण बहुत बड़ा दानवीर था लेकिन जीवन में एक बार दुर्योधन के साथ आने के बाद सारी उम्र अधर्म के साथ गुजारनीड़ी। दुर्योधन को अधर्म की तरफ मोड़ने वाले उसके मामा शकुनी व पिता धृतराष्ट्र का बड़ा हाथ रहा। ऐसा हमें लगता है क्योंकि दोनों की अपनी अलग-अलग विवशताएँ थी। कुरु राजवंश के बुजुर्ग इस कार्य में जैसा हमेशा ही देखा गया, विवश पाए गए क्योंकि के वे गद्दी के चाकर थे
महाभारत में कृष्ण के जीवन के भी कई अंश साथ में आए हैं। उनके जीवन में भी जहां जन्म जेल में हुआ, बचपन ग्वाले के रूप में बीता, यौवन में मथुरा छोड़कर द्वारका भागना पड़ा। रुक्मणी को भगा कर शादी करनी पड़ी। बहन सुभद्रा की भगाकर अर्जुन के साथ शादी कारवाईकंस वध, शिशुपाल वध, जरासंध वध और कुरुक्षेत्र का पूरा रण और अंत में द्वारका का यादव वंश का अंत। यह सारे उनके जीवन के भी अलग-अलग पहलू है। लेकिन कृष्ण ने जीवन को हर दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने प्रेम, मित्रता, मोहब्बत, भाईचारा, सौहार्द सबके साथ बांटा है और हमें सिखाया है कि जीवन के कई रंग हैं। हमें सब रंगों में अलग अलग तरीके से रंग कर जीवन जीना चाहिए। उन की बाल लीलाएं हो या सुदामा के साथ चिवडा खाना हो या फिर युद्ध की स्थिति में रणनीति बनाना या पारिवारिक परिस्थितियों से झूझना हो, सभी स्थितियों में सहज भाव से धर्म का आचरण करते हुए उन्होंने जीवन को जिया सब को एक नई दिशा दिखाई। उनको भगवान विष्णु का पूर्णावतार कहा जाता है।  
महाभारत भी रामायण की ही तरह भारतीय संस्कृति का कई आदर्शों को बताने वाला है और हमें पढ़कर अच्छी-अच्छी बातों की सीख लेनी चाहिए और परिवार में बच्चों में अच्छे संस्कारों को डालने का प्रयास करना चाहिए। यह हमारे जीवन के बहुत ही महत्वपूर्ण अंग हैं और बार-बार परायण करने से हमें कई नई चीजें सीखने को इनसे मिलती है उदाहरण के तौर पर गुरुकुल में किस तरह रहना चाहे, संदीपनी ऋषि के गुरुकुल में कृष्ण रहे हो या द्रोणाचार्य के पास कौरव और पांडव रहे हो; वहां गुरु सर्वोपरि है।
इसी भांति एक और अच्छी बात लगी आशीर्वाद का क्रम। महाभारत में गांधारी दुर्योधन को विजय का आशीर्वाद नहीं देती और भीष्म जो कि प्रधान सेनापति कौरवों के थे पर युधिष्ठिर को विजयी भव का आशीर्वाद देते हैं। यही आशीर्वाद द्रोणाचार्य कृपाचार्य देते। एक बहुत अच्छे संस्कृति के ध्योतक है; जो हमें सिखाते हैं अगर कोई आपको नमन करता है, प्रणाम करता है तो आप आशीर्वाद दें। शुभ आशीर्वाद अगले के जीवन में फलता फूलता है
मैं इन्हीं सब बातों से इस बात को पूरा करना चाहूंगा कि जीवन में संस्कारों का महत्व है और संस्कार हमें संस्कृतियों को पढ़ने से मिलता है संस्कृतियों को जानने से मिलता है। संस्कृतियों को समझने से मिलता है। आप सब हमारी पुरातन विरासत, इन सब संस्कृतियों को जाने, पढ़ें, समझें और भावी पीढ़ी को बताएं भी हमारा जीवन सार्थक होगा।

रचनाकार:

मर्यादा कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादकअखि भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)

Comments

  1. भ्राता श्री, सादर अभिवादन,,, आपकी रामायण व महाभारत पर विवेचना पढ़ कर बहुत कुछ सीखने को मिला! इतनी शब्दों की मर्यादा मे इतनी गूढ़ व्याख्या कोई "मर्यादा कुमार" ही कर सकता है! आशा है कि निकट भविष्य में और भी ग्यान वर्धन होगा! बहुत बहुत आभार,,, रमेश बंसल
    भिवानी

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    1. धन्यवाद, आपका स्नेह यू ही बना रहे, आगे भी हमारे ब्लॉग लगातार पढ़ते रहें।

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  2. बहुत सुंदर व्याख्या आपने की अध्यक्ष जी
    नमन

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    1. thank you for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  3. व्यक्ति जीवन में अनेक प्रसंग व समस्या आती है उसमे कैसे जिये, आपने सारगर्भित विश्लेषण किया बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. आपने सम्पूर्ण महाकाव्य को गागर में सागर भरने का अनुपम प्रयास किया है।आपने प्रारब्घ की बात कहीं।मामा सकुनी के बुद्धि का भी चरित्र चित्रण किया जो कौरवों के नाश का प्रमुक कारण बना आदि पात्रों को अपने शब्दों में उकेरा। जो मनुष्य विन्रम होता है,शत्रु पक्ष के लोग भी आर्शिवाद देते है।आपने गुरुकुल की परम्परा का उल्लेख किया गुरु हमारे जीवन के आदर्श होते है। भगवान श्री कृष्ण के जीवन वृत को भी दर्शाया ।यह आपका अमूल़्य प्रयास जन मानस को प्रेरणा देगा।इसी आशा के साथ सादर नमन।

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    1. It's wonderful Maryada ji.

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    2. thank you for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  5. व्यक्ति जीवन में अनेक प्रसंग व समस्या आती है उसमे कैसे जिये, आपने सारगर्भित विश्लेषण किया l अत्यन्त प्रेरणादायक

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    1. thank you for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  6. Very interesting perspective on Mahabharat 🙏🏿🍂

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  7. thank you for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  8. महाभारत का अर्थपूर्ण विश्लेषण है।
    महाभारत और रामायण दो अलग अलग युगों की रचनाएं है पर वो आज भी इतनी ही सार्थक है।जितनी बार इनका अध्ययन किया जाए उतनी ही बार जीवन के नए आयाम समझ ने का मोका मिलता है।
    कनक कोठारी

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    1. true, they are universal... thank you kanak bhai for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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