रामायण : नैतिकता की पराकाष्ठा

अभी इन दिनों टीवी पर हम रामायण और महाभारत धारावाहिक देख रहे हैं यह दोनों धारावाहिक भगवान विष्णु के अवतार राम और कृष्ण की कथा पर आधारित है दोनों की विषय वस्तु अलग अलग है और दोनों ही अलग-अलग काल में घटित घटनाओं का विवरण है। मैं अगर बात करूं रामायण की, रामायण नैतिकता की पराकाष्ठा का सूचक है। रामायण में राम ने जो माता पिता के प्रति भाव प्रदर्शित किए है वह अनुकरणीय है। पिता ने अगर माता को वर दे दिया और माता उस वरदान में उनको वनवास भेजती है तो भी वह सहज भाव से माता पिता की आज्ञा मानकर उसे सहर्ष शिरोधार्य करते हैं। यह हमें आज के युग में आज्ञा परायण होना सिखाता है। माता और पिता के प्रति सम्मान का भाव जगाता है।

हम देखें यह जहां भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों का भ्रातृत्व प्रेम, राम के प्रति सम्मान, यह आज के जनमानस के लिए प्रेरणादायी है। लक्ष्मण जहां 14 वर्ष वनवास में भाई के लिए समर्पित रहा, वही भरत राज्य मिलने पर भी सन्यासियों की तरह जीवन बिता कर बड़े भाई के खड़ाऊ को राजा मान कर काम करते हैं और शत्रुघ्न सब के प्रति सम्मान भाव रखते हैं। ऐसा प्रेम वर्तमान युग के लिए अनुकरणीय-प्रेरणादायी है।

मैं बात करूं पति-पत्नी के संबंधों की तो सीता और राम का जो संबंध है वह हमें बताता है कि चाहे वनवास हो या राजनिवास या विरह की बेला दोनों का आपसी तादम्य में, दोनों की आपसी समझ बूझ, विचारों का आदान-प्रदान पति पत्नी के रिश्ते को परिभाषित करता है।

जहां वर्तमान युग में उपभोक्तावादी संस्कृति, आर्थिक आपाधापी के दौर में इन सब संबंधों को माता-पिता, भाई-भाई, पति-पत्नी आदि की नई परिभाषा गढ़ रहे थे, रामायण हमें इन संबंधों की पहचान करा रही है। एक दूसरे के प्रति सहनशीलता के जो भा है उनसे हमें पाठ पढ़ा रही है। हनुमान जी की स्वामी भक्ति तो युगों युगों से हमें प्रेरित कर रही है। मित्र की विपदा में उसका पूरा सहयोग किस भांति करना यह रामायण शिक्षा देता है। भक्तों के प्रति भगवान राम शबरी जैसी भीलनी के जूठे बेर भी खा जाते हैं। ये भक्त के प्रति भक्त वत्सलता है।  

रामायण जहां भक्ति की पराकाष्ठा है, वह शक्ति की पराकाष्ठा भी है। हनुमान जी को लंका पार करनी थी और उनकी शक्ति को याद दिलवाया जामवंत जी ने और उन्होंने 100 योजन समुद्र को पार कर लिया और इसी भांति वह जब लक्ष्मण को शक्ति लग गई तो हिमालय पर्वत से औषधि का पूरा पहाड़ उठा लाए। यह थी उनकी शक्ति लेकिन बताया जाता है कि वह वापस आ रहे थे पहाड़ लेकर तब भरत ने देखा यह क्या जा रहा है। उन्होंने बाण लगाकर हनुमान जी को घायल कर दिया और जब हनुमान जी से सारी बात सुनी तो उन्होंने हनुमान जी को कहा कि मैं एक बार में ही यहां से एक बाण पर आपको बिठा के यहां से लंका तक पहुंचा दूंगा। यह भी एक शक्ति प्रदर्शन है।

रामायण में हमने मित्रता का भी पूर्ण पराकाष्ठा देखिए, जहां राम ने सुग्रीव की मित्रता के लिए बाली का छिपकर वध किया। वही सुग्रीव और विभिषण ने उनकी मित्रता निभाकर लड़ाई में विरोधियों को धूल चटाई। विभीषण ना होते तो मेघनाथ वध, रावण को मारना बहुत कठिन कार्य था। लेकिन रावण भी कम नहीं थे उच्च कोटि के प्रकांड पंडित, तपस्वी, जानकार थे पर-स्त्री हरण कर तो लाए पर हाथ नहीं लगाया। सीता को उसी भांति सुरक्षित अशोक वाटिका में रखा और जब तक स्वयं सीता हाँ ना भरे, तब तक उन्होंने उसके हाथ लगाने से मना किया, स्त्री की मर्यादा को अक्षुण्ण रखा रामायण नैतिकता और धर्म हमें सिखाती है इसीलिए रामायण का आदर्श भारतीय संस्कृति में सदैव बना हुआ है। उसका हर पात्र अपने आदर्श पर है। उर्मिला हो या मांडवी हो सबने अपने-अपने ढंग से अपना अपना जीवन जीया और भगवान राम की उसी उच्च नैतिकता पर डटे रहे।

मैं नमन करता हूं रामायण के सभी पात्रों का और आपसे अनुरोध करता हूं कि अपने जीवन में इन पात्रों के प्रति जानकारी लेकर आदर्शों को अपनाएं और सही जीव सही व सुखी जीवन जीएं। 



रचनाकार:

मर्यादा कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादकअखि भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)

Comments

  1. अत्यंत महत्व पूर्ण और प्रासंगिक मंतव्य के लिए साधुवाद ।

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  2. रामायण काल के नैतिक मापदंड आज भी प्रासंगिक है। अच्छा होता ऐसे ही उस समय के विज्ञान की प्रामाणिकता हमारे पास होती।

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  3. रामायण हर युग में नैतिक मूल्यों की महत्ता की याद दिलाती है।
    रामायण का नया दृष्टिकोण बताने हेतु आपको सहृदय साधुवाद
    कनक कोठारी

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