सोच में सकारात्मक बदलाव


बचपन में ही पढ़ा था - सुना था के भावों का हम पर बहुत असर होता है और अभी वर्तमान दौर में भी देखने को मिल रहा है के भाव अगर सकारात्मक है तो हमें सब तरफ सकारात्मकता दिखेगी और अगर नकारात्मक है तो हमें नकारात्मक चीजें ज्यादा नजर आएगी।

इस covid-19 (कोरोना) महामारी के दौर में अगर मैं बात करूं सकारात्मकता की तो सबसे बड़ी सकारात्मकता हुई है परिवार के साथ रहने की। हर परिवार में आपसी सौहार्द भावना, समन्वय व प्रेम, भाईचारा इन दिनों बढ़ा ही है क्योंकि जहां पहले व्यक्ति आर्थिक आपाधापी में दिन भर लगा रहता था, अब वह सारे काम बंद होने से घर पर ही है, पहले तो ऐसा था 'दौड़ घोड़ा और दिन थोड़ा' पर अब समय ही समय है उसके पास सबके लिए। परिवार के लिए पहले अगर कोई काम का भी कहा जाता था तो कहता था कैसे करूँ? मेरे पास तो यह ऑफिस का काम या दुकान का काम या कारखाने का काम बहुत है लेकिन अब इन दिनों देखा गया कि परिवार में सभी लोग मिलजुलकर काम करने लगे हुए हैं। जो यह आपसी समझ इन दिनों बढ़ी है यह आने वाले दिनों के लिए बहुत ही हितकारी साबित होगी।

इन दिनों बच्चों को माता पिता का प्यार, दादा दादी का दुलार, पति पत्नी का आपसी प्रेम, भाई बहनों का आपसी समझ - सद्भावढ़ा है। घर परिवार इन दिनों साथ साथ है इसलिए सारे कार्य सभी आपसी सहभागिता व सहयोग से कर पा रहे हैं। यह बहुत बड़ी सकारात्मकता इस दौर में आई है और यह हमारे आने वाले समय में एक दूसरे को समझने में एक दूसरे को जानने में और एक दूसरे के प्रति सद्भावना में बहुत कारगर सिद्ध होगी। सबका आपस में एक दूसरे के प्रति दुख सुख में साथ रहना व आम जनता के प्रति भी जो करुणा का भाव, दया का भाव बढ़ा है - यह भी एक बहुत बड़ा परिवर्तन है।

मैं देखता हूं कई लोग इस सेवा भावना से जुड़ कर कहीं रक्तदान कर रहे हैं, तो कहीं फल और सब्जी बांट रहे हैं, तो कहीं पर खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं, तो कहीं पर खाने बनाने की सामग्री बांटी जा रही है। यह 'वसुदेव कुटुंबकम' की भावना तो पहले केवल किताबों में पढ़ी जाती थी उसका हम साक्षात दर्शन इन दिनों कर रहे हैं। प्राणी - प्राणी मात्र के प्रति जो भावना इन दिनों बदली है यह इस काल का एक बहुत ही बड़ा परिवर्तन है और यह लगातार रहे ऐसा मै चाहता हूँ।

परिवार में सबके प्रति जो भावना में एक परिवर्तन आया यह इस समय का बहुत बड़ा विकास कारक बन सकेगा। परिवार में पहले ऐसा होता था सारा भार एक व्यक्ति पर ही डाल दिया जाता था या काम करने के लिए नौकर-चाकर आते थे लेकिन अब इन दिनों में सारे कार्य सभी लोग आपसी समझबूझ से मिल-बांट कर कर रहे हैं और सब काम समय पर भी हो रहे हैं क्योंकि सबसे बड़ा जो कारण है की समय सबके पास पूरा पूरा परिवार के लिए है और यह परिवार अब लगता है कि हमारा अपना है हम आपस में एक दूसरे के लिए बने हुए हैं और पारिवारिक समस्याओं का समाधान भी मिलजुल कर बैठने से आपस में संवाद रखने से और आपस में दा विश्वास रखने से बढ़ता है। इसी सकारात्मकता का इस महामारी के दौर में सबसे बड़ा उपहार माने यही हमारा लक्ष्य है।

सकारात्मकता का दौर हमें संयुक्त परिवार प्रथा की भी याद दिलाता है। हम विचार करें उस दौर को जब सारी व्यवस्था संयुक्त थी। एकल परिवार की मजबूरी में हम परिवार को भूलते जा रहे थे। अब हमें वापस उसी धुरी पर लौटना है परिवार की अहमियत को समझना होगा। परिवार है तो हम हैं नहीं तो कुछ भी नहीं। शाम के वक्त इन दिनों में छत पर लोगों की आवाजाही बढ़ी, घर के पकवानों में महक भी बढी। बस जरूरत है इस महामारी के दौर के बाद भी परिवार को महत्व को बनाए रखें। सभी आपसी सदविश्वास व संवाद से अपने आंगन की बगिया को महकाए रखें, यही अपेक्षा है।  

सुख दुः,रों से, मिलने की, अनुभूति में
हम रहे, सदा, परतंत्र व दी
सुख-दुःख स्वकृत, जानते ही, हम हो गए, स्वाधीन
अपने भीतर से आकर, सब पाता, बाहर विस्तार
नाटक के लेखक, पात्र, दर्शक हम हैं, यह जाना
कि मिल गया, मोक्ष का द्वार



रचनाकार:

मर्यादा कुमार कोठारी
(आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादकअखि भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)

Comments

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  2. सही में सकारात्मक विचारों से ही बदलाव सम्भव ��

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    1. thank you Mukesh ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  3. *अनित्य अनुप्रेक्षा*

    इमं सरीरं अणिच्चं

    यह शरीर अनित्य है। प्रति क्षण अनेक कोशिकाए मिट रहीं हैं, नई बन रही हैं। कभी आशा, कभी निराशा, नाना प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं।
    यह शरीर मात्र एक *संयोग* है, जो संयोग होता है, उसका *निश्चित वियोग* होता है। शरीर के साथ संयोग का *अनुचिंतन* करें। अनुचिंतन करते-करते *अनुभव* के स्तर पर आयें। शरीर से अपनी *भिन्नता* का अनुभव करें।
    शरीर में होने वाले ये *रोग*, मात्र एक *संयोग* है, जो संयोग होता है, उसका *निश्चित वियोग* होता है। रोग के साथ संयोग का *अनुचिंतन* करें। अनुचिंतन करते-करते *अनुभव* के स्तर पर आयें। रोग से अपनी *भिन्नता* का अनुभव करें।

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    1. thank you Sarika ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  5. Think positive n be positive

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  6. आज इस कोरोना महामारी के समय में हर एक शख्स चिन्तित है। मगर इस विकट परिस्थिति मे इन्सान के भावों में जो सकारात्मक परिवर्तन आया है। उसका आपने अपने लेख एकदम सही चित्रण किया है। ऐसी ही सुंदर सोच भविष्य में बनी रहे।

    अति सुंदर, शानदार लेख है सा आपका

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    1. thank you for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  7. Yes be positive and definitely u will see all kind of positivity near your surroundings.and yes during covid-19, we saw a rapid change in family members they are helping each other doing work together, hope after this situation people will give at least some time to family....

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    1. thank you Anita ji for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs. hope after this situation, people give some time to family.

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  8. Good Advice for present and for Future lifestyle to create Positive Things in Life

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    1. thank you for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  9. आज के इस परिपेक्ष में बहुत ही सुंदर सकारात्मक सोच का वर्णन किया है ।।

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    1. thank you Yogita ji, for your valuable time and feedback, stay tuned for such more blogs.

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  11. आपने अपने आलेख में सकारात्म सोच की बात कही एवं कोरोना वायरस ने आम जन को घर में बैठने को विवश किया।इस विवशता ने परिवार के साथ बैठने का अवसर दिया एक दूसरे को समझने का सुअवसर दिया।मनुष्य अपने व्यापार एवं कार्य में इतना उलझा हुआ था वो चाहते हुए भी समय नही दे पाता था।आपने वसुदेव कुटंबकम की बात कही ये बात आम जन में नजर आ रही है।कोरोना के योद्धा तन मन धन से अपनी सेवाएं दे रहे है।आपने सयुक्त परिवार के महत्व को भी दर्शाया।आपने कविता एवं मुहावरे देकर लेख को अति सुन्दर बना दिया।
    आप मां सरस्वती के पुजारी है।आप पर कृपा बनी रहे।
    हार्दिक अभिनन्दन आपके विचारों को
    अशोक प्रदीप जसोल

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