कला और साहित्य में छिपे नारे : जो रसिकता और समझ को बढ़ाते हैं
कला और साहित्य में छिपे नारे : जो रसिकता और समझ को बढ़ाते हैं जिनेन्द्र कुमार कोठारी " नारा " का शाब्दिक अर्थ है " बुलंद आवाज़ में लगाया गया घोष " . प्राचीन काल में नारा युद्ध के समय सेना द्वारा लगाया जाता था जिससे सैनिको में जोश आए और युद्ध में अधिक से अधिक शौर्य प्रदर्शन को प्रेरित करे। आधुनिक सन्दर्भ में नारे का प्रयोग समाज - राष्ट्र मे एक विशेष परिस्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करना होता है। समय के साथ साथ , सभ्यता - संस्कृति के विकास के क्रम में नारों के भिन्न भिन्न रूप हमारे समक्ष आ गए है यथा साहित्यिक , राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , शैक्षणिक , धार्मिक , आध्यात्मिक , मनोवैज्ञानिक और स्वास्थय सम्बन्धी। नारा साहित्यिक और कलात्मक दर्ष्टि से वो ही अच्छा माना जाता है जो सहज , सरल और सुगम हो। भाषा सरल और प्रचलित