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प्रासंगिक है आज भी आचार्य भिक्षु

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प्रासंगिक है आज भी आचार्य भिक्षु   तेरापंथ धर्म संघ का उद्गम जैन धर्म के एक विशुद्ध संस्करण के रूप में हुआ माना जा सकता है। घोर कष्टों एवं मिथ्या ग्रह के मध्य भी आचार्य भिक्षु अडोल रहे। वे दंभ- चर्या और आसक्ति आदि के विरोध में भी मुखर रहे। सत्य कहते हुए आचार्य भिक्षु कभी स्कुचाए नहीं। आचार्य भिक्षु के विचारों ने , दर्शन ने , तत्कालीन मारवाड़ राज्य में धर्म क्रांति की - आज जिसका घोष अखिल विश्व में व्याप्त है। आचार्य भिक्षु के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक और उपयोगी हैं जितने कि उस काल में रहे।   आचार्य भिक्षु के विचारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा अहिंसा एवं अहिंसक दृष्टिकोण की यथार्थपरक व्याख्या। बड़े जी वों की रक्षा के लिए छोटे जीवों के वध को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। अहिंसा के क्षेत्र में भी इस प्रकार एक तरह से बल-प्रयोग मान्य समझा जाने लगा था। आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर की इस वाणी का स्पष्ट घोष किया- "सब जीव समान है , कोई जीव मरना नहीं चाहता , सब जीव जीना चाहते हैं"। अहिंसा बल-प्रयोग से नहीं , वरन हृदय परिवर्तन , भाव परिवर्तन से ही संभव है। आचार्य भिक्

धर्म – राजनीति – सिनेमा

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  कुछ समय पहले मैंने लिखा था भारत विविधताओं में एकता की मिसाल वाला देश है। यह एकता हमें हर दृष्टिकोण से देखने में मिलती है क्योंकि मैंने भी भारत की इस पवित्र और पावन भूमि का भ्रमण कश्मीर से लगाकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लगाकर कामख्या तक किया है। इस भूमि पर देखने में इतनी विविधताए हैं , इतना ही एक अलग ही नजारा है। वैसा मेरी जानकारी में विश्व के किसी और देश में हो नहीं है। यहां भाषा , भूषा और भोजन हर 20 कोस बाद जरूर परिवर्तन करता है। परिवर्तन के साथ साथ इसमें सब की एक अपनी अलग अलग पहचान भी है। वह पहचान ही हमारी अनेकता में एकता को दर्शाती है। हम सब की पारिवारिक सोच की स्थिति करीब करीब मैंने जहां तक देखा है पूरे भारत भर में एक जैसी देखी है। मुझे याद है मैं एक बार कोंकण रेलवे में त्रिवेंद्रम से मैंने जोधपुर तक की यात्रा के दौरान जब केरल में एक स्टेशन पर पूरा परिवार किसी अपने को पहुंचाने आता है और केवल पहुंचाने ही नहीं आता है वरन सबकी आंखों में आंसू भी आते हैं। उसी तरीके से प्यार और दुलार से जैसे कोई पूरा गांव किसी की रवानगी के लिए आया है या कहीं पर देखा कि किसी का स्वागत करने के ल