समय - कल और आज
समय का जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है एक समय था जब हमारे परदादाजी - पर दा दीजी 2 या 4 जोड़ी कपड़े में सारी जिंदगी निकाल लेते थे। घूमना-फिरना उनका इतना हि होता था की जसोल से जोधपुर (करीब 120 किमी) भी उनको एक अलग ग्रह लगता था और इतनी सादगी के साथ रहते थे , मोटा पहनते थे , मोटा खाते थे। सारी चीजें उनके पास शुद्धता के रूप में रहती थी क्योंकि दसियों गाय-भैंसों घर में बंधी हुई थी । आने जाने के लिए घर में ऊंट बंधे हुए थे , बैलगाड़ियाँ थी । घर में खाने के लिए धान के रूप में बाजरी की कोई कमी नहीं थी । कोठार के को ठार भरे रहते थे। परिवार भी सारे एक साथ रहते थे और सभी सुख दुख में साथ निभाते थे और एक ही पॉल के अंदर सात पीढ़ी के परिवार साथ में ही रहते थे। सभी चाचा - ताऊ , भाई - बहन , दादा - दादी आपस में बैठकर सुख दुख की बातें करते थे और जीवन का वह एक अलग ही आनंद उठाते थे। उस समय संतोषी जीवन था। सभी मेहनतकश लोग थे। सारे कार्य हाथ से करते थे तथा संतोष उनका सबसे बड़ा धन था। परिवार में एकजुटता उनकी पूंजी थी। जरूर तें सीमित थी। इच्छाओं का संयम था। जिस भी हाल में थे , उसमें खुश व आनं...