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लोकतंत्र भारत में कितना सफल - असफल

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  विश्व में शासन की दो प्रणालियां प्रचलित है राजतंत्र एवं लोकतंत्र । राजतंत्र में एक शासक होता है , जिसकी मर्जी से शासन प्रणाली चलती है ,   लोकतंत्र में जनता अपना शासक स्वयं चुनती है एवं समय-समय पर उसका कार्य निरीक्षण कर उन्हें पुनः   चयन या फिर नए शासक का चुनाव किया जाता है। राजतंत्र में एक व्यक्ति या परिवार सर्वोपरि होते हैं। लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है। लोकतंत्र की परिभाषा है "जनता का शासन , जनता के लिए , जनता के द्वारा" भारत में राजतंत्र की ज डें काफी गहरी व पुरानी रही है लेकिन 1947 में ब्रिटिश सत्ता से स्वाधीन होने के बाद भारत एक ही प्रयास में राजतंत्र से लोकतंत्र शासन प्रणाली में आ गया और 1950 में देश ने संविधान स्वीकार कर गणतंत्र शासन प्रणाली स्थापित की। आज स्वतंत्रता के ७३ वर्ष बाद इस बात का लेखा-जोखा करने का उचित समय है कि हमारी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में कहां सफलताएं मिली , कहां कमियां रही और भारत इस समय विश्व के अन्य देशों के समकक्ष कहां खड़ा है। सर्वप्रथम यह स्पष्ट करना जरूरी है कि लोकतंत्र की शासन प्रणाली सर्वोत्तम शासन व्यवस्था है। ...

आस्था रखें अटूट – अडिग

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मैं काफी समय से सुबह सुबह सबसे जय जिनेंद्र के साथ सुप्रभात कर एक कोई भी सुवाक्य   संलग्न भेजता हूं। अभी पिछले दिनों की ही बात है एक सुवाक्य   भेजा था आस्था हमेशा भक्त के चित्त और मन में होती है , वरना कमी निकालने वालों को तो परमात्मा में भी कमी नजर आती है तो मैं इस बारे में विचार कर रहा था , सोचा आस्था के बारे में कुछ लिखूँ । सोचते सोचते विचार आया आस्था भक्ति है , आस्था निष्ठा है , आस्था श्रद्धा है , या फिर ये आस्था है क्या ? आस्था किसी व्यक्ति विशेष के लिए या दल विशेष के लिए या किसी राष्ट्र के लिए या किसी धर्म या संप्रदाय के प्रति या समाज विशेष के लिए - किसके लिए ? आस्था गू ढ़ शब्द है। आस्था के बारे में लोगों के मन में जो कई भाव आते हैं , उन भावों पर विचार करता हूं। एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति जो विशुद्ध ,   निर्मल एकात्मक भाव आता है , जो उसे उसके प्रति   जोड़ने का कार्य होता है , वह आस्था है।   मैं पाता हूं , कि आचार्य भिक्षु की दृढ़ आस्था आगम के प्रति या भगवान महावीर के प्रति थी और वह सारी उम्र उस पर दृढ़ रहे। उसी दृढ़ता के आध...