विवेक हीनता (पोपाबांई का राज)
स्वल्प शब्दों में समग्र दर्शन के अंतर्गत पापा जी सोहन राज जी कोठारी का लोकोक्तियों पर लिखा गया यह लेख विवेक के बारे में हैं। इसमें हमें बताया गया है कि वर्तमान समय में भी विवेकहीनता सामने आ रही है। यह हम सबके लिए एक चिंतनीय विषय है। लेख को पढ़कर स्वयं गौर करें और मनन करें। वर्तमान जीवन में कैसे सार्थकता लाएं ? यह सोचें। --- मर्यादा कुमार कोठारी विवेक हीनता ( पोपाबांई का राज ) पोपाबांई का कब , कहां , कैसा राज्य रहा , इसके बारे में ऐतिहासिक या प्रमाणिक जानकारी कहीं नहीं मिलती। इस लोकोक्ति का प्रयोग बहुधा उन प्रसंगों व परिस्थितियों में होता है , जहां विवेक से अपना-पराया , हित-अहित , शुभ-अशुभ , करणीय-अकरणीय आदि का पृथक्करण नहीं किया जाता है और मनमाने तरीके से विवेक के बिना उटपटांग कार्यप्रणाली अपनाली जाती है। इस लोकोक्ति के विषय में ‘ सोमरस ’ रचयिता आचार्यश्री तुलसी ने पुस्तक के परिशिष्ट में संख्या 63 पर एक विस्तृत घटना दी , जो इस प्रकार है- प्राचीन समय में , दो वणिकों ने आपस में गोलमिर्च (काली मिर्च) का व्यापार किया। उस समय तोल-माप के यंत्रों का आविष्कार...